रंगों का लोकप्रिय त्योहार है होली

भगवान कृष्ण की लीलास्थली ब्रज क्षेत्र के बारे में कहा जाता है कि यहां सभी ऋतुओं की रानी बसन्त ऋतु की मधुरता हमेशा वातावरण में विद्यमान रहती है। यहां की संस्कृति में यूं तो रीति-रिवाजों, कर्मकांडों, त्योहारों व उत्सवों में पूरी तरह से डूब जाने की परम्परा है, लेकिन होली का तो एहसास ही बिल्कुल नशीला है। पूरे देश और दुनिया में होली फाल्गुन महीने की पूर्णिमा और उसके बाद मनायी जाती है लेकिन कान्हा की नगरी ब्रज में इंद्रधनुषी रंगों का यह त्योहार पूरे चालीस दिन तक चलता है, जिसकी शुरुआत लट्ठमार होली से होती है और इसका समापन रंगपंचमी को रंगनाथ मंदिर में खेली गई सूखे रंगों की होली से होता है। 
ब्रज क्षेत्र अद्भुत सांस्कृतिक क्षेत्र है। यह उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से के साथ कुछ हरियाणा और कुछ राजस्थान के हिस्सों को लेकर बनता है। ब्रज की पहचान इसकी संस्कृति में समायी हुई खुशी और उमंग है। ब्रज क्षेत्र को महज इसलिए खास नहीं माना जाता कि यहां भगवान कृष्ण ने जन्म लिया, इसकी विशिष्टता इसकी सांस्कृतिक समृद्धि है। वेदों से लेकर पुराणों तक में ब्रज की संस्कृति, भक्ति में डूब जाने की संस्कृति है। यहां तीज त्योहारों में लोगों में झूमकर गाने और नाचने की परंपरा है और इस सबका उत्स या सर्वोच्च रूप होली में देखने को मिलता है। जहां देश में एक दिन, दो दिन या अधिकतम एक सप्ताह तक होली के रंग, तरंग और उमंग का माहौल रहता है, वहीं ब्रज में वसंत पंचमी से शुरू होकर पूरे 40 दिनों तक ऐसा माहौल रहता है। ब्रज की होली पूरी दुनिया में न सिर्फ सबसे मशहूर बल्कि सबसे दर्शनीय और सबसे लालित्यपूर्ण होली मानी जाती है।  दुनिया के हर अलग-अलग क्षेत्रों की कुछ खूबियां होती हैं और आज पूरी दुनिया के जागरूक पर्यटक इन विशेष खूबियों से रूबरू होने के लिए इन क्षेत्रों में घूमने जाते हैं। ब्रज क्षेत्र की होली ऐसी ही खूबियों से भरपूर है। यही वजह है कि पिछले कई दशकों से यहां होली के मौसम में पूरी दुनिया से पर्यटक रंग, उमंग और तरंग का आनंद लेने के लिए सदेह आते हैं और इस सबका हिस्सा बन कर धन्य हो जाते हैं। ब्रज में बसन्त पंचमी के साथ ही पूरा वातावरण होली के रंग में रंगने लगता है, जो कि बसन्त पंचमी से शुरू होकर रंग पंचमी तक चलता है। अगर इस साल यानी 2024 के होली कैलेंडर की बात करें तो यह 17 मार्च, 2024 को बरसाना स्थित श्रीजी मंदिर में लड्डू होली के साथ शुरू होगा और 30 मार्च 2024 को रंग पंचमी पर रंगनाथ जी के मंदिर में खेली जाने वाली सार्वजनिक होली से औपचारिक रूप से समाप्त होगा, लेकिन निजी तौर पर लोग इसके बाद भी कई दिनों तक होली के हैंगओवर में रहते हैं।
 ब्रज में होली के जिन खास मौकों के गवाह बनने के लिए पूरी दुनिया से पर्यटक आते हैं, इनमें श्रीजी मंदिर में खेली जाने वाली लड्डू होली, बरसाना और नंदगांव में खेली जाने वाली लट्ठमार होली, वृंदावन में खेली जाने वाली रंगभरी एकादशी की होली, गोकुल के बांके बिहारी मंदिर में खेली जाने वाली छड़ीमार होली और फिर पूरे देश के साथ मनायी जाने वाली होली, इसके बाद अगले दिन खेला जाने वाला होरी का हुरंगा और अंत में रंगनाथ मंदिर में खेली जाने वाली रंग पंचमी की होली। देश विदेश से आये पर्यटक इनका भरपूर आनंद लेते हैं।  इस रंग में डूबने, उतारने और इसके आनंद का मान करने के लिए दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं। इस वर्ष 25 मार्च के बाद देश के दूसरे हिस्सों में जहां होली की मस्ती थम जायेगी, वहीं ब्रज की दुनिया में यह अगाध रूप से जारी रहेगी। देशभर में मनायी जाने वाली होली के अगले ही दिन दाऊजी के होली का हुरंगा मनेगा। इस साल यह 26 मार्च 2024 को सम्पन्न होगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर