नये आपराधिक कानूनों बारे गम्भीरता से विचार करे सरकार 

इन्साफ के पर्दे में ये क्या ज़ुल्म है यारो,
देते हो सज़ा और खता और ही कुछ है। 
-अ़ख्तर मुसलमीं

देश में तीन नये आपराधिक कनून लागू कर दिए गए हैं। एक जुलाई, 2024 से भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.-1860) के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता (बी.एन.एस.-2023), दंड प्रक्रिया संहिता (सी.पी.आर.सी.-1873) के स्थान पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बी.एन.एस.एस.-2023) तथा भारतीय गवाही अधिनियम-1872 के स्थान पर नया भारतीय गवाही अधिनियम-2023 लागू किया गया है। इन कानूनों पर सबसे बड़ी आपत्ति यह जताई जा रही है कि ये पुलिस की शक्तियों में बड़ी वृद्धि कर रहे हैं। नये कानूनों के अनुसार एफ.आई.आर. दर्ज करने से पहले शुरुआती जांच के लिए 14 दिन का समय मिलेगा जबकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही एक केस में फैसला दे चुकी है कि शिकायत समझने के योग्य अपराध होने पर केस दर्ज करना ज़रूरी है।
मानवाधिकार संगठन के कार्यकर्ताओं को इस बात की बहुत चिन्ता है कि नये कानूनों में हवलदार स्तर के पुलिस कर्मचारी के पास शक्ति है कि वह किसी को भी गिरफ्तार कर, आतंकवाद के आरोप में (कथित) देषी बनाने के समर्थ है। बी.बी.सी. की एक रिपोर्ट के अनुसार वकीलों का कहना है कि बहुत निम्न स्तरीय अपराधों (दोषों) जैसे किसी को कोई ई-मेल करने या किसी दोषी के साथ चाय आदि पर मुलाकात करने या किसी भी मेल-मुलाकात के आधार पर एक व्यक्ति को भी दोषी बनाया जा सकता है। 
सबसे पहले अहम मुद्दा यह है कि पुलिस किसी को भी हिरासत में लेने तथा 90 दिन तक हिरासत में रखने की अधिकारी बन गई है। इन व्यवस्थाओं का परिणाम यह होगा कि यदि आप किसी विशेष प्रकार के कानून के विरोध में प्रदर्शन करते हैं तो आप पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने या राष्ट्र के खिलाफ होने के आरोप लगाए जा सकते हैं। हालांकि नये कानूनों में कुछ अच्छी बातें भी हैं, जिनसे इन्साफ जल्द मिलने की बात कही जा रही है, जैसे अदालत में बहस के बाद फैसला 30 दिन के भीतर सुनाना ज़रूरी है। 
बी.बी.सी. रिपोर्ट के अनुसार इसके अलावा भी नये कानूनों में राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गीत तथा राष्ट्रपिता के अपमान को तो अपमान नहीं माना गया, परन्तु उपवास (भूख-हड़ताल) को अपराध मान लिया गया है। बालिग पुरुषों के यौन शोषण बारे कोई भी धारा नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार नये कानूनों में साइबर अपराध, आर्थिक अपराध, पैसे छिपाना, टैक्स मुक्त देशों में पैसे जमा करने पर तथा डिजिटल नुकसान करने संबंधी अपराधों बारे कुछ स्पष्टता नहीं है। 
वैसे हैरानी की बात है कि भाजपा की सरकारों वाले राज्यों ने तो केन्द्रीय कानून आंखें मूंद कर लागू करने ही थे, परन्तु गैर-भाजपा राज्यों में से पश्चिम बंगाल, कर्नाटक तथा तमिलनाडु को छोड़ कर कहीं से भी इस पर गम्भीर विचार करने तक का समाचार नहीं आया। जहां तक पंजाब की बात है, आम आदमी पार्टी के हाईकमान पर ये आरोप इसीलिए ही लगते रहे हैं कि वह आर.एस.एस. की बी टीम है, क्योंकि वह देश स्तर पर किसी भी ऐसे फैसले का विरोध करना तो दूर विचार-विमर्श भी नहीं करती जो आर.एस.एस. को प्रभावित करता हो। पंजाब ने इन कानूनों की लाभ-हानि, मानवाधिकारों की स्थिति आदि बारे भी विचार-विमर्श किये बिना ही इन्हें लागू कर दिया है। वैसे कमाल की बात यह है कि चाहे केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इन कानूनों बारे राज्यों से सुझाव भी मांगे थे, तथा कर्नाटक के कानून मंत्री एच. के. पाटिल के अनुसार उन्होंने बाकायदा एक समिति बना कर सुझाव भी दिए थे, कर्नाटक तथा बंगाल ने तो ये कानून अभी लागू न किए जाने की विनती भी की थी, परन्तु केन्द्र सरकार ने सब कुछ दृष्टिविगत कर दिया। यहां उल्लेखनीय है कि नये कानूनों की धारा 152 (प्रभुसत्ता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने के काम) तथा धारा 197 (1) सी—राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने वाले दोष के अधीन पहला केस राजस्थान के एक सिख नेता पर दर्ज हुआ है, जिसका शिरोमणि कमेटी के अध्यक्ष हरजिन्दर सिंह धामी, अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के अतिरिक्त श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व तथा तख्त श्री दमदमा साहिब के मौजूदा  जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने विरोध किया है। ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि नये कानूनों का इस्तेमाल अल्पसंख्यकों को दबाने के लिए किया जा रहा है। हमारी पंजाब सरकार को विनती है कि चाहे उसने ये कानून तो लागू कर दिए हैं, परन्तु फिर भी इसकी आपत्तियों वाले हिस्सों बारे कानूनी विशेषज्ञों की समिति बना कर सलाह अवश्य ले और उनमें संशोधन की मांग भी करे। 
कुछ ज़ुल्म-ओ-सितम सहने की आदत भी है हम को,
कुछ ये है कि दरबार में सुनवाई भी कम है।
—ज़िया ज़मीर


‘आप’ के राज्यसभा सदस्यों बारे चर्चा व अफवाहें
विगत कुछ दिनों से वैब टी.वी. तथा सोशल मीडिया पर ‘आप’ के 2-3 राज्यसभा सदस्यों के त्याग-पत्र देकर भाजपा में जाने की चर्चा चल रही है। उल्लेखीय है कि ‘आप’ के कुल दस राज्यसभा सांसद हैं। पिछले काफी लम्बे समय से ‘आप’ काफी मुश्किलों में घिरी दिखाई देती है। पार्टी के एक राज्यसभा सदस्य स्वाति मालीवाल तो पूरी तरह से पार्टी नेतृत्व के विरोध में खड़ी दिखाई दे रही हैं, परन्तु तकनीकी रूप में वह अभी भी ‘आप’ की ही सांसद हैं। शेष में से संदीप पाठक, संजय सिंह तथा राघव चड्ढा को छोड़कर बाकी 6 राज्यसभा सदस्य पार्टी प्लेटफार्मों पर कम ही दिखाई देते हैं। राज्यसभा में भी उनकी कारगुजारी कोई अधिक चर्चा के योग्य नहीं दिखाई देती। वैसे इन 6 सदस्यों में से एक को छोड़ कर शेष सभी ‘धनाढ्य’ माने जाते हैं। यहां तक कि इनमें से अधिकतर न तो पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करते दिखे और न ही पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के विरोध में पार्टी के कार्यक्रमों में दिखाई दिए। स्थिति इस प्रकार की प्रतीत होती है कि जैसे पार्टी उनकी कारगुजारी से निराश है और वे पार्टी से उपराम हैं।  कइयों के बारे में तो यह भी चर्चा है कि वे भाजपा तथा सरकारी एजेंसियों से डरते हैं, परन्तु जहां तक 2 या 3 सदस्यों के त्याग-पत्र देने या भाजपा में शामिल होने की चर्चा चल रही है, वह सही नहीं प्रतीत होती। हमारे सामने है कि पार्टी की एक राज्यसभा सदस्य के साथ मारपीट का मामला पुलिस तथा अदालत तक भी पहुंच गया, परन्तु न उन्होंने इस्तीफा दिया और न ही पार्टी ने ही उन्हें तकनीकी रूप से पार्टी से अलग किया। 
क्योंकि दल-बदल विरोधी कानून के अनुसार किसी भी पार्टी के सांसद या विधायक तब तक कानूनी तौर पर पार्टी नहीं बदल सकते, जब तक उनकी संख्या पार्टी के कुल सदस्यों की दो-तिहाई या अधिक नहीं होती। यह अलग बात है कि कई स्थानों पर स्पीकर या सभापति कम सदस्यों के दल-बदल करने पर भी मामला लटकाए रखते हैं और अपनी पार्टी के हितों की पूर्ति करते देखे जाते हैं। इसलिए हम समझते हैं कि 2 या 3 राज्यसभा सदस्यों के इस्तीफा देने या भाजपा में शामिल होने की बात लगभग न होने के समान है, क्योंकि ऐसी स्थिति में उनकी सीटें रिक्त करार दे दी जाएंगी और ‘आप’ के पास विधायकों की बड़ी संख्या होने के कारण नये राज्यसभा सदस्य भी उसके ही चुने जाएंगे। हां, ऐसा सिर्फ तब ही हो सकता है, यदि 10 में से 7 राज्यसभा सदस्य अलग होकर दल-बदल करने के लिए तैयार हों। वैसे समझा जा रहा है कि भाजपा जहां लोकसभा में अपना पूर्ण बहुमत बनाने के लिए कुछ दल-बदलुओं को उत्साहित कर सकती है, वहीं तीन राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों तथा निकट ही जनवरी 2025 में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों में ‘इंडिया’ गठबंधन तथा दिल्ली में ‘आप’ को झटका देने के लिए ‘आप’ के लोकसभा तथा राज्यसभा सदस्यों पर तीव्र नज़र रख सकती है, परन्तु यह स्पष्ट है कि यदि भाजपा ऐसा करना चाहती है कि उसे ‘आप’ के कम से कम 7 राज्यसभा सदस्य तोड़ने पड़ेंगे। 
उ़फ उसकी नज़र भी तो कयामत की नज़र है,
दिल कैसे बचाएगा कोई उस तीर-ए-नज़र से?

पंजाब से बाहरी सिख तथा अकाली दल 

दिल्ली अकाली दल के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना द्वारा जारी एक प्रैस नोट में पहले यह कहा गया कि अकालियों ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे को समर्थन देने का फैसला किया है, परन्तु कुछ देर बाद इस प्रैस नोट के दृष्टिविगत करके नया प्रैस नोट इस्तेमाल करने के लिए कहा गया। नये प्रैस नोट में कहा गया कि  सुखबीर सिंह बादल के वफादार अकालियों ने महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे को समर्थन देने का सुझाव दिया है। खैर, यह अकाली दल का भीतरी मामला है, परन्तु इस स्थिति की गहराई को समझते हुए हम अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल तथा शेष सिख अकाली गुटों, जिनका मुख्य प्रभाव पंजाब में ही है, को एक बिना मांगी सलाह देना ज़रूरी समझते हैं कि वे पंजाब के बाहरी सिखों को एक ही संदेश पर चलने के लिए कहें जो अकाली दल के अध्यक्ष मास्टर तारा सिंह ने दिया था, जिसके परिणामस्वरूप देश के लगभग 9 राज्यों में सिख विधायक तथा मंत्री बनते रहे। उनका संदेश था कि प्रत्येक राज्य के सभी सिख तथा गुरुद्वारों की कमेटियां तथा अन्य सिख संगठन एकजुट हों और अपने राज्य में सिखों के हितों को देखते हुए उस पार्टी का साथ देने का फैसला करें, जो उनकी अधिक मांगें मानने के लिए तैयार हो और उन्हें अधिक से अधिक विधानसभा टिकटें देने की पेशकश भी करे। इस उद्देश्य के लिए पूरे देश के सिखों के किसी एक पक्ष के साथ चलने की सलाह न दी जाए।
पिंजरे को खुला छोड़ परिंदों को दे उड़ने,
’़गर चाहिए कि प्यार से वापस कोई आए।

-मो. 92168-60000