मोदी सरकार 3.0 की विदेश नीति : सामयिक है ‘पड़ोसी प्रथम’ की रणनीति 

लगातार तीन चुनाव जीत कर सरकार बनाने और प्रधानमंत्री बनने वाले नरेंद्र मोदी वैश्विक मंच पर अब वरिष्ठतम नेताओं में से एक हैं। ऐसे में राजगनीत मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल से देश के साथ दूसरे देशों को भी बहुतेरी अपेक्षाएं हैं। उन्हें आशा है कि प्रधानमंत्री का यह तीसरा कार्यकाल उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा। इस क्षेत्र में सरकार की दिशा और सक्रियता बताती है कि वह ‘पड़ोसी प्रथम’ की नीति को बेहद मजबूती से लागू करने जा रही है। ऐसे में इस नीति के लागू होने के एक दशकीय सफलता-विफलता तथा उसमें संभावित बदलाव की समीक्षा समीचीन है।,    
किसी सरकार के लगातार दो से अधिक कार्यकाल के कुछ लाभ हैं, उनमें से एक यह कि राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय नीतियों में निरन्तरता बनी रहती है। जिन नीतियों, कार्यक्रमों, योजनाओं पर काम जारी रहता है, दूरगामी उद्देश्यों की पूर्ति के प्रयासों को आगे बढ़ाने, उनमें सफलता पाने का अवसर बनता है। राजग सरकार के इस तीसरे काल से यह उम्मीद की जा रही है कि वह अपनी वैदेशिक नीतियों और कूटनीतिक प्रयासों को उचित दिशा में जारी रख कर इस क्षेत्र में उन बड़े तथा अधूरे दूरगामी लक्ष्यों को जो उसने देश के लिये तय किए थे, बिना अपने सिद्धांतों से कोई समझौते किए पा लेगा।
प्रधानमंत्री ने शपथ ग्रहण समारोह, उसके बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ कई पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय वार्ता से संकेत दिया कि वह ‘पड़ोसी प्रथम’ की नीति पर तेजी से आगे बढेंगे। साल 2014 में मोदी ने कहा था कि ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति भारत की विदेश नीति का मूल है। निकटस्थ पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुदृढ़ करना, क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाना और साझा चिंताओं के समाधान को प्राथमिकता देते हुए उनके आर्थिक विकास तथा संवृद्धि में भागीदार बनने की प्रतिबद्धता वाली इस नीति के दस साल तक लागू रहने के बाद तमाम पड़ोसियों से हमारे रिश्ते उतने समरस नहीं हैं, जितनी अपेक्षा थी। पड़ोसी देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव और दबदबे को कम करना, उन्हें उसके चंगुल से बचाते हुए अपने पाले में लेना इस नीति का एक उद्देश्य है। इन देशों में चीन का हस्तक्षेप ‘पड़ोसी प्रथम’ को प्रभावी होने से रोकता है।  
तीसरे कार्यकाल में सरकार को इस नीति के क्रियान्वयन की खामियों को दूर करते हुए इसे और असरदार बनाना होगा, बदली परिस्थितियों में परिवर्तित भू-राजनीतिक तथा रणनीतिक उद्देश्यों की प्राथमिकताओं में फेरबदल करना पड़ेगा। सरकार तीसरे कार्यकाल के पूरे होने तक देश को ग्लोबल साउथ का लीडर और प्रधानमंत्री को उसके प्रवक्ता के बतौर स्थापित कर भी ले, लेकिन आधा दर्जन पड़ोसी देशों में से अधिकतर उसके साथ पूरी तरह से न हों तो बेशक यह स्थिति चिराग तले अंधेरा जैसी होगी। चीन के साथ तनावपूर्ण रिश्तों का एक सच यह भी है कि आज वह अमरीका को पछाड़कर अब हमारा शीर्ष व्यापारिक भागीदार है। हम भारी घाटा सहकर भी उससे तकरीबन 119 अरब डॉलर का कारोबार करते हैं। रक्षा रिश्तों में खटास के बावजूद वह चाहे ब्रिक्स हो या फिर शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन फोरम, कुछ अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के साथ खड़ा हुआ। इससे यह उम्मीद पालना बेकार है कि इस कार्यकाल में चीन से रिश्ते सुधर सकते हैं, क्योंकि वह अपनी विस्तारवादी नीति नहीं त्यागने वाला। मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका जैसे पड़ोसियों में उसकी व्यापक पैठ को सीमित करना तभी संभव है, जब भारत भी उतनी ही आक्रामकता, कुटिलतापूर्ण भारी निवेश पर उतारू हो जो फिलहाल संभव नहीं। चीन के दबदबे को कम करने की कोशिश के दौरान इस तीसरे कार्यकाल में भारत-चीन संबंधों में तनाव बढ़ना तय है, देखना होगा कि इस आशंका को निर्मूल करने के लिए विदेश मंत्री क्या करते हैं? पाकिस्तान भारत विरोध के भद्दे प्रदर्शनों के साथ आतंकवादियों को सहयोग देने और इनसे निपटने में भारत से असहयोग जारी रखे हुए है। वह चीन के साथ ऐसी परियोजनाओं पर काम कर रहा है, जो भविष्य में भारत के लिए घातक होंगी। गुलाम कश्मीर को भारत में मिलाने के सरकारी दावे के बाद दोनों देशों के संबंध संवाद और बातचीत तक पहुंचने की गुंजाइश फिलहाल नहीं दिखती। सरकार अपने समर्थकों के बीच राष्ट्रवाद सर्वोपरि की नीति प्रदर्शित करने के लिये पाकिस्तान पर अपना दबदबा दिखाते रहने का उपक्रम करती रहेगी।
‘पड़ोसी प्रथम’ की नीति वाली सरकार के समक्ष चीन और पाकिस्तान ही नहीं मालदीव, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका भी चुनौती पेश कर रहे हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले की खबर शपथ ग्रहण के साथ ही आयी थी। हम बांग्लादेश से 54 नदियां साझा करते हैं, अब तक केवल गंगा और कुशियारा नदी जल संधि हुई है, तीस्ता और फेनी मुद्दे पर बात जारी है। सभी जल बंटवारे लम्बित हैं। बांग्लादेशियों के अवैध घुसपैठ, प्रवास, शरणार्थियों का मुद्दा भी दरपेश है। इसे रोकने के लिए बने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से बांग्लादेश चिंतित है। पर इस कार्यकाल में सरकार की चिंता वहां चीनी प्रभाव का विस्तार है, जो देश की क्षेत्रीय स्थिति को कमज़ोर कर हमारी रणनीतिक आकांक्षाओं को बाधित करती है। तीसरे कार्यकाल में इसे रोकने के लिये सरकार को बहुत बल लगाना होगा।
म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने की घोषणा के बाद उसका रुख भी भारत विरोधी और चीन मुखापेक्षी दिखा तो नेपाल जिसके साथ देश के सदियों पुराने सांस्कृतिक-राजनीतिक संबंध रहे हैं, चीन से करीबी के कारण पुरानी समरसता जाती रही है। आज नेपाल में करोड़ों के अप्रचलित भारतीय नोटों की वापसी के अलावा कई मुद्दों पर तकरार के साथ सीमा विवाद के साथ तल्खी बढ़ी है। प्रचंड से द्विपक्षीय वार्ता के बाद बदलाव के लिए कई कवायदें करनी होंगी। मालदीव में हमारी मौजूदगी हिंद महासागर में चौकसी के लिए रणनीतिक आवश्यकता है। मुहम्मद मुइज्जू के शपथ ग्रहण में आएं, वार्ता में शामिल हों पर फिलवक्त वह पूरी तरह चीन के चंगुल में हैं, व्यवहारिक स्तर पर भारत के साथ नहीं हैं। इसके बावजूद मालदीव में अपनी उपस्थिति बनाए रखने का हर संभव प्रयास हमें करना होगा।
फिलहाल प्रधानमंत्री जी-7 देशों के प्रमुखों की बैठक में इटली, फ्रांस, ब्रिटेन और अमरीका जैसे देशों के प्रमुखों से मुलाकात के ज़रिए वैदेशिक नीति और दृष्टिकोण का प्रसार शुरू कर चुके हैं। अपने दूसरे कार्यकाल तक प्रधानमंत्री ने भारत को वैश्विक मंच पर ‘विश्व बंधु’ की छवि मज़बूती से स्थापित की, देश में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन की थीम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ थी। ऐसे में इसका नारा देने वाले देश के पड़ोसी यदि खुद उसके साथ कुटुम्बवत न हों तो यह आह्वान मात्र एक जुमला रह जायेगा। अत: प्रधानमंत्री मोदी का फैसला अत्यंत सामयिक और उचित है कि सरकार  ‘पड़ोसी प्रथम’ की अपनी वैदेशिक रणनीति पर मज़बूती से आगे बढ़ेगी। प्रसन्नता का विषय है कि इस दिशा में विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री ने शपथ ग्रहण के तत्काल पस्चात कार्य आरंभ कर दिया है। कामयाबी का इंतज़ार रहेगा।


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