भैया जी की खोपड़ी

जिस मूर्ख ने भी भैया जी की खोपड़ी फोड़ने का दुस्साहस किया था वो कोई मामूली बात नहीं थी। भैया जी की खोपड़ी कोई ऐसी-वैसी नहीं थी, देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण और बहुमूल्य थी। राजनीति में पचास साल हो गये थे उन्हें अपनी खोपड़ी का करतब दिखाते हुए। इस बीच कितनी सरकारें गिरायीं, पार्टी बदलीं, दंगे करवाए, सड़क-जाम, घेराव से लेकर आमरण अनशन तक न जाने किस-किस राजनीतिक हथकंडों को अमली जामा नहीं पहनाया। इसी महान खोपड़ी को कोई ऐरा-गैरा, एक मामूली पत्थर से रक्त-रंजित करने का दुस्साहस कैसे कर गया? थू है ऐसे देश और समाज पर जो अपने महान नेता की इस बहुमूल्य खोपड़ी की रक्षा नहीं कर सकी।
असल में बात ये थी कि भैया जी चुनाव प्रचार में बुरी तरह व्यस्त थे। आगामी चुनाव को देखते हुए उन्हें सांस लेने तक की फुर्सत नहीं थी। वे अपनी पार्टी के स्टार-प्रचारक थे। इसी सिलसिले में कल उनका पूरा कारवां, लाव-लश्कर के साथ नया गांव पहुंचा था। वे घर-घर जाकर आम जनता से रूबरू मिल रहे थे। बूड़ों को देखते ही तपाक से पैर छूकर प्रणाम करना जारी था। औरतों से हंस-हंसकर बात करना उनका हालचाल पूछना, ज्यादा उम्र की हुई तो साष्टांग दंडवत करने का क्रम  चल ही रहा था कि आकाश-मार्ग से एक पत्थर आया और उनकी झुकी हुई खोपड़ी का काम तमाम कर गया। 
गांव की संकरी-संकरी सर्पाकार टेड़ी-मेड़ी  गलियां। पत्थर किधर से आया, कौन किधर से कब चलाया, कुछ पता ही नहीं चला? पत्थर लगते ही भैया जी करूण आवाज के साथ धराशायी होने वाले थे कि पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उन्हें थाम लिया। देखो-देखो मच गया। उन्हें एम्बुलेंस में अस्पताल ले जाते हुए उनके समर्थकों में इस बात पर बहस छिड़ गयी कि उनके अंतिम शब्द क्या थे? कुछ का कहना था कि उन्होंने ‘हे राम’ कहा। कुछ का कहना था कि ‘हे मां’ कहकर भारत माता को याद किया। यह अंतिम समय में उनके मातृभूमि-प्रेम का उत्कट उदाहरण था।
वे आई.सी.यू. में एडमिट हैं। अस्पताल के बाहर हजारों समर्थकों की भीड़ लगी हुई है। भैया जी के नाम से लगातार जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं। पार्टी के कोई वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं, वे अभी-अभी अस्पताल के अंदर से आये हैं। उनके चेहरे पर शव-यात्रियों जैसी गमगीनियत है। वे नारे लगाने वालों को शांत रहने के लिए कह रहे हैं। लगता है मामला क्रिटिकल है। प्रधानमंत्री जी और गृहमंत्री जी का उनके स्वास्थ्य के संबंध में जानकारी हेतु बार-बार फोन आ रहे हैं। उपस्थित समर्थकों का चेहरा बाप की मौत के गम में डूबा सा हो गया है। सब के अपने-अपने कुछ न कुछ कारण हैं। कुछ भविष्य-द्रष्टा समर्थक, शोकसभा में बोलने हेतु, भैया जी के देश-प्रेम, उनके त्याग-बलिदान को स्मरण करते हुए अश्रुपूरित श्रद्धांजलि देने के लिए मन ही मन भाव भरे वाक्य और शब्द खोज रहे हैं। टी.वी., समाचार-पत्र समेत पूरा देश इस राष्ट्रीय क्षति पर भयानक तौर से उदास चल रहा है।