लोकतंत्र और न्याय के लिए है लोगों का फतवा

कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष के लिए यह एक नैतिक जीत है। 2024 का लोगों का फतवा लोकतंत्र, सम्मान और न्याय के लिए वोट है। चुनाव परिणाम राष्ट्र की केन्द्रीय शक्ति के प्रति अविश्वास और कांग्रेस के चुनाव मैनिफैस्टो में ज़ोर देकर पेश किए गये संवैधानिक मूल्य सिद्धांतों के प्रति न बदलने योग्य प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह फैसला आज़ादी और आज़ादी की शपथ लेने वाले लोगों की गुप्त बुद्धि को श्रद्धांजलि भी है।
ऐसा लगता है कि राष्ट्र की दबी हुई आत्मा को प्रगटावा मिल गया है और हमने अपने लोगों की आज़ादी और सम्मान की रक्षा के लिए आज़ादी की आधी रात को जो शपथ ली थी, वह भावना अभी भी कायम है। चुनावी फैसला लोकतांत्रिक राजनीति के स्थायी सबक की पुष्टि करता है कि अपमानित और अलग-थलग लोगों के दर्द को एक शक्तिशाली राज्य व्यवस्था द्वारा लम्बे समय तक दबाया नहीं जा सकता। विपक्षी गठबंधन के केन्द्र के रूप में कांग्रेस ने इस अमल में महत्वपूर्ण लाभ हासिल करते हुए ज़ोरदार वापसी की है। बहु दलों की कारगुजारी को देखते हुए यह चुनाव परिणाम क्षेत्रीय ख्वाहिशों के दावे की भी पुष्टि करते हैं। यह चुनाव राष्ट्रीय राजनीति के पुनर्गठन का संकेत देते हैं और यह पुरानी पार्टी कांग्रेस में गांधी परिवार के नेतृत्व को भी मान्यता देते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चुनाव परिणाम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की चुनाव व्यवस्था की ईमानदारी की पुष्टि करते हैं। स्पष्ट रूप में लोकतंत्र की पुष्टि इस चुनाव का मुख्य उद्देश्य है।
एन.डी.ए. की अंतिम जीत के लिए प्रधानमंत्री को भी बधाई दी जानी चाहिए। प्रधानमंत्री ने कठिन चुनाव मुहिम के दौरान अपने उद्देश्य के प्रति वर्णन योग्य दृढ़ता का प्रगटावा करते हुए इस चुनाव को अपने कंधों पर उठा लिया था। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लोकतांत्रिक ढंग के साथ चुने हुए नेता के रूप में उनकी लगातार तीसरी बार ताजपोशी होना वास्तव में भारत की समकालीन राजनीति के इतिहास में एक असाधारण घटना है। असफलता के बावजूद प्रधानमंत्री इस तथ्य से संतुष्टि हासिल करने का दावा हासिल कर सकते हैं कि भाजपा ने राष्ट्रीय राजनीति में एक सर्व भारतीय पार्टी के रूप में खुद को स्थापित कर लिया है, जिसने कि भारत के दक्षिणी राज्यों में भी अपने वोट शेयर में वर्णन योग्य वृद्धि की है।
यह चुनाव प्रधानमंत्री के लिए एक कठिन चुनौती पेश करता है। देश जो एक विवादपूर्ण चुनावों के साथ थका और बंटा हुआ है, जिसकी आत्मा घायल है, उसको ठीक करने की ज़रूरत है। अल्पसंख्यकों की बेगानगी, अपमानजनक चुनावी वृत्तांत, राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कानूनी और न्यायिक अमलों का बिगाड़, देश भर में सत्तारूढ़ पार्टियों द्वारा संविधानिक शक्ति का दुरुपयोग और सभी स्तरों पर मौजूद भ्रष्टाचार एक लड़खड़ाते लोकतंत्र और एक कमज़ोर राजनीति का स्पष्ट संकेत है। इसलिए प्रधानमंत्री के लिए सबसे महत्वपूर्ण काम कानून और न्याय के शासन के लिए एक ज़ाहिरा प्रतिबद्धता के साथ एक संविधानिक लोकतंत्र के रूप में राष्ट्र की छवि का नवीनीकरण करता है। सर्वोच्च कार्यकारी पद का धारणी होने के रूप में प्रधानमंत्री को पूरे देश के लिए बोलना चाहिए। उन्हें भारतीय लोगों के विशाल वर्ग के साथ अपने निजी संबंधों का उपयोग करके सभी नागरिकों के भाईचारे और सम्मान के लिए घोषित प्रतिबद्धता के साथ अपने दृष्टिकोण को चमकाना चाहिए। उनसे यह आशा की जाती है कि वह लोकतंत्र की सर्वश्रेष्ठ परम्पराओं के मुताबिक अपने राजनीतिक विरोधियों के असहमतिपूर्ण विचारों के प्रति उदार रहते हुए उनको भी स्थान देंगे। उनको बहुवादी समाज में समान नागरिकता के सिद्धांत को लागू करना चाहिए।
गठबंधन सरकार के मुखी के रूप में प्रधानमंत्री को विशाल राष्ट्रीय हितों को प्रभावित करने वाले मामलों में जहां तक संभव हो सके, बड़े स्तर पर सहमति बनाने की ज़रूरत पड़ेगी। चुनाव फतवे की प्रकृति, राष्ट्रीय नवीनीकरण जोकि सुलह-सफाई की राजनीति पर आधारित है, का संकेत देती है, इसलिए पहली ज़िम्मेदारी राष्ट्र के नेता के रूप में प्रधानमंत्री पर है। इस यत्न में उनको विपक्षी दल, जोकि राष्ट्र के एक बड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, के रचनात्मक सहयोग की ज़रूरत होगी। विपक्षी दल अपने द्वारा सरकार के प्रत्येक कदम के प्रति निंदा और रुकावट डालने के रूप में आलोचनात्मक नहीं हो सकते। उनको लोगों में अपनी विश्वास योग्यता बनाए रखने के लिए लोगों के फतवे का सम्मान करना चाहिए। इस समय सरकार के कामों में रुकावट डालना ठीक नहीं माना जाएगा। वास्तव में डा. अम्बेदकर के समर्थकों को उनके आदेश को नहीं भूलना चाहिए कि संविधानिक लोकतंत्र में अराजकतावादी राजनीति के लिए कोई गुंजाइश नहीं।
2024 का जन फतवा जिसने भारतीय लोकतांत्रिक और संविधानवाद को मज़बूत किया है, ऐसी नीतियों को जन्म देगा, जो व्यापक मान्यता प्राप्त करेगा और ऐसा शासन होना चाहिए, जो हमारे युग की कठिन चुनौतियों को हल करने के लिए राष्ट्र को इकट्ठा करे। इन चुनौतियों में सत्ता की मनमज़र्ी के साथ उपयोग करने के माध्यम द्वारा लोगों के आज़ादी के अधिकारों पर बड़े स्तर पर हमला करना भी शामिल है। आने वाले दिनों में नई सरकार द्वारा बनाई जाने वाली कार्ययोजना में प्रधानमंत्री दमनकारी कानूनों को खत्म करने या उनमें सुधार करने पर विचार कर सकते हैं, जिनकी नागरिकों के संविधानिक अधिकारों के हृस के लिए नियमित रूप में दुरुपयोग किया जाता है और एक हिरासत विरोधी कानून मानवीय कानून बनाए जाने की भी बहुत देर से प्रतीक्षा की जा सकती है।
सबसे पहले नई सरकार के मुखी के रूप में प्रधानमंत्री इतिहास के इस सबक पर विचार करें कि सत्ता एक ऐसी अमानत है जो इस शर्त पर कायम रखी जाती है कि इसका उपयोग न्यायपूर्ण ढंग से आज़ाद नागरिकों की नैतिक स्वतंत्रता को बढ़ाने के लिए किया जाएगा ताकि वे अपनी आज़ादी को समझ सकें।

-पूर्व केन्द्रीय कानून और न्याय मंत्री