अंटार्कटिका में घट रही बर्फ चिंता का विषय

जलवायु परिवर्तन के संकेत अब अंधी आंखों से भी दिखने लगे है। नए शोध बताते हैं कि अंटार्कटिका से हिमखंड तो टूट ही रहे हैं, वायुमंडल का तापमान बढ़ने के कारण बर्फ भी तेज़ी से पिघल रही है। जलवायु बदलाव का बड़ा संकेत संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में भी देखने में आया है। बीते 75 सालों में यहां सबसे अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई है। 24 घंटे में 10 इंच से ज्यादा हुई इस बारिश ने रेगिस्तान के बड़े भू-भाग को दरिया में बदल दिया है। मौसम विभाग द्वारा मिले संकेतों के चलते यूएई का प्रशासन सतर्क था। इस कारण जन एवं पशुहानि तो नहीं हुई, लेकिन तबाही का मंजर आधुनिक कहे जाने वाले शहरों में देखने में आया। सड़कों पर गाड़ियां तैरती नज़र आईं, वहीं दुनिया का सबसे व्यस्त दुबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्ढा एक बड़े तालाब में बदल गया। भारत समेत अनेक देशों ने अपनी हवाई यात्राओं पर विराम लगा दिया और यात्रियों को चेताया कि फिलहाल दुबई बहरीन, कतर और सऊदी अरब जैसे देशों में न जाएं। इधर 1986 में अंटार्कटिका से टूटकर अलग हुआ जो हिमखंड स्थिर बना हुआ था। वह अब 37 साल बाद समुद्री सतह पर बहने लगा है। उपग्रह से लिए चित्रों से पता चला है कि करीब एक लाख करोड़ टन वजनी यह हिमखंड अब तेज़ हवाओं और जल धाराओं के चलते अंटार्कटिका के प्रायद्वीप के उत्तरी सिरे की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। यह हिमखंड करीब 4000 वर्ग किमी में फैला हुआ है, आकार में यह मुंबई के क्षेत्रफल 603 वर्ग किमी के करीब छह गुना बड़ा है। इसकी ऊंचाई 400 मीटर है। यह जिस महानगर की सीमा से टकराएगा, वहां प्रलय का तांडव होगा। उत्तरी धु्रव अर्थात आर्कटिक पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव में आते-जाने के शोध अध्ययन लगातार आ रहे हैं। ये अध्ययन विशाल आकार के हिमखंडों के पिघलने, टूटने, दरारें पड़ने पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के खिसकने, धु्रवीय भालुओं के मानव आबांदियों में धुसने और सील मछलियों में कमी, ऐसे प्राकृतिक संकेत हैं, जो पृथ्वी के बढ़ते तापमान का आर्कटिक पर प्रभाव प्रगट करने वाले हैं। पर्यावरण विज्ञानी इस बदलाव को समुद्री जीवों, जहाजो, पेंगुइन और छोटे द्वीपों एवं महानगरों पर स्थित बड़ी आबादियों के लिए एक बड़े खतरे के रूप में देख रहे है। बीते 40 सालों में बीते एक दशक के भीतर ऐसी खबरें ज्यादा आई हैं। विशेष तौर से उत्तरी धु्रव की स्थिति की जानकारी देने के लिए सजग प्रहरी के रूप में अनेक उपग्रहों की तैनाती दुनिया के देशों ने की हुई है। अमरीका के ‘नेशनल स्नो एंड साइंस डाटा सेंटर’ के अध्ययन को सत्य मानें तो वर्ष 2014 में ही उत्तरी धु्रव के 32.90 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में बर्फ की परत पिघली है। यह क्षेत्रफल लगभग भारत-भूमि के बराबर है। इस संस्थान के अनुसार 1979 में उत्तरी धु्रव पर बर्फ जितनी कठोर थी, अब नहीं रह गई है। इसके ठोस हिमतल में 40 प्रतिशत की कमी आई है।
क्षेत्रफल के हिसाब से आंकलन करें तो अंटार्कटिका 5वां सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह दक्षिणी गोलार्थ में करीब 20 प्रतिशत हिस्से को अपनी बर्फीली चादर से ढके हुए है। इसमें दक्षिणी धु्रव भी समाहित है। लगभग नाशपाती के आकार की पृथ्वी के दो धु्रव माने जाते हैं। इन्हें उत्तरी और दक्षिणी धु्रवों के नामों से जाना जाता है। भूमध्य या विशुवत् रेखा इन दोनों धु्रवों से लगभग समान दूरी बनाए रखते हुए बीच से गुजरती है। इसीलिए इसे भूमध्य रेखा भी कहा जाता है। हालांकि इसे पृथ्वी की नाप के लिए काल्पनिक रेखा इसलिए माना गया है, क्योंकि यह उत्कीर्ण नहीं है। लेकिन पृथ्वी के केन्द्र से गुजरने वाली इस रेखा की विशेषता यह है कि भूमध्य रेखा एक उभरे हुए भाग में दिखाई देती है। इस रेखा पर अर्धव्यास 6378.14 मीटर धु्रवों के अर्धव्यास 6356.79 किमी से करीब 21 किमी अधिक है। यह अतिरिक्त अर्धव्यास ही पृथ्वी के समीप की कुछ कक्षाओं में अंतर उत्पन्न करता है। जैसे ही पूर्व की ओर जाने वाला उपग्रह दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तरी गोलार्द्ध की ओर जाता है, उसका कक्षीय तल विशुवत् रेखा पर गुरुत्वाकर्शण के प्रभाव के कारण पश्चिमोन्मुखी हो जाता है। यदि उपग्रह उसी दिशा में पूर्व की ओर जाता है तो कक्षीय तल पूर्वोन्मुखी हो जाता है। इस रेखा पर पूरे वर्ष दिन-रात बराबर होते हैं, इसलिए इसे विशुवत् रेखा कहा गया है।
उत्तरी धु्रव का कुल क्षेत्रफल 2.1 करोड वर्ग किमी है। इसमें से 1.30 करोड़ वर्ग किमी क्षेत्र की सतह बर्फ की मोटी परत से ढकी हुई है। बर्फ से आच्छादित होने के कारण यहां का औसत तापमान ऋणात्मक 10 डिग्री सेल्सियस है। जाड़ों में यह 68 डिग्री तक ऋणात्मक हो जाता है। बर्फ से ढके इसी क्षेत्र को आर्कटिक महासागर कहा जाता है। यह पांच महासागरों में से एक है। लेकिन सबसे छोटा समुद्र है। सामान्यत: आर्कटिक का उल्लेख उस भाग के परिप्रेक्ष्य में होता है, जो आर्कटिक उत्तरी गोलार्द्ध (उत्तर में 66.30 अधिकांश) उत्तरी धु्रव को घेरे हुए है। आर्कटिक का भू-क्षेत्र रूस के साइबेरिया के किनारों, आइसलैंड, ग्रीनलैंड, उत्तरी डेनमार्क, नार्वे, फिनलैंड, स्वीडन, अमरीका, अलास्का, कनाडा का अधिकांश उत्तरी महाद्वीपीय भाग और आर्कटिक टापुओं के समूदाय तथा अन्य अनेक द्वीपों तक फैला है। औद्योगिक विकास के लिए खनिज संपदा की लूट हेतु यहां व्यापारिक गतिविधियां तेज़ हुई हैं। तेल, प्राकृतिक गैस और कोयला के इस क्षेत्र में अकूत भंडार हैं। इस कारण यहां पारिस्थितिकि तंत्र गढ़बढ़ाने लगा है। नतीजतन यहां पाए जाने वाले जलीय व थलीय जीव धु्रवीय भालू, सील, बैल्गाव्हेल, नरव्हेलए नीली व्हेल और वेलर्स के लिए अस्तित्व बचाए रखने का संकट पैदा हो गया है। 
जलवायु परिवर्तन के अनेक दुष्परिणाम देखने में आ रहे हैं। इनमें से एक उत्तरी व दक्षिणी धु्रव क्षेत्रों में पृथ्वी पर बढ़ते तापमान के चलते बर्फ का पिघलना भी है। अत्याधिक गर्मी अथवा सर्दी का पढ़ना भी इसी के कारक माने जा रहे हैं। वैज्ञानिकों की यह चिंता तब और ज्यादा बढ़ गई, जब अंटार्कटिका में तैर रहे फ्रांस से भी बड़े आकार के हिमनद (ग्लेशियर) टॉटेन के पिघलने की जानकारी अनुमानों से कहीं ज्यादा निकली। यानी अभी तक जो अनुमान लगाए गए थे, उसकी तुलना में यह विशालकय हिमनद कहीं ज्यादा तेज़ी से पिघल रहा है। इससे समुद्र का जलस्तर बढ़ने की भी आशंका प्रगट की जा रही है। सेंट्रल वाशिंगटन विवि के पॉल बिनबेरी द्वारा किए गए एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, ‘अध्ययन से पहले हमें लगता था कि टॉटेन हिमखंड की बर्फ स्थिर है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के असर के चलते इसकी स्थिरता में बदलाव आ रहा है और तेज़ी से यह पिघल रहा है। यह सबसे तेज़ गति से चलायमान हिमखंड है। गोयाए इसके पिघलने के खतरे ज्यादा हैं। क्योंकि यह यदि अधिक तापमान वाले क्षेत्र में पहुंच गया तो और ज्यादा तीव्रता से पिघलेगा। 

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