दूसरे चरण का महत्त्व

लोकसभा के 7 चरणों में होने जा रहे चुनावों का दूसरा चरण खत्म हो गया है। 19 अप्रैल को पहले चरण में 102 सीटों पर मतदान हुआ था जबकि शुक्रवार को दूसरे चरण में 88 सीटों पर मतदान हुआ है। पहले चरण में कुल वोट प्रतिशत 62.37 रहा था। उससे पहले वर्ष 2019 में हुये लोकसभा चुनावों में पहले चरण की 91 सीटों पर मतदान हुआ था, जिसका मत प्रतिशत 69.43 रहा था। इस बार पहले चरण में पिछली बार की तुलना में वोट प्रतिशत कम होने से कई तरह के अनुमान लगाये जा रहे हैं परन्तु देश भर में अलग-अलग स्थानों पर फैले विशाल क्षेत्रों में कुछ मत प्रतिशत कम होने से या बढ़ने से किसी तरह के ठोस परिणाम निकालने कठिन हैं। इस बार पहले चरण से यदि कुछ प्रतिशत अधिक मतदान हुआ है तो भी कोई निश्चित अनुमान नहीं लगाया जा सकता परन्तु मत प्रतिशत बढ़ने से लोगों की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में आस्था बनी रहने संबंधी कुछ उम्मीद ज़रूर पैदा हुई है। लोकसभा की कुल 543 सीटों में से अब तक 190 सीटों पर मतदान हो चुका है। आगामी पांच चरणों में 353 सीटों के लिए मतदान होगा। इस बार पहले चरण से चाहे सीटें तो कम हैं परन्तु इसका दायरा भी विशाल है, क्योंकि ये सीटें 12 राज्यों तथा एक केन्द्र शासित प्रदेश तक फैली हुई हैं। इस चरण में केरल की सभी 20 सीटों पर मतदान हुआ है। यह चरण इसलिए दिलचस्प है क्योंकि केरल की वायनाड सीट से राहुल  गांधी, इसी राज्य की तिरुवनंतपुरम सीट से शशि थरूर तथा उत्तर प्रदेश की मथुरा सीट से हेमा मालिनी जैसी शख्सियतों के  चयन हेतु मतदान हुआ है। आगामी पांच चरणों के दौरान 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई तथा एक जून को मतदान होगा। पंजाब की बारी अंतिम चरण में आएगी।
दूसरे चरण के तहत केरल की सभी 20 सीटों के अतिरिक्त कर्नाटक की 28 सीटों में से 14, राजस्थान की 13 सीटों, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश की 8-8 सीटों, मध्य प्रदेश की 6 सीटों, असम तथा बिहार की 5-5 सीटों, छत्तीसगढ़ तथा पश्चिमी बंगाल की 3-3 सीटों तथा मणिपुर, त्रिपुरा एवं जम्मू-कश्मीर की एक-एक सीट पर मतदान हुआ है। इस चरण के दौरान सर्वोच्च न्यायालय की ओर से इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ई.वी.एम्ज़) के संबंध में दिये गये फैसले को इसलिए महत्त्वपूर्ण माना जाएगा क्योंकि पिछले लम्बे समय से इस संबंधी अनेक ही सवाल उठते रहे हैं तथा कई प्रकार के किन्तु-परन्तु भी किये जाते रहे हैं। इन सभी सवालों को एक तरफ रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इन वोटिंग मशीनों को क्लीन चिट दे दी है। चाहे इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इनकी प्रक्रिया में कुछ सुधार करने के निर्देश दिये हैं। आज भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश माना जाता है, क्योंकि अमरीका जैसे देशों में भी इतनी बड़ी संख्या में मतदाता नहीं हैं। इन चुनावों में वोट प्रतिशत चाहे कुछ भी रही हो परन्तु इनमें आम भारतीय नागरिक की दिलचस्पी लगातार बनी रहती है। खास तौर पर उन युवा मतदाताओं में अधिक उत्साह देखा जाता है जिन्होंने पहली बार अपने मत का इस्तेमाल करना होता है। इस बार मुख्य रूप में मुकाबला भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) तथा दूसरी तरफ ‘इंडिया’ गठबंधन की पार्टियों में है। चाहे ‘इंडिया’ गठबंधन ने भारतीय जनता पार्टी के विरुद्ध एकजुट होकर लड़ने का फैसला ज़रूर किया था परन्तु अलग-अलग राज्यों में अनेक ही कारणों के दृष्टिगत यह फैसला सफल नहीं हुआ, जिस कारण इस गठबंधन की ज्यादातर पार्टियों द्वारा अलग-अलग स्तर पर चुनाव लड़े जा रहे हैं, परन्तु इसके बावजूद जहां कहीं भी यह गठबंधन सफल रहा है वहां इसकी शक्ति ज़रूर बढ़ती दिखाई दी है। 
इन चुनावों के अवसर पर अलग-अलग पार्टियों के नेताओं की ओर से किये गये प्रचार में जो कुछ नकारात्मक नुकते उभरे हैं, उनमें धार्मिक भावनाओं को उभार कर लोगों को भावुक करना भी शामिल है परन्तु इसके साथ ही कुछ पार्टियों की ओर से जिस तरह जातिवाद के नाम पर दरार डालने का यत्न किया गया है, उसे भी हम नकारात्मक-पक्षीय प्रक्रिया ही मानते हैं। भारत एक बड़ी जनसंख्या वाला देश है, जिसमें मूलभूत ज़रूरतों की पूर्ति के लिए बड़े यत्नों की ज़रूरत है। खास तौर पर इन चुनावों में बेरोज़गारी तथा बढ़ती महंगाई की समस्याएं उभर कर सामने आई हैं, जो किसी भी बनने वाली आगामी सरकार का ध्यान आकर्षित करती हैं। राष्ट्रीय मामलों के साथ-साथ लोकसभा चुनावों में प्रादेशिक तथा क्षेत्रीय मामले भी उभर कर सामने आये हैं। खास तौर पर क्षेत्रीय पार्टियों से ऐसे मामलों को हल करने की उम्मीद की जाती रही है। वर्ष 1952 में शुरू हुए चुनावों में कांग्रेस के साथ कुछेक और राजनीतिक पार्टियों का भी वजूद बना रहा था, परन्तु समय के व्यतीत होने के साथ आज जहां प्रांतीय तथा क्षेत्रीय पार्टियों की संख्या में वृद्धि है, वहीं इनका बड़ा प्रभाव भी माना जाने लगा है। एन.डी.ए. के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार पिछले 10 वर्ष से देश की राजनीति तथा प्रशासन पर छाई रही है। इस समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उभार भी बना रहा है। अभी भी भारतीय जनता पार्टी की ओर से ये चुनाव मुख्य रूप में मोदी की शख्सियत पर ही लड़े जा रहे हैं। दूसरी तरफ चाहे गठबंधन की पार्टियां अपने-अपने ढंग से पूरा ज़ोर लगा रही हैं परन्तु उनकी एकजुटता में आई दरार ने उनके प्रभाव को एक सीमा तक कम ही किया है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि तीसरे चरण में लोगों का और भी उत्साह देखने को मिलेगा तथा मत प्रतिशत में और भी वृद्धि होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द