कहानी-लक्ष्मी

एक समय की बात है। एक गांव में अकल व उसकी पत्नी रहते थे। अकल को पुत्र प्राप्ति की इच्छा थी। उसका मानना था की बेटा ही वंश चलाता है, बेटी पराया धन है वो हमारी कहा। जबकी ज्योति की सोच उससे काफी अलग थी। उसका मानना था की बेटा-बेटी एक समान है पर अकल की सोच भला कौन बदल सकता था। एक दिन ज्योति ने अकल को ये खुशखबरी सुनायी की आप पिता बनने वाले हैं। अकल बहुत ही खुश हुआ और हंसकर ज्योति से बोला देखो-ज्योति मेरा बेटा आने वाला है, मेरा बेटा बड़ा होकर सारे जग में मेरा नाम करेगा तभी ज्योति ने अकल से एक प्रश्न कर ही लिया। सुनो ना अगर हमें बेटी हुई तो...
ये सुनते ही अकल क्रोध से आग बबूला हो गया और तेज़ आवाज़ में बोला अगर लड़की हुई तो मुझसे बुरा...ज्योति कोई नहीं होगा। ज्योति मन ही मन सोचने लगी, काश लड़का ही हो अब वो समय भी आ गया। जिसका सबको बेसब्री से इंतजार था। बच्चे की रोने की आवाज सुनते ही ज्योति ने डॉक्टर से पूछा-‘डॉक्टर मुझे लड़का हुआ है ना?’
डॉक्टर धीरे से मुस्कुरायी और बोली-‘आपके घर में लक्ष्मी जी का आगमन हुआ है।’
ज्योति रोने लगी की अब क्या होगा अकल को जैसे ही पता चला की लड़की हुई है उसके रोना शुरू कर दिया व रोते-रोते बोला शायद मेरा नसीब ही खराब है जो बेटी हुई है। अकल ने ना तो कभी उसे गोद में लिया और ना ही कभी उस बच्ची जिसका नाम लक्ष्मी था बात की।
अब एक दिन ज्योति ने अकल को दुबारा खुशखबरी सुनायी की आप दुबारा से पिता बनने वाले हैं इस बार ईश्वर आपकी पुकार ज़रूर सुनेंगे हमे बेटा ही होगा पर किस्मत का लिखा कभी कोई नहीं टाल सकता है अकल की किस्मत में एक और पुत्री का आगमन लिखा था पर इस बार अकल ने किसी की एक नहीं सुनी उस छोटी सी बच्ची को एक सुनसान स्थान पर कूड़े के ढेर में फेंक कर आ गया।
एक पति पत्नी उसी रास्ते से गुजरते हुए अपने घर की तरफ  जा रहे थे। उन्होंने उस बच्ची की रोने की आवाज़ सुनी वो उसे अपने साथ अपने घर ले आए। उनके कोई संतान नहीं थी उन्होंने उस बच्ची को अपनी पुत्री के रुप में स्वीकार कर लिया। वो बच्ची उनके जीवन मे रोशनी की एक किरण बनकर आयी थी। इसलिए उन्होंने उसका नाम रोशनी रख दिया। रोशनी ने अब पढ़ाई करना शुरू कर दिया, इधर ज्योति ने फिर से अकल को खुशखबरी सुनायी की आप पिता बनने वाले हैं और इस बार तो अकल को पुत्ररत्न की प्राप्ति हो ही गयी।
अकल खुशी से फुले नहीं समा रहा था। लक्ष्मी हरपल अपने पिता का ध्यान रखती पर वो लक्ष्मी से कभी नहीं बोलता था। उसका पुत्र जिसका नाम वंश था। वो हमेशा अपने पिता को गालियां देता था पर अकल तो तब भी वो ही प्रिय था।
उधर रोशनी ने अपनी डॉक्टर की पढ़ाई पूरी कर ली थी। एक दिन अकल की तबीयत अचानक से बहुत ज्यादा खराब हो गयी। ज्योति उसको डॉक्टर रोशनी के पास लेकर गयी।
डॉक्टर रोशनी को भी पता नहीं था की वो उसके पिता है। अकल का लीवर खराब हो चुका था। उसे लीवर देने को कोई भी तैयार नहीं था। अकल को पूरा विश्वास था कि मेरा बेटा ज़रूर मेरी जान बचाएगा मुझे लीवर देगा पर वंश ने साफ-साफ ज्योति से मना कर दिया।
पापा मरते हैं तो मर जाने दीजिए। मैं उनके लिए अपना लीवर क्यों दूँ, जिस बेटी से अकल ने कभी सीधे मुंह तक बात नहीं की वो आयी।
माँ मैं अपना लीवर देने के लिए तैयार हूँ मेरे पापा है ना वो। मैं उनसे बहुत ज्यादा प्यार करती हूँ। अब ऑपरेशन की तैयारी हो गयी। ऑपरेशन के समय ही रोशनी को भी पता चल गया की अकल उसके पिता है। जिन्होंने उसको कूड़े के ढेर में फेंक दिया था अब फैसला रोशनी का था कि क्या वो अपने पिता का ऑपरेशन कर उनका जीवन बचाएगी या उन्होंने जो उसके साथ किया...ये सोच कर ऑपरेशन करने से मना कर देगी। रोशनी ने थोड़ी देर बैठकर सोचा और बोली मैं भी उनकी तरह बन गयी तो मुझमे और उनमें क्या अंतर रह जाएगा। (क्रमश:)