मौली का तोता

मौली को उसके पिता बहुत मानते थे। उसके गांव के पास हर रविवार को एक देहाती पशु बाज़ार लगता था। जिसमें छोटे-बड़े हर तरह के पशु-पंक्षियों की बिक्री होती थी। एक तरह से रविवार के उस बाज़ार में विविध तरह की चीजें बिकतीं थीं। साग-सब्जी, लोहे के छोटे-बड़े सामान। एक दिन रविवार को मौली अपने पिता जी के साथ रविवार के उस बाजार में गया था। उसे एक तोता उस पशु बाज़ार में पसंद आ गया था। तोता कहना दर असल गलत होगा। वो तोते का बच्चा था। उसके अभी बाल भी नहीं आये थे लेकिन उस तोते के बच्चे पर मौली का मन रिझ गया था। मौली ने जिद की कि वो तोते को खरीदना चाहता है। आखिर मौली के पिता ने मौली की बात मान ली और मौली के कहने पर उन्होंने उस तोते के बच्चे को खरीद लिया। घर पहुंचकर मौली सबसे पहले नहा-धोकर तैयार हुआ। फिर उसे बाज़ार से आने के कारण बहुत ही थकान और भूख भी लग आई थी। वो मां के पास रसोई में गया और खाना मांगने लगा। खाना खाकर वो बहुत थका होने के कारण सो गया। जब वो सोकर उठा तब तक शाम हो गई थी। उसके पिताजी बाहर से लौट आये थे। मौली जब सोकर उठा तो उसे उसके पिताजी ने टोका। मौली तुमने तोते के उस बच्चे को कुछ खाने को दिया या नहीं। मौली ने इंकार में अपना सिर हिलाया। मौली को याद आया कि अपनी थकान और भूख के कारण वो तो सो गया था लेकिन उसने तोते के बच्चे को कुछ खाने को कहां दिया था। उसे अपनी भूल का एहसास हुआ तो वो भागा-भागा रसोई में गया। वहां रसोई में उसे एक चपाती मिली। वो चपाती लेकर तोते के पास उसके दड़बे में पहुँचा लेकिन फिर उसके पिता ने उसको टोका, बेटा मौली अभी वो तोता बहुत छोटा है वो सीधे रोटी नहीं खा सकता इसलिए उसे फल खिलाओ, अभी गर्मियों का मौसम है इसलिए उसे अँगूर खिलाओ लेकिन सीधे नहीं। अंगूर भी उसको छीलकर खिलाना होगा वो अंगूर के ठेले पर पहुंचा और उसने अंगूर वाले सुभाष चाचा को सब बात बताई। अंगूर वाले सुभाष चाचा ने पेटी में पड़े कुछ छोटे अंगूर को एक जोकि बिकते भी नहीं थें। और बेकार में हर रोज उनके यहां पड़े रहते थे। एक लिफाफे में 10-15 अंगूर भरकर  मौली को दे दिये और उन्होंने ये भी बताया कि उनके यहां रोज़ बिक्री खत्म होने के बाद भी बहुत सारे टूटे हुए अंगूर बचे रह जाते हैं। जिन्हें कोई मोल नहीं लेता। 
इसलिए तुम रोज़ आकर टूटे हुए अंगूरों को लेते जाना। कम से कम तुम्हारा तोता भूखा तो नहीं रहेगा ना और इस तरह सुभाष चाचा से मौली को उसके तोते के लिए रोज़ अंगूर मिल जाते थे। उसका तोता अभी बहुत छोटा था। वो बहुत ज्यादा खाना अभी नहीं खा सकता था। सुभाष चाचा रोज उसको लिफाफे में ढ़ेर सारे अंगूर भरकर देते लेकिन वो लेने से मना कर देता था। वो रोज़ अपने तोते के लिए 10-20 अंगूर ही माँग कर ले जाता था। उसका तोता अभी बहुत छोटा था। इसलिए ज्यादा खाना नहीं खा पाता था। करीब चार-पांच महीने लगे और तोते को  बाल आ गये। बड़ा होने के बाद तोता अब प्राय: मौली के साथ ही खाना खाता। पिंजड़े से कभी-कभी वो निकलकर बाहर भी आ जाता और मौली की थाली में कभी रोटी तो कभी चावल या सलाद खा जाता था। फिर मौली उसे वापस पिंजरे में बंद कर देता था। 
जब से मौली के घर वो तोता आया था। उसका मन कहीं नहीं लगता था। वो अपने स्कूल से जब भी लौटता सीधे तोते के पास पहुंच जाता था। उससे खेलता रहता था। यानी कि कुल मिलाकर उसका तोता उसका बहुत अच्छा दोस्त बन गया था। शुरू-शुरु में मौली के दोस्त बाल नहीं होने के कारण मौली के तोते को चिढ़ाते रहते थे। जिससे मौली को बहुत दु:ख होता था। इससे दु:खी होकर वो कई-कई दिनों तक उनसे बात भी नहीं करता था। मौली का तोता बहुत ही होशियार था। मौली जब जोर-जोर से अपनी कवितायें पढ़ता तो तोता भी उन कविताओं को दोहराता जाता था। मौली के दोस्त और मां-पिताजी ये सब देखकर खुश होते। मौली की मां, जब भी मौली को भोजन के लिए रसोई से पुकारती तो वापस तोता भी मौली को पुकारता था। वो दिनभर जब तब मौली-मौली पुकारता रहता था। मौली की दादी जब शाम को भजन करतीं तो मौली का तोता भी दादी के साथ भजन करने लगता था। इस तरह बहुत दिन बीत गये थे। इधर, मौली के तोते की गर्दन पर लाल काली दो बहुत ही खूबसूरत धारियां आ गईं थीं। इससे मौली का तोता बहुत खूबसूरत लगता था। एक रात मौली बहुत गहरी नींद में सोया हुआ था। आधी रात का समय था। तभी बहुत जोरों का तूफान आया और बहुत जोर-जोर से बारिश होने लगी। हवायें बहुत तेज़ चलने लगीं। पानी का झटास खिड़कियों से मौली के कमरे तक पहुंच रहा था। अचानक मौली की नींद टूट गई। मौली का तोता पिंजरे में आंगन में हमेशा टंगा रहता था। मौली को अपने तोते के भींगने का आभास हुआ। उस दिन बिजली भी बहुत तेजी से चमक रही थी। घर के दरवाज़े और छत का दरवाजा बहुत जोर-जोर से धड़ाम-धड़ाम करके बज रहे थे। उसे तोते की याद आई। घर से आंगन की दूरी फलांग भर की थी। थोड़ा सा आगे बढ़ने पर ही मौली बारिश में भींग सकता था। आंगन में बिजली जोर-जोर से चमक रही थी। मौली बिस्तर से उठकर आंगन में जाने लगा। मौली को उसकी मां ने रोका मौली कहां जा रहे हो। इतनी तेज़ बारिश में। मौली ने मां की बात का कोई जबाब नहीं दिया और भींगते हुए आंगन में चला गया। थोड़ी देर बाद मौली पिंजरा समेत तोते को कमरे में ले आया। मौली बुरी तरह से भींग गया था। उसको सर्दी लग गई थी। मौली ने अपने तोते को पिंजरे से बाहर निकाला और तौलिये से उसे गीले बाल पोंछे। मां ने ये सब देखा तो मौली के लिए आधी रात में ही अंगीठी जलाई और मौली के लिए काढ़ा बनाया। तोता पूरी रात बिना पिंजरे के ही मौली के साथ उसके कमरे में सोया। सुबह हुई तो मौली ने उसे वापस पिंजरे में डालना चाहा। वैसे पिंजरे का दरवाजा पुराना होने के कारण टूट भी गया था। मौली बार-बार तोते को पिंजरे में डालता और तोता पिंजरे से बाहर निकलकर उसके कंधे पर बैठ जाता था। अब वो उड़ना भूल गया था। मौली के दोस्त सोचते काश उनके पास भी ऐसा ही एक तोता होता।