खुशगवार मौसम का एहसास कराता है फरवरी माह

वैसे तो हर माह की कुछ न कुछ खासियत है, परन्तु फरवरी की बात ही कुछ और है। कड़ाके की ठण्ड से मुक्ति, ठिठुरन और सर्दी की दुश्वारियों के बाद मौसम के खुशनुमा बदलाव का एहसास इसी महीने से होता है। साल में सबसे कम दिन भी इसी के हिस्से आये, लेकिन जितने भी हैं, अपने बेहतरीन पलों के साथ जीवन भर की याद बन जाते हैं। इस मायने में भी अलग हैं कि सभी मौसमों का मज़ा इसमें है। दिन में गर्मी हो सकती है तो शाम से ठंडक तो कभी हल्की फुल्की बारिश और फिर सुबह रंग-बिरंगे फूलों और उनकी भीनी महक से सराबोर सुबह की शुरुआत। यही फरवरी है।
बसंत ऋतु का आगमन : इस महीने से बसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है। होली के स्वागत में चालीस दिन पहले से उत्सव का माहौल शुरू होता है, जो रंग खेलने के दिन तक चलता रहता है। वृंदावन और बरसाने की होली तो दुनिया भर में मशहूर है। फिल्मों में होली का त्यौहार मनाने और उसके गीत उनकी पहचान बन जाते हैं। बसंत पंचमी धूमधाम से मनाने की हमारी परम्परा रही है। इन दिनों ही देश भर में अनेक सांस्कृतिक, साहित्यिक समारोह और फूलों की प्रदर्शनियां लगती हैं। बसंत ऋतु में अपने विविध रंगों, आकृतियों, सुगंध समेटे तरह तरह के पुष्प घर, आंगन, बालकनी, उद्यान में अपनी छटा बिखेरते रहते हैं और हम मुग्ध होकर उनके सौंदर्य, बनावट से हतप्रभ और आश्चर्यचकित होते हैं तथा प्रकृति की सौगात मानकर स्वयं को धन्य समझते हैं।
अन्य उत्सव : शृंगार को समर्पित भारत के बसंत की तरह विश्व के अनेक देशों में इस महीने वैलेंटाइन मनाया जाता है, जो सात दिन चलने वाला वैश्विक उत्सव है। हमारे देश में भी अधिकतर शहरों में पले बढ़े और रह रहे युवाओं के बीच वैलेंटाइन मनाए जाने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। पहला दिन गुलाब का फूल भेंट करने से शुरू होता है। गुलाब फूलों का राजा है और प्रत्येक अवसर पर इसे देना और लेना शुभ माना जाता है। युवाओं के साथ-साथ अधिक उम्र के लोग भी इस दिन अपने मित्रों, सहयोगियों और परिवार के लोगों को गुलाब देकर उनके प्रति अपना स्नेह प्रकट करते हैं। दूसरा दिन अपने प्रेम का इज़हार करने के लिए होता है। ज़रूरी नहीं कि यह अविवाहित लड़के-लड़की के बीच हो बल्कि पति-पत्नी और परिवार के अन्य सदस्य भी एक-दूसरे के प्रति अपना प्रेम प्रकट करते हैं। तीसरा दिन टेडी डे के रूप में कम उम्र के लड़के-लड़कियों को उनके माता-पिता या संबंधी इसे उपहारस्वरूप देते हैं। विभिन्न आकार और आकृतियों के बने यह खिलौने उन्हें अपने संगी-साथी जैसे लगते हैं। चौथा दिन वायदा करने और एक दूसरे के प्रति समर्पण तथा लगाव प्रकट करने के लिए होता है। अंत में वैलेंटाइन दिवस है जिसमें अपने सबसे प्रिय व्यक्ति के साथ समय बिताने की परम्परा है जो 14 फरवरी को अपने प्रेम की परिणति स्वरूप मनाया जाता है। उम्मीद की जाती है कि इसी प्रकार जीवन भर एक-दूसरे को चाहते रहेंगे और कहीं भी रहें, आपस का संबंध हमेशा बना रहेगा। इसी प्रकार 17 फरवरी अमरीका में शुरू होकर यूरोप के अनेक देशों तथा न्यूज़ीलैंड में मनाया जाने वाला एक ऐसा पर्व है जो इस बात के लिये मनाया जाता है कि हम कोई न कोई ऐसा काम करें जिससे किसी ऐसे व्यक्ति की जाने अनजाने मदद हो जाये जिसकी जीवन जीने की इच्छा समाप्त होती जा रही हो। उसकी सहायता तो हो ही, बल्कि जीवन जीने की लालसा भी बनी रहे।
बहुत से लोग तनाव, अवसाद, अकेलापन, परिवार का तिरस्कार और यहां तक कि जीवन का अंत करने की मानसिक वेदना झेल रहे होते हैं। हम अपनी सहानुभूति, संवेदना और स्नेह से उनका जीवन बदल सकते हैं। दया तथा करुणा मिश्रित अचानक किसी के साथ किया कोई कार्य उससे अधिक अपने को खुशी देता है। किसी अजनबी से दो आत्मीयता के बोल भी जीने का ऐसा माहौल दे जाते हैं जो उत्साह तथा उर्जा भर देते हैं। यह अनुभव यादगार बन जाते हैं। जब कोई व्यक्ति आपके लिये अपनी सीट छोड़ दे, कहे कि मेरे साथ चाय काफी पीजिए, लाइए मैं आपका सामान उठा लेता हूँ, लिफ्ट का दरवाज़ा खुलते ही पहले आपको अंदर जाने के लिए कहे, आपको अपने घर तक पहुंचाने आये, रास्ते में नमस्ते करे और निकल जाये, यहां तक कि दुकान में मोलभाव करने और सही वस्तु का चुनाव करने में सहायता करे जैसी छोटी-सी बात मन को खुशी दे जाती है। इसमें किसी का धन या कोई बहुत अधिक मेहनत नहीं लगती, बस किसी को अपनी निराशा से उबरने का अवसर मिल जाता है। इतना ही बहुत है एक ऐसा समाज बनाने में जो पैसों पर नहीं भावनाओं पर टिका होता है।
असल में जिन देशों में इतनी आर्थिक प्रगति हो गई है कि धन का महत्व नहीं रहता, उनमें ऐसे लोग बहुत बड़ी संख्या में बढ़ रहे हैं जो शांति चाहते हैं। जो इतने खुशहाल हैं कि अमीर होना उनके लिए वरदान नहीं बल्कि अभिशाप बन गया है, सामान्य व्यक्ति की तरह रहना और व्यवहार करना भी चाहें तो सामाजिक बंधन जो दिखावे का दूसरा रूप होते हैं, बेड़ियों की तरह हो जाते हैं। यदि उनके दर्द को महसूस करने वाला मिल जाये तो वे सब कुछ अर्पित करने के लिए भी तत्पर हो जाते हैं। ऐसे एकाकी लोगों के लिए किसी की थोड़ी-सी संवेदना ही अचूक औषधि बन जाती है। यही इस दिन का महत्व है। असल में होता यह है कि जैसे-जैसे वैभव बढ़ता है, पद का गुमान और मालिक होने का रुतबा सिर चढ़कर बोलने लगता है, व्यक्ति में अपने को सब से उपर समझने का भाव पैदा होता है, ऐसे में उसके अपने अंदर का खालीपन उस पर हावी होने लगता है। उसे यह भी लगने लगता है कि जो भी कोई उसके नज़दीक आने की कोशिश करता है, वह उससे कुछ लेने या छीनने के लिए ही उससे दोस्ती कर रहा है।
इससे प्रेरित होकर पश्चिमी देशों में रैंडम एक्ट्स ऑफ काइंडनेस फाउंडेशन स्थापित की गई है जो एक सप्ताह यानी चौदह से बीस फरवरी तक एक तरह से आंदोलन के रूप में कार्य करती है। लोगों में दूसरों के प्रति दया, करुणा को जीवन में उतारने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाये जाते हैं। उदेश्य यही है कि खुशियां केवल एक व्यक्ति तक सीमित न हों, उनका निरन्तर विस्तार होता रहे। यदि हम किसी को खुशी दे सकते हैं, उसके चेहरे पर हमारे किसी काम से मुस्कान आ सकती है तो यह बहुत बड़ी बात है। इसी प्रकार 17 फरवरी को ही विश्व मानवीय भावना दिवस मनाया जाता है जिसकी शुरुआत एक कवि तथा लेखक ने की थी। इसका उदेश्य भी यह था कि लोग आपस में सौहार्द और सहयोग की भावना से ओतप्रोत रहें, शत्रुता न रखें और जो काम मिलजुलकर किया जा सकता है, उसे करने में कतई संकोच न करें।