निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर उठने लगे सवाल

  • निर्वाचन आयोग को एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संवैधानिक संस्था माना जाता है। वह खुद भी अपने को ऐसा ही दिखाना चाहता है, लेकिन उसकी कार्यशैली बताती है कि वह अब ऐसा नहीं रहा। जैसे चुनाव प्रचार के दौरान वह भाजपा और उसके सहयोगी दलों के अलावा बाकी सभी पार्टियों के नेताओं के हैलीकॉप्टर की तलाशी ले रहा है। हालांकि इस चुनाव में सबसे ज्यादा हैलीकॉप्टर भाजपा के उड़ रहे हैं, लेकिन निर्वाचन आयोग की नज़र उन पर नहीं पड़ रही है। निर्वाचन आयोग के इसी तरह की कार्यशैली की वजह से उसे भाजपा की सहयोगी पार्टी कहा जाने लगा है। उसने अभी तक जिन विपक्षी नेताओं के हैलीकॉप्टर की तलाशी ली है, उसमें उसे कुछ नहीं मिला है। पिछले दिनों निर्वाचन आयोग की टीम ने तमिलनाडु के नीलगिरी में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के हैलीकॉप्टर की तलाशी ली थी, लेकिन उसमें भी कुछ मिला नहीं था। इसके बावजूद निर्वाचन आयोग ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। अभी 30 मई तक चुनाव प्रचार चलेगा, लिहाजा आयोग को उम्मीद है कि किसी न किसी दिन तो कुछ मिलेगा। बहरहाल अब विपक्षी पार्टियां चुनाव आयोग को चुनौती दे रही हैं कि हिम्मत है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या किसी दूसरे भाजपा नेता के हैलीकॉप्टर की जांच करे, लेकिन लगता नहीं है कि आयोग इस चुनौती को स्वीकार करने की हिम्मत दिखाएगा, क्योंकि उसे मालूम है कि कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। ईवीएम पर सुनवाई के दौरान उसके पक्ष में की गई सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से भी उसके हौसले बुलंद हैं। 

भाजपा सहयोगी परेशान 
लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पसंदीदा हिंदू-मुस्लिम मुद्दे पर आ गए हैं। उन्होंने कहना शुरू कर दिया है कि उनके जीवित रहते धर्म के आधार पर मुसलमानों को आरक्षण नहीं मिल सकता है। इससे पहले वह कह रहे थे कि कांग्रेस आएगी तो एस.सी., एस.टी. और ओ.बी.सी. का आरक्षण छीन कर मुसलमानों को दे देगी। अब इससे आगे बढ़ कर वह कह रहे हैं कि उनके जीवित रहते ऐसा नहीं होगा। प्रधानमंत्री मोदी के इन बयानों से कम से कम दो राज्यों में भाजपा की सहयोगी पार्टियों की मुश्किल बढ़ी हैं। आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में कांग्रेस की तीन सहयोगी पार्टियों की चिंता बढ़ी है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में भाजपा के सहयोगी अजित पवार ने मुसलमानों के लिए चार फीसदी आरक्षण की बात कही है। उन्हें पता है कि उन्हें गठबंधन में जो भी चार सीटें मिली हैं, उन पर जीतने के लिए कुछ मुस्लिम वोटों की ज़रूरत होगी। इसीलिए उन्होंने आरक्षण की बात कही, लेकिन मोदी की टिप्पणी के बाद यह रास्ता बंद हो गया है। इसी तरह आंध्र प्रदेश में भाजपा की दोनों सहयोगी पार्टियां—तेलुगू देशम पार्टी और जन सेना पार्टी भी मुस्लिम आरक्षण की समर्थक हैं। उन्हें भी लग रहा है कि जगन मोहन रेड्डी को हराने के लिए कुछ मुस्लिम वोटों की ज़रूरत होगी। दूसरी ओर भाजपा को उत्तर और पश्चिमी राज्यों में हिंदू ध्रुवीकरण की ज़रूरत महसूस हो रही है। इसलिए मोदी मुस्लिम आरक्षण की बात जोर-शोर से उठा रहे हैं। 
आचार संहिता के नियम बदले
चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बचाने के लिए निर्वाचन आयोग ने नियम ही बदल दिया है। आयोग ने अब तय किया है कि अगर किसी पार्टी के स्टार प्रचारकों में से कोई आचार संहिता का उल्लंघन करता है तो उसको निजी तौर पर नोटिस देने की बजाय उसकी पार्टी के अध्यक्ष को नोटिस भेजा जाएगा। नियम में यह बदलाव तब किया गया, जब कांग्रेस और अन्य पार्टियों ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ करीब 20 शिकायतें दर्ज करवाईं। ‘मंगलसूत्र छीन कर घुसपैठियों और ज्यादा बच्चे वालों को देने’ के उनके बयान को लेकर शिकायत की गई थी, लेकिन निर्वाचन आयोग ने नियम बदल कर भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को नोटिस भेजा। राहुल गांधी के खिलाफ मिली शिकायत पर भी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को नोटिस भेजा गया है और शेष स्टार प्रचारकों के मामले में भी ऐसा ही होगा, लेकिन ये सब सहायक लाभार्थी हैं। नियम इनके लिए नहीं, प्रधानमंत्री के लिए बदला गया, जिसका फायदा इनको भी मिल जाएगा। गौरतलब है कि पिछले चुनाव के समय भी प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायतों पर कार्रवाई को लेकर आयोग में चर्चा हुई थी और तब के चुनाव आयुक्त अशोक लवासा नोटिस भेजने के पक्ष में थे, लेकिन उनकी राय को दरकिनार कर प्रधानमंत्री को नोटिस नहीं भेजा गया था। बाद में लवासा को इस्तीफा देना पड़ा और उनके करीबी रिश्तेदारों के यहां केंद्रीय एजैंसियों के छापे भी पड़े। ऐसी कोई अप्रिय स्थिति न पैदा हो, इसलिए चुनाव आयोग ने नोटिस भेजने का नियम ही बदल दिया।
महिला मतदाताओं में उत्साह नहीं
लोकसभा चुनाव 2024 के पहले दो चरण के मतदान के आंकड़ों को लेकर लोगों की एक दिलचस्पी इस बात में भी है कि महिलाओं ने कितना मतदान किया। चुनाव आयोग के मुताबिक पहले दो चरण में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से कम रहा। पुरुषों ने 66.21 फीसदी मतदान किया तो दूसरी ओर 66.07 फीसदी महिलाओं ने वोट डाले। महिलाओं का वोट पुरुषों के मुकाबले तो कम है ही, पिछली बार के मुकाबले तीन फीसदी से अधिक कम है। पिछले कुछ समय से महिलाएं बड़ी संख्या में वोट डाल रही हैं और उसका फायदा भाजपा को हो रहा है। पूरे देश में महिलाओं का मतदान बढ़ने का फायदा भाजपा को है तो कई राज्यों में प्रादेशिक पार्टियों को भी इसका लाभ मिलता है। जैसे बिहार में नितीश कुमार की पार्टी को महिला मतदान बढ़ने का फायदा होता है। इसी तरह ओडिशा में नवीन पटनायक को इसका फायदा मिलता है। लोकसभा चुनाव में महिलाओं के ज़्यादा वोट डालने का स्पष्ट फायदा भाजपा और नरेंद्र मोदी को होता है। पिछले दो चुनावों में महिलाओं के मतदान प्रतिशत में जबरदस्त इजाफा हुआ है। 2009 के लोकसभा चुनाव में कुल 42 करोड़ वोट पड़े थे, जिनमें से 19 करोड़ महिलाओं के वोट थे, लेकिन 2014 में 55 करोड़ वोट पड़े जिनमें महिलाओं के 26 करोड़ थे। 2019 के चुनाव में कुल 62 करोड़ वोट पड़े, जिनमें महिलाओं के वोट 30 करोड़ थे। अब 2024 में महिलाओं के वोट प्रतिशत में गिरावट आ रही है तो इसका नुकसान भाजपा को हो सकता है।
अदालतों का ही सहारा
देश की राजनीति में उत्तर और दक्षिण के विभाजन की चर्चा के बीच ऐसा लग रहा है कि दक्षिणी राज्यों की गैर-भाजपा सरकारों को केंद्र के साथ अपने विवाद सुलझाने में अदालतों का ही सहारा है। तीन राज्यों—केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक का विवाद अभी सुप्रीम कोर्ट ने सुलझाया है और राहत दिलाई है। पिछले कई महीनों से तमिलनाडु और कर्नाटक आपदा राहत की मद में मिलने वाली राशि के लिए संघर्ष कर रहे थे तो केरल और तमिलनाडु की सरकारें इस बात से भी परेशान थीं कि राज्यपाल विधानसभा से पारित विधेयकों को मंज़ूरी नहीं दे रहे। इन सबकी शिकायत सुप्रीम कोर्ट में पहुंची थी और सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र व राज्य के बढ़ते विवाद पर चिन्ता जताई थी। अंत में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तमिलनाडु और कर्नाटक दोनों को आपदा राहत की मद में पैसे मिले हैं। हालांकि दोनों सरकारों का कहना है कि उनकी जितनी ज़रूरत है या उनका जितना हक बनता है, उससे कम पैसा मिला है। फिर भी दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने सुप्रीम कोर्ट का आभार जताया है। वैसे यह विशुद्ध कार्यकारी फैसला है, जो केंद्र और राज्य के स्तर पर होना चाहिए लेकिन इसमें भी सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ रहा है। इसी तरह सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचने के बाद केरल के राज्यपाल ने लम्बे समय से अटके पांच विधेयकों को मंज़ूरी दी। इस पर केरल के मुख्यमंत्री ने भी कहा है कि मामला जब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तभी राज्यपाल ने मंज़ूरी दी है।