प्रेरक प्रसंग-अनोखा समाधान

पुराने समय की बात है कि एक व्यक्ति अपनी किसी रिश्तेदारी में गया। उस समय आज की तरह यातायात के साधन तो थे नहीं अत: पैदल ही आना-जाना पड़ता था। रिश्तेदारी थी तो नज़दीक पर दूसरे सूबे (राज्य) में पड़ती थी। सूबे का बॉर्डर पार करके जाना होता था। रिश्तेदारों के यहां उस साल ख़ूब ईंख पैदा हुई थी और उन्होंने ईंख से ढेर सारा गुड़ बनवाया था। वह व्यक्ति कई दिन रिश्तेदारी में रुका और जी भरकर गुड़ का स्वाद लिया। वापसी में भी रिश्तेदारों ने उसे घर ले जाने के लिए गुड़ की एक भेली बांध दी थी। उस समय एक सूबे से दूसरे सूबे में गुड़ व खांड आदि पदार्थ ले जाने की मनाही थी और यदि कोई एक सूबे से दूसरे सूबे में गुड़ व खांड आदि पदार्थ ले जाता था तो उसे महसूल (कर) देना पड़ता था जो काफी होता था। जब वह वापस लौट रहा था तो सूबे के बॉर्डर पर तैनात कर्मचारियों ने उससे महसूल मांगा। उसके पास एक भेली गुड़ तो था पर महसूल देने के लिए पैसे नहीं थे।
उसने कहा भी कि वो ये गुड़ बच्चों के लिए ले जा रहा है व्यापार के लिए नहीं पर कर्मचारियों ने उसकी एक न सुनी और उसे वहीं बिठा लिया। थोड़ी देर बाद उस व्यक्ति को भूख लग आई। गुड़ के अलावा उसके पास और कुछ था नहीं जिसे खाकर वह अपनी भूख मिटा पाता अत: उसने गुड़ की भेली से एक टुकड़ा तोड़ा और खा लिया। उसके थोड़ी देर बाद फिर भूख लगी तो थोड़ा-सा गुड़ और खा लिया। इस तरह तीन-चार घंटे में वह काफी गुड़ खा गया। उसने सोचा कि महसूल अदा किए बिना तो ये लोग जाने नहीं देंगे इसलिए क्यों न पूरी भेली ही ख़त्म कर डालूं। वह धीरे-धीरे सारा गुड़ खा गया। सारा गुड़ ख़त्म होने के बाद वह चलने लगा तो कर्मचारियों ने उससे कहा कि गुड़ का महसूल अदा किए बिना वह नहीं जा सकता। उसने बतलाया कि गुड़ तो वह सारा का सारा खा चुका है इसलिए महसूल किस बात का ? उसकी खुराक और उसके इस अनोखे समाधान से बॉर्डर पर तैनात कर्मचारी भी हंसने लगे। (सुमन सागर)