सरकारी परिवहन की सुधि ले सरकार
पंजाब की प्रमुख सरकारी परिवहन सेवा पैप्सू रोड ट्रांस्पोर्ट कार्पोरेशन को विगत वर्ष के वित्तीय आकलन में पड़े 10.42 करोड़ रुपये के घाटे ने परिवहन संबंधी सरकार की अनियोजित एवं अदूरदर्शी नीतियों के पाज खोल कर रख दिये हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार एक ओर जहां पैप्सू सड़क परिवहन निगम को जहां इस घाटे को सहन करना पड़ा है, वहीं प्रदेश के चार बड़े डिपो पटियाला, संगरूर, बठिंडा और बुढलाडा लाभ की स्थिति से घाटे में चले गये हैं। नि:संदेह इसके लिए प्रशासनिक त्रुटियां और अनियोजित परिवहन नीतियां ही उत्तरदायी रही होंगी। इन नीतियों का एक बड़ा दुष्परिणाम यह भी निकला है कि मौजूदा बसों की टूट-फूट और खराबियों के कारण यात्री बसों की पुरानी संख्या में कमी होती जा रही है जिसके कारण एक ओर जहां पैप्सू सड़क परिवहन निगम की आय में कमी आई है, वहीं शेष बसों में यात्रियों की भीड़ बढ़ने से यात्रियों खासकर महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों को भारी परेशानी सहन करनी पड़ रही है। अतीत में प्राप्त होते रहे समाचारों के अनुसार प्रदेश के सभी डिपुओं में यात्री बसों की कमी सामने आती रही है। निगम की अपनी मौजूदा बसों की दशा ठीक न होने से भी, बसों की कमी की समस्या आड़े आने लगती है। विभाग की ओर से कई बार बसों की खरीद की घोषणाएं तो बहुत की जाती रही है। वर्तमान में भी प्रदेश में बसों की नई खरीद हेतु टैंडर जारी किए जाने के दावे कई बार किये गये हैं, किन्तु सरकारी कार्य-प्रणाली का परनाला अभी तक टस से मस नहीं हुआ है।
इस संबंधी प्राप्त हुई एक रिपोर्ट के अनुसार पैप्सू सड़क परिवहन निगम की इस दुर्दशा का एक बड़ा कारण सरकारी बसों में औरतों के लिए मुफ्त स़फर की सुविधा और चिरकाल से बसों का किराया-भाड़ा आदि न बढ़ाया जाना बताया जाता है। महिलाओं के लिए मुफ्त सफर का राजनीतिक उद्देश्य-पूर्ति हेतु लिया गया फैसला बेशक, मौजूदा सरकार के सत्तारूढ़ होने से पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा लिया गया एक संरक्षित फैसला है, किन्तु उसके बाद की किसी भी सरकार और खासकर मौजूदा सरकार के लिए इसे वापिस लिया जाना भी किसी सूरत सम्भव प्रतीत नहीं होता। मुफ्त बस सेवा के कारण परिवहन विभाग का प्रदेश सरकार के सिर पर सात सौ करोड़ रुपये से अधिक का बकाया है। चूंकि इस बकाये की अदायगी की कोई कार्य-योजना तैयार नहीं की गई है, अत: यह राशि और बढ़ती जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार निगम का घाटा बढ़ने, नई बसों की खरीद और पुरानी बसों की मुरम्मत आदि न होने का कारण भी मुफ्त बस-सेवा ही बताई जाती है। यह भी बताया गया है कि निगम के अपने कोष में भी धन-राशि की भारी कमी बताई जाती है।
रोडवेज-कर्मी विशेषज्ञों के अनुसार डीज़ल निरन्तर महंगा होते जाना भी बसों की नई खरीद न होने, और पुराने घाटे के और बढ़ते जाने का एक और बड़ा कारण है। नियमानुसार पुरानी बसों के कंडम होते जाने से यह कमी और बढ़ती जाती है। अवैध बस परमिट और ़गैर-पंजीकृत निजी बसों के कारण भी सरकारी परिवहन निगमों का घाटा निरन्तर बढ़ता है। सरकारी बसों की कमी के कारण निजी बसों के मालिकों की चांदी बनती है और इसी कारण वे सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं। एक वर्ष में सरकारी बसों के बेड़े में से 23 बसों का कंडम होकर कम हो जाना एक बड़ी त्रुटि है। हम समझते हैं कि सरकार को अपने परिवहन निगमों की स्थिति में अगर सुधार लाना है, और इनकी घाटे की व्यवस्था को यदि लाभ में बदलना है, तो उसे इस संबंधी नीतियों में आमूल-चूल परिवर्तन लाना होगा। यह भी, कि सरकारी नीति-निर्धारण और इनके क्रियान्वयन पर राजनीति के साये को हटाना भी ज़रूरी होगा। ठेकेदारी प्रणाली से भी विभाग में भ्रष्टाचार बढ़ा है। इस प्रथा पर पुनर्विचार किया जाना भी ज़रूरी है। हम समझते हैं कि नि:संदेह इस प्रकार के तीन-चार नश्तर चला कर न केवल घाव का सफल उपचार किया जा सकता है, अपितु प्रशासन की गतिविधियों में सुधार भी लाया जा सकता है।

