अब जागने और जगाने का  समय आ गया....

महिलाएं अपनी ज़िंदगी में घर, काम, परिवार संभालने में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि उपरोक्त बड़े और अहम समाचारों की सुर्खियां भी उनके लिए आम जैसी अखबारी लाइनें बन कर रह जाती हैं। वे धरती और उसके स्रोतों के बारे में चिंतित होना अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझतीं, लेकिन अब जब पानी सिर से बहुत ऊपर निकल गया है, हमें यह समझने और समझाने की ज़रूरत है कि कितनी देर तक हम अपने आस-पास की वायु, पर्यावरण को अनदेखा करके अपनी ज़िंदगी जीते रहेंगे।
धरती दिवस, जल दिवस, पर्यावरण दिवस और पता नहीं कितने ही दिवस आते हैं, जो हमारा ध्यान इस गम्भीर मामले की ओर आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। हमें ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगाते हैं, अपनी ओर ध्यान खींचने की कोशिश करते हैं, जिसको हम सुनकर भी अनसुना कर देते हैं।
प्रदूषण, पर्यावरण परिवर्तन, जैव-विभिन्नता के नुकसान जैसी चीज़ों को हम अपनी प्रतिदिन की ज़िंदगी में कहीं न कहीं देखते हैं या ऐसा कहें कि बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
महिला अपने घर, अपने मोहल्ले, अपनी किट्टी की महिलाओं के साथ मिलकर बहुत प्रयत्न कर सकती है। जैसे कि पौधे लगाना, कम ऊर्जा का प्रयोग करना, पर्यावरण पक्षीय चीज़ें खरीदना, हर प्रकार के प्लास्टिक को न कहना आदि। जब महिलाएं यह लहर गली, मोहल्ले से शुरू करेंगी तो धीरे-धीरे लोग जुड़ते जाएंगे, छोटी लहर से बड़ी लहर बनेगी। महिलाओं में यह शक्ति है कि वे अगर यह काम करने के बारे में सोचती हैं तो उसको बहुत सीमा तक पूरा करती हैं।
 इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रख कर हम इस धरती को बचाने में अपना योगदान डाल सकते हैं। जितना हम पर्यावरण और प्राकृतिक स्रोतों की संभाल के लिए चिंतित होंगे, उतना ही हमसे छोटी पीढ़ी, हमारे बच्चे, हमारी आने वाली पीढ़ी सीखेगी।
‘पर्यावरण के साथ न करें छेड़छाड़
नहीं तो न होगी बचने की कोई आस’
नि:संदेह अब जागने और जगाने का समय आ गया है, हमारी थोड़ी-सी हिस्सेदारी इस धरती को आने वाली पीढ़ियों के लिए रहने योग्य, हरा-भरा और खुशहाल बना सकती है।

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