मोटे अनाज का उत्पादन कर आय बढ़ा सकते हैं किसान

मोटा अनाज यानी मिलेट्स ही देश का प्राचीन अनाज माना जाता है। मनुष्य ने तेजी से आगे बढ़ने की चाह में धीरे-धीरे उन छोटी लेकिन उपयोगी चीज़ों को नज़रअंदाज़ कर दिया है जो कृषि और ग्रामीणों की दिनचर्या में अहम थी। मोटा अनाज जिनके प्रोत्साहन के लिए केंद्र सरकार अनेक कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है, वे कभी घरों में पर्याप्त मात्रा में होता था। उस पर केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि मवेशी और अन्य जीवों भी निर्भर थे। नयी पीढ़ी व शहरों में रहने वाले लोगों को गांव से जुड़ी चीजें तुच्छ और पिछड़ेपन की निशानी लगने लगी। ज्वार, बाजरा को निम्न स्तर का खाना समझा गया और फिर इनकी मांग में कमी आने लगी।
चावल और गेहूं के अधिक उत्पादन और खपत के कारण मोटे अनाज का प्रचलन काफी कम हो गया था, लेकिन अब फिर इसके उत्पादन पर ज़ोर दिया जा रहा है। मोटा अनाज को सुपर फूड कह सकते हैं। इसमें खास सेहतमंद गुण होते हैं। पोषक तत्वों से भरपूर मोटा अनाज के अंतर्गत आठ फसलें शामिल हैं। इसमें ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी, जौ और कुट्टू को मोटा अनाज की फसल कहा जाता है। मोटे अनाज का सेवन कई बीमारियों से बचाव करता है।
बाजरा के सेवन से लीवर आदि की कोई भी बीमारी नहीं होती है। इसमें ब्रेन कूलिंग एजेंट पाया जाता है, जो दिमाग को आराम देता है। बाजरे का इस्तेमाल कई औद्योगिक उत्पादों में किया जाता है। भले ही इसमें पाइटिक अम्ल, पॉलीफेनॉल और एमाइलेज जैसे कुछ पोषण-निरोधक अवरोधक होते हैं, परन्तु पानी में भिगोने के बाद अंकुरण और अन्य पकाने की विधियों से इसके पोषण-निरोधक तत्वों में कमी आ जाती है। ज्वार में रोग प्रतिरोधक तत्व होते हैं। ज्वार नाइजीरिया का प्रमुख भोजन है। ज्वार का औद्योगिक उपयोग अन्य मोटे अनाजों की तुलना में अधिक होता है। इसका उपयोग शराब उद्योग, डबलरोटी उत्पादन उद्योग, गेहूं-ज्वार संयोजन में किया जाता है। व्यापारिक रूप से शिशु आहार बनाने वाले उद्योगों में ज्वार चवली तथा ज्वार सोयाबीन संयोजन का इस्तेमाल किया जाता है। मक्के का पीला रंग ये दर्शाता है कि इसमें विटामिन-ए यानी वह विटामिन जो त्वचा और आंखों के लिए अच्छा होता है और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है, बहुत अधिक होता है। जौ बहुत-से सूक्ष्म पौष्टिक तत्वों का भंडार है। रागी को भारतीय मूल का माना जाता है और यह उच्च पोषण मान वाला मोटा अनाज होता है। पारम्परिक रूप से रागी का इस्तेमाल खिचड़ी जैसे आहार के रूप में किया जाता है।  मोटे अनाज की खेती करने के अनेक लाभ हैं जैस—सूखा सहन करने की क्षमता, फसल पकने की कम अवधि, उर्वरकों व खादों की न्यूनतम मांग के कारण कम लागत, कीटों से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता। कम पानी और बंजर भूमि तथा विपरीत मौसम में भी ये अनाज उगाए जा सकते हैं।  भारत ने वर्ष 2018 को ‘मिलेट्स ऑफ द ईयर’ के रूप में मनाया और संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को ‘इंटरनेशनल ईयर ऑफ द मिलेट्स’ घोषित किया है। भारत के राजपत्र 13 अप्रैल, 2018 के अनुसार मोटा अनाज (ज्वार, बाजरा, रागी आदि) में देश की पोषण संबंधी सुरक्षा में योगदान देने की बहुत अधिक क्षमता है। साल 2022 में मोटे अनाज की पैदावार की बात करें तो भारत 19 प्रतिशत वैश्विक हिस्सेदारी के साथ सबसे बड़ा उत्पादक था। 
पहले मोटे अनाज का सेवन केवल दलिया, रोटी या लड्डू बनाकर ही किया जाता था, लेकिन अब इसके ढेर सारे विकल्प मौजूद हैं, जैसे कि मिलेट्स कुकीज, मिलेट्स पास्ता, मिलेट्स चिक्की, उपमा आदि।  -मो. 94596-92931