बढ़ता ही जा रहा है हथियारों का वैश्विक बाज़ार

एक तरफ भाजपा ने रक्षा क्षेत्र में देश की आत्मनिर्भरता का श्रेय लेने वाला पोस्टर जारी किया तो दूसरी तरफ  ‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (सीपरी) ने हथियारों की वैश्विक खरीद को लेकर ताज़ा आंकड़े जारी कर दिए। न्यूयार्क से जारी इन आंकड़ों के मुताबिक हथियार आयातक देशों ने पिछले साल की अपनी कुल खरीद से इस क्षेत्र में कीर्तिमान रचने के साथ ही अब तक का सबसे ऊंचा रिकॉर्ड बना दिया है। पिछले साल इस मद में कुल 24 अरब डॉलर की राशि खर्च हुई है। रूस और इज़राइल जैसे देशों ने एक बराबर खरीदारी की है। इन दोनों देशों की कुल हथियार खरीद में 24-24 फीसदी का हिस्सा रहा यानी लगभग आधी खरीदारी तो इन दोनों युद्धग्रस्त देशों ने ही कर डाली। यूक्रेन और कुछ दूसरे देश लगातार मांग कर रहे हैं कि उन्हें शीघ्र ही और हथियार चाहिये और वे इसकी प्राप्ति के लिये प्रयासरत हैं। ताइवान ने यदि चीन से आशंकाग्रस्त होकर इस खरीद में 11 फीसदी की हिस्सेदारी निभाई है तो जापान ने भी इतनी ही कीमत के हथियार किस आशंका के चलते खरीदे, यह शोचनीय है? सऊदी अरब अगर कुल हथियार खरीद में सवा चार फीसदी की हिस्सेदारी रखता है तो खाड़ी में उसकी भू-राजनीतिक स्थिति तथा सामरिक रणनीति को देखते हुए उसे ठीक ठहराया जा सकता है। मगर हथियारों की खरीद में शांतिकामी भारत ने भी ठीक उतनी ही हिस्सेदारी निभाई है, बेशक यह उसकी क्षेत्रीय सामरिक चुनौतियों, भारी भरकम सेना और  उसकी ज़रूरतों  को देखते हुए आवश्यक था।
खैर तर्क कुछ भी हो, हथियार बाज़ार और उसकी खरीद-फरोख्त में चढ़ाव का सीधा मतलब है कि विश्व शांति उतार पर है। यूक्रेन-रूस युद्ध ने 2009 से मंद पड़ते जा रहे हथियारों के कारोबार को जैसे ही नई गति दी कि कारोबारी देशों ने इस व्यवसाय को अपने कौशल, कमीशन और कारगुजारियों से इसना आगे बढाया कि ‘ट्रेंड्स इन वर्ल्ड मिलिट्री एक्सपेंडिचर’ समीक्षा के मुताबिक  इसकी विकास दर सात फीसदी तक पहुंच गई है। इज़रायल के ईरान पर हमले के बाद ईरान की खामोशी को ज्यादातर लोगों द्वारा सकारात्मक तौर पर देखना उचित ही है, संभव है दोनों आशंकित मुठभेड़ के बाद की जटिलताओं के मद्देनज़र महज कूटनीति से ही काम चलाएं, युद्ध के रास्ते पर आगे कदम न बढ़ाए, यदि दोनों पक्ष देर-सवेर युद्ध के रास्ते पर उतरते हैं तो हथियारों के बाज़ार में तेजी आएगी। यूक्रेन और रूस के युद्ध के बाद हथियार बाज़ार पहले से ही सात ्रफीसदी की उठान पर चल रहा है, नया युद्ध इसे और बढ़ा देगा। ईरान-इज़रायल के बीच यदि युद्ध हुआ तो प्रयुक्त हथियारों और उनकी खपत तथा आपूर्ति के अलावा भी इस मामले में इस क्रिया और प्रतिक्रिया का प्रभाव व्यापक होगा तथा तमाम तरह के भू-राजनीतिक तथा सामरिक समीकरण इसके लिये काम कर रहे होंगे। ऐसे में नए हथियारों के ग्राहक सीमित नहीं रहेंगे। फिलवक्त संसार के कुल 32 छोटे-बड़े देश युद्धरत हैं और दूसरे शताधिक स्थानों पर व्यापक अशांति का माहौल है। अनेक देश अपनी सकल घरेलू आय का बड़ा हिस्सा हथियारों पर व्यय कर रहे हैं। अशांति और युद्ध का हथियारों से सीधा नाता है।
जब दुनिया के लगभग सभी देश अपनी रक्षा क्षेत्र की ज़रूरतों के लिये भारी आयात पर निर्भर हों, उस समय भारत सरकार की यह घोषणा वाकई सुखद अहसास देती है कि रक्षा क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर हो गया है। यह नि:संदेह बहुत बड़ी उपलब्धि है। खासतौर पर तब जब देश रक्षा क्षेत्र में परम्परागत तौर पर दूसरे देशों के उत्पादों, उपस्करों, हथियारों और दूसरे साजो सामान पर अधिकतम निर्भर रहा हो। हमारी सेना के हाथ अमूमन रूस, अमरीका, फ्रांस, इज़रायल वगैरह के हथियार रहे हैं। इनके ही लड़ाकू विमानों से हमने जंग लड़ी। बात मात्र साजो सामान और हथियार की ही नहीं, कई तकनीक प्रणालियां भी हम आयातित ही इस्तेमाल करते रहे हैं। नौसेना में तो ऐसा बहुत ज्यादा है। ऐसे में भले यह चुनावी प्रचार ही क्यों न हो, सैन्य क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की बात सुखद लगती है। हालांकि यह कहना कि भारत रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया है या आत्मनिर्भरता के आसपास पहुंच गया है, अतिशयोक्ति होगी। रूसी राष्ट्रपति पुतिन तो पचास फीसदी से ज्यादा का दावा किया है परन्तु सच यही है कि हम आज भी तकरीबन 36 प्रतिशत रूसी हथियार इस्तेमाल कर रहे हैं। बाकी देशों के हथियार भी हमारे पास कम नहीं है। बेशक हम आज भी हथियारों और दूसरे बहुत-से सैन्य साजो-सामान के लिये पूर्णतया आत्मनिर्भर नहीं हैं, लेकिन जो लोग इस सरकारी प्रचार को भ्रामक बता रहे हैं, इसे सिरे से खारिज करते हुए अतिरेकी दावा और तथ्यातीत बता रहे हैं, वे भी सही नहीं हैं। असल में भारत आज भी संसार का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है, जो इस मामले में हमेशा ही ऊपर के पांच देशों में रहा है। पिछली साल दुनिया भर में जितने हथियार बिके उसका लगभग दस फीसदी अकेले भारत ने खरीदा है। दूसरे के हथियारों, तकनीक प्रणालियों को हासिल करने के लगातार उपक्रम करने वाला कोई देश यह कैसे कह सकता है कि वह हथियारों या रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर है।
नि:संदेह जो थोड़े भी जागरूक होंगे, वे सरकारी प्रचार को लेकर किन्तु-परन्तु करेंगे। पर ताज़ा आंकड़े यह साबित करते हैं कि भले ही भारत अभी रक्षा क्षेत्र में पूरी तरह आत्मनिर्भर न बना हो, परन्तु वह इस तरफ  तेजी से आगे बढ़ा है। विपरीत परिस्थितियों में जब हर तरफ हथियारों की खरीद के लिए होड़ लगी हुई हो, महज मुट्ठीभर हथियार उत्पादक देशों का हथियार बाज़ार पर कब्जा हो और वही यह तय करें कि किस देश को कौन-सा हथियार देना है, क्या नहीं देना है, कब देना है और किसके खिलाफ किसे आयुध नहीं देने हैं, उस दौर में भारत दुनिया के 85 से ज्यादा देशों को हथियार और युद्धक प्रणालियां बेच रहा है। तेजस जैसे भारतीय युद्धक विमानों की कई देशों में भारी मांग है। इस सूची में शीघ्र ही और बढ़त हो सकती है।  -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर