पंजाब कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल हैं लोकसभा चुनाव

चाहे देर से ही सही, अंतत: कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब की सभी 13 सीटों के लिए अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। लुधियाना से पंजाब कांग्रेस के प्रधान अमरेन्द्र सिंह राजा वड़िंग, जालन्धर से पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, अमृतसर से गुरजीत सिंह औजला, संगरूर से सुखपाल सिंह खैहरा, पटियाला से डा. धर्मवीर गांधी, बठिंडा से जीतमहिन्द्र सिंह, फतेहगढ़ साहिब से डा. अमर सिंह, होशियारपुर से यामिनी गोमर, आनन्दपुर साहिब से विजयइन्द्र सिंगला, फरीदकोट से अमरजीत कौर साहोके, गुरदासपुर से सुखजिन्दर सिंह रंधावा और खडूर साहिब से कुलबीर सिंह ज़ीरा और फिरोजपुर से शेर सिंह घुबाया को टिकट दी गई है। 
इसके साथ ही पंजाब कांग्रेस के नेतृत्व के लिए 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान हुई हार के बाद, यह लोकसभा चुनाव जीतना प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। खासतौर पर पंजाब कांग्रेस के प्रधान अमरेन्द्र सिंह राजा वड़िंग (जो खुद भी लुधियाना से चुनाव लड़ रहे हैं) और पार्टी के वरिष्ठ नेता और पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता स. प्रताप सिंह बाजवा के लिए यह चुनाव एक कठिन परीक्षा की तरह है, क्योंकि उनके जोर देने पर ही पार्टी राज्य में अकेले चुनाव लड़ रही है। नि:संदेह इन चुनावों के परिणामों से ही राज्य में कांग्रेस पार्टी और इसके नेताओं का भविष्य तय होगा।
यदि पंजाब कांग्रेस की बात करें तो विगत समय में जिस तरह राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस में बड़ा जोड़-तोड़ हुआ है, उसी प्रकार पंजाब इकाई में भी बड़े उतार-चढ़ाव आये हैं। इसके अनेक कारण रहे हैं, जिनमें से प्रमुख दो हैं। पहला यह कि कांग्रेस हाईकमान पंजाब कांग्रेस की गुटबाज़ी को नियंत्रिण करने में बुरी तरह असफल रही, बल्कि इसने पंजाब में पार्टी से संबंधित जो भी फैसले लिए हैं, उनके साथ पंजाब कांग्रेस में न केवल गुटबाजी और बढ़ती रही, बल्कि वह और भी कमजोर होती चली गई। इसके बड़़े-बड़े नेता पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टियों में शामिल होते गये और पार्टी में अनुशासनहीनता भी बढ़ती गई। इस प्रकार की स्थिति में ही पार्टी 2022 के विधानसभा चुनाव बुरी तरह हार गई थी।
2017 के विधानसभा चुनावों में पंजाब कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थीं, और इसने 38.5 प्रतिशत मत प्राप्त किये थे। इन चुनावों के बाद कैप्टन अमरेन्द्र सिंह मुख्यमंत्री बने और वह 18 सितम्बर, 2021 तक मुख्यमंत्री के पद पर कायम रहे। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के मुख्यमंत्री के तौर पर आम लोगों की पहुंच में न रहने के कारण और 2020 में कोरोना की आमद से सरकार के कामकाज में आई जड़ता के कारण, चाहे कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की सरकार लोगों में बहुत लोकप्रिय नहीं रहे, लेकिन फिर भी उसकी हालत इतनी ज्यादा दयनीय नहीं थी, कि वह 2022 के विधानसभा चुनावों का सामना नहीं कर सकती। इस समय के दौरान हुआ यह कि कांग्रेस हाईकमान ने सुनील जाखड़ को पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष के पद से हटाकर नवजोत सिंह सिद्धू को प्रधान बना दिया। वह न तो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के साथ अपना तालमेल बिठा सके और न ही पार्टी के अन्य नेताओं को अपने साथ लेकर चल सके। कांग्रेस हाईकमान में नवजोत सिंह सिद्धू के प्रभाव से कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को भी मुख्यमंत्री के पद से हटना पड़ा और उनके स्थान पर चरणजीत सिंह चन्नी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। नवजोत सिंह सिद्धू चरणजीत सिंह चन्नी के साथ भी बहुत अच्छा तालमेल बनाकर नहीं चल सके। पार्टी में गुटबाज़ी बरकरार रही, जिसके कारण 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी बुरी तरह हार गई। इसको सिर्फ 18 सीटें प्राप्त हो सकीं और इसका मत प्रतिशत भी 38.5 प्रतिशत से कम होकर 22.98 प्रतिशत ही रह गया। इन चुनावों में आम आदमी पार्टी को बड़ी सफलता प्राप्त हुई और उसने 92 सीटें प्राप्त कीं। उसका वोट प्रतिशत भी 24 प्रतिशत से बढ़कर 42.01 प्रतिशत हो गया और भगवंत मान राज्य के मुख्यमंत्री बन गये। इन चुनावों से पहले दो नवम्बर, 2021 को कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर अपनी अलग पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बनाई और भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़े। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की पार्टी के अलावा भाजपा ने सुखदेव सिंह ढींडसा के नेतृत्व वाले अकाली दल (संयुक्त) के साथ भी चुनाव समझौता किया था, लेकिन इस गठबंधन को समूचे तौर पर बहुत अधिक सफलता न मिल सकी। भारतीय जनता पार्टी को तो दो सीटें प्राप्त हुईं, लेकिन कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की पार्टी और अकाली दल (संयुक्त) कोई भी सीट जीतने में सफल नहीं हो सके। शिरोमणि अकाली दल को तीन और बसपा को सिर्फ एक सीट मिली। इसके बाद कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस को भाजपा में मिला दिया और आप भी कांग्रेस के बहुत से वरिष्ठ नेताओं के साथ भाजपा में शामिल हो गये। इस दौरान पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रधान सुनील जाखड़ भी कांग्रेस छोड़ गये, क्योंकि वह इस बात से नाराज़ थे कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को हटाने के बाद वह वरिष्ठ नेता थे लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने उनको मुख्यमंत्री बनाने के स्थान पर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया था।
इस प्रकार के घटनाक्रम ने पंजाब कांग्रेस को बेहद नुकसान पहुंचाया। सुनील जाखड़ के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस हाईकमान द्वारा अमरिन्द्र सिंह राजा वड़िंग को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया तथा प्रताप सिंह बाजवा को कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया और पंजाब विधानसभा में कांग्रेस पार्टी 18 सदस्यों के साथ दूसरी बड़ी पार्टी होने के कारण, वह राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता भी बन गए। इन बड़े परिवर्तनों के बावजूद पंजाब कांग्रेस का संकट नहीं थमा। जिस प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को छोड़ कर बड़े-छोटे नेता भाजपा में शामिल होते रहे, उसी प्रकार पंजाब कांग्रेस के नेता भी पार्टी को छोड़ कर दूसरी पार्टियों की ओर निरन्तर जाते रहे। जालन्धर लोकसभा सीट से उप-चुनाव के समय सुशील रिंकू पार्टी छोड़ कर आम आदमी पार्टी में शामिल होकर चुनाव जीत गए। इसके बाद वह भाजपा में चले गए। अधिक और पीछे न भी जाएं तो विगत कुछ माह में ही पार्टी के कई अन्य वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़ कर भाजपा या आम आदमी पार्टी में शामिल हो चुके हैं। इनमें रवनीत सिंह बिट्टू, परनीत कौर, करमजीत कौर (चौधरी संतोख सिंह की पत्नी) तथा तेजिन्द्र सिंह बिट्टू आदि शामिल हैं, जो भाजपा में चले गए हैं। फिल्लौर से कांग्रेसी विधायक विक्रमजीत सिंह को पार्टी ने स्वयं ही निलम्बित कर दिया है। डा. राज कुमार चब्बेवाल तथा दलवीर सिंह गोल्डी भी आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं। इसके एक और वरिष्ठ नेता तथा पूर्व सांसद महिन्द्र सिंह के.पी. शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गए हैं। 
इस प्रकार की स्थितियों में अब पंजाब कांग्रेस लोकसभा चुनावों का सामना कर रही है। इस संबंध में विशेष बात यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर आम आदमी पार्टी इंडिया गठबंधन का हिस्सा है और दिल्ली, हरियाणा, गुजरात में वह कांग्रेस की चुनावी सहयोगी है, परन्तु पंजाब में कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी दोनों अलग-अलग तौर पर चुनाव लड़ रही हैं। इसका बड़ा कारण यह है कि विगत दो वर्षों के दौरान भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर अपने विरोधियों को विजीलैंस के माध्यम से अपमानित करने, परेशान करने तथा झूठे-सच्चे केसों में फंसा कर उनकी छवि को धूमिल करने का जो सिलसिला शुरू किया था, उस कारण पंजाब कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी के स्थानीय नेतृत्व में टकराव एवं तनाव काफी सीमा तक बढ़ता गया था, जिस कारण पंजाब के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने कांग्रेस हाईकमान को स्पष्ट रूप में कह दिया था कि वे आम आदमी पार्टी के साथ मिल कर चुनाव नहीं लड़ सकते। उन्होंने हाईकमान को यहां तक भी कह दिया था कि यदि उन्हें समझौते के लिए मजबूर किया गया तो वे चुनावी गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे। इसके दृष्टिगत कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब में आम आदमी पार्टी के साथ चुनावी समझौता के लिए अपनी इकाई को मजबूर नहीं किया।
यदि पंजाब कांग्रेस की चुनावी सम्भावनाओं की बात करें तो वर्तमान राजनीतिक स्थिति यह है कि राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार अपना दो वर्ष का कार्यकाल पूरा कर चुकी है और उसकी घटिया कारगुज़ारी के कारण उसके खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान उभर चुका है। राज्य की दूसरी बड़ी पार्टी शिरोमणि अकाली दल अपने सभी यत्नों के बावजूद अभी भी पूरी तरह अपने पांवों पर खड़ा होते दिखाई नहीं दे रहा। भारतीय जनता पार्टी में चाहे गत समय में पंजाब के बहुत-से कांग्रेसी तथा गैर-कांग्रेसी नेता शामिल हुए हैं और उसकी पहले से ताकत भी बढ़ी है, परन्तु राज्य में किसानों द्वारा लगातार उसके उम्मीदवारों का विरोध किए जाने के कारण उसके लिए स्थितियां बेहद कठिन बनी हुई हैं। वैसे भी देहाती क्षेत्रों में अभी भी भाजपा का अधिक मज़बूत आधार नहीं बना। भाजपा की हिन्दुत्ववादी विचारधारा भी राज्य के बहुत-से लोगों को पसंद नहीं है। बसपा तथा वाम दल भी लोकसभा के चुनावों के पक्ष से इतने समर्थ दिखाई नहीं देते। समूचे तौर पर राजनीतिक स्थिति पंजाब कांग्रेस के पक्ष में बनी दिखाई दे रही है, परन्तु यदि वह अपनी गुटबंदी तथा अपनी अन्य संगठनात्मक समस्याओं को सुलझाने में अभी भी सफल नहीं होती तो सफलता इसके हाथ से खिसक भी सकती है, क्योंकि अभी भी पार्टी में गुटबंदी बनी हुई है। नवजोत सिंह सिद्धू ने चुनाव प्रचार से दूरी बनाई हुई है। 
दूसरी ओर कांग्रेस हाईकमान ने जिस ढंग से सीटों का विभाजन किया है, उस कारण भी भिन्न-भिन्न लोकसभा क्षेत्रों में पार्टी के अनेक नेताओं में नाराज़गी पाई जा रही है। एक और बात यह भी हुई है कि कांग्रेस हाईकमान ने जिन उम्मीदवारों को लोकसभा चुनावों के लिए टिकटें दी हैं, उन्हें अपने क्षेत्रों से दूर के क्षेत्रों में टिकटें दी गई हैं। इस कारण भी जहां पार्टी नेताओं में नाराज़गी है, वहीं दूसरे स्थान पर जाकर उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने में भी मुश्किलें आ रही हैं। इसके बावजूद वर्तमान राजनीतिक स्थितियों में यदि पार्टी समुचित रणनीति तथा हौसले से लड़ाई लड़ती है तो यह बेहतर कारगुज़ारी दिखा सकती है, क्योंकि कई पक्षों से स्थितियां अभी भी उसके पक्ष में हैं। लोकसभा चुनावों के दृष्टिगत जो चुनाव सर्वेक्षण सामने आए हैं, उनमें कांग्रेस पार्टी को दूसरी पार्टियों के मुकाबले काफी आगे बताया जा रहा है और कई सर्वेक्षणों में तो कांग्रेस पार्टी को 8 लोकसभा सीटें भी दी गई हैं। 
अब यह देखना बनता है कि पंजाब कांग्रेस अपनी सभी मुश्किलों पर नियंत्रण करके तथा अपने भीतर विश्वास की भावना पैदा करके कितने बेहतर ढंग से इन लोकसभा चुनावों का सामना करती है। 

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