खतरनाक स्तर तक पहुंचा वायु प्रदूषण

अब सिर्फ इसी की कसर रह गई थी कि भारत की राजधानी दिल्ली विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर माना जा रहा है। विडम्बना है कि गाज़ा में इज़रायल की बमबारी के बाद जितना प्रदूषण वहां हुआ है, उससे कहीं ज्यादा वर्तमान में दिल्ली में फैला हुआ है। दिल्ली के बाद बांग्लादेश का ढाका शहर सर्वाधिक प्रदूषित माना जाता है। दिल्ली में कई सरकारें आईं और गईं, सभी एक-दूसरे पर दोषारोपण कर अपनी इति श्री कर लेती हैं। इसका स्थायी समाधान आज तक कोई नहीं खोज पाया और नतीजा दिल्ली शहर के बच्चे और बुज़ुर्ग फेफड़े और सांस की बीमारी से त्रस्त हो चुके हैं।
दिल्ली का वायु प्रदूषण अब स्थायी खतरा माना जा रहा है, विशेषकर बच्चों और बुज़ुर्गों के लिए। यह एक गंभीर समस्या है। पर्यावरण प्रदूषण खासकर वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मुम्बई, कोलकाता और अन्य राज्यों की राजधानी में खासकर शीतकाल में अत्यंत चिंताजनक स्थिति पैदा हो जाती है।
दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश के 8 बड़े शहर का पर्यावरण प्रदूषण खासकर वायु प्रदूषण खतरे के निशान से काफी ऊपर जा चुका है, अस्थमा तथा फेफड़े की बीमारियों के मरीज़ों की संख्या में बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है। वैसे तो प्रदूषण के कई प्रकार हैं, जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि इत्यादि, परन्तु वायु प्रदूषण इन सब में सर्वाधिक खतरनाक और मानवीय जीवन के लिए संहारक है। वायु में विषैली गैसों के मिश्रण, धूल और उद्योग द्वारा फैलाई जाती ज़हरीली गैसों के कारण वायु प्रदूषण तेज़ी से फैलता है। अमरीकी शोध संस्थान द्वारा स्पष्ट रूप से चेतावनी दी गई है कि भारत में वायु प्रदूषण से जनसंख्या के 40 से 45 प्रतिशत लोग प्रभावित हैं। वायु प्रदूषण के कारण 10 से 15 वर्ष तक जीवन कम हो सकता है, क्योंकि भारत सर्वाधिक वायु प्रदूषित देशों में गिना जाता है। इस शोध संस्थान द्वारा चेतावनी के साथ मशवरा भी दिया गया है कि वायु प्रदूषण को तत्काल कम करने के कारगर उपाय करने होंगे अन्यथा देश के बड़े शहरों में और औद्योगिक शहरों के साथ में बसे हुए कस्बों, गांवों में वायु प्रदूषण से मानव जीवन के लिए खतरे बढ़ सकते हैं। भारत में दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई तथा मध्यम जनसंख्या वाले लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, रायपुर, इंदौर तथा उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों में वायु प्रदूषण के कारण ज़्यादा दमा तथा अस्थमा से मौतें हुई हैं।
 विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की हवा में ज़हरीले सूक्ष्म कणों की मौजूदगी 70.3 प्रतिशत है। संगठन द्वारा स्वस्थ वायु प्रदूषण की मानक स्थिति 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर मानी गई है। इस तरह भारत में प्रदूषण के महीन कणों की उपस्थिति विश्व के अन्य देशों की तुलना में 7 गुना प्रति क्यूबिक मीटर ज्यादा आंकी गई है। जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अति खतरनाक बताई गई है। इस तरह भारत दुनिया का सबसे प्रदूषित देश माना गया है। यहां 48 करोड़ लोग वायु प्रदूषण के कारण संक्रमित पाए गए हैं।
 इस तरह देश की लगभग 40: आबादी जहां वायु प्रदूषण का स्तर एवं अन्य प्रदूषण का स्तर भी नियमित रूप से दुनिया में कहीं भी पाए जाने वाले स्तर से बहुत अधिक है। जोकि स्वास्थ्य संगठनों की नज़रों में बहुत ही चिंतनीय एवं गंभीर है। अमरीका के एक शहर शिकागो में स्थित एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट ऑफ पोलूशन द्वारा बताया गया है कि दिल्ली और उत्तरी भारत में रहने वाले 48 करोड़ से ज्यादा लोग प्रदूषण के बढ़े हुए स्तर में जी रहे हैं। 
वायु को प्रदूषित करने वाले सूक्ष्म ज़हरीले कण समान रूप में सभी नागरिकों को अपनी गिरफ्त में लेकर उनके फेफड़ों को नुक्सान पहुंचाते हैं। मनुष्य स्वाभाविक रूप से प्रकृति पर निर्भर है। प्रकृति पर उसकी निर्भरता तो समाप्त नहीं की जा सकती है।, किन्तु प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा इसका प्रतिकूल प्रभाव पर्यावरण पर न पड़े या कम से कम पड़े। उद्योगों की संख्या के अनुसार उसी अनुपात में बड़ी संख्या में वृक्षारोपण भी करना पड़ेगा। वृक्षारोपण आज पर्यावरण से बचाने की एक बड़ी तथा महती आवश्यकता है। वातावरण में घुली विषैली गैसों के कारण मनुष्य का सांस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है। स्वच्छ एवं शुद्ध हवा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अधिक से अधिक वृक्षारोपण किये जाने की ज़रूरत है।
 
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