प्रेरक प्रसंग - गुलाम

एक शहर से महाराजा की सवारी धूमधाम से जा रही थी। जो भी रास्ते में मिलता वह सिर झुकाकर दोनों हाथ जोड़कर महाराजा को प्रणाम करता। उस शहर में उस राजा  का बड़ा नाम था। तभी अचानक रास्ते में एक फकीर का सामना राजा से हुआ। राजा ने उत्सुकतावश उस फकीर की तरफ उसी उम्मीद से देखा कि वह फकीर भी उसे प्रणाम करेगा लेकिन फकीर के ऐसा न करने से राजा ने गुस्से से कहा, क्या तुम नहीं जानते कि मैं यहां का सम्राट हूं फिर तुमने मुझे सम्मान क्यों नहीं दिया? फकीर बोला, मैं, किसी भी गुलाम का सम्मान नहीं करता। राजा क्रोध में बोला कि तुमने मुझे गुलाम क्यों कहा तुम्हें इसका दण्ड मिलेगा। फकीर हंसकर बोला, पहले यह बताओ तुम किसका हुक्म मानते हो? राजा बोला, मैं केवल अपने मन के अलावा किसी का हुकम नहीं मानता। मेरा जो मन कहता है वही करता हूं। फकीर बोला, मतलब कि तुम मन के गुलाम हो और यही मन मेरा गुलाम है। यानि तुम मेरे गुलाम के गुलाम हो फिर मैं तुम्हारा सम्मान क्यों करूं। मैं तो मन पर भी काबू पा चुका हूं जबकि तुम अब भी मन के गुलाम हो। राजा को गहरा धक्का लगा। वह तुरंत नीचे उतरा व फकीर के चरण पकड़ कर क्षमा मांगने लगा। फकीर बोला, तुम चाहे पूरी दुनिया जीत लो यदि मन नहीं जीत सके तो सब बेकार है। मन पर काबू पाने वाला ही सम्राट है।