हरियाणा विधानसभा चुनाव में बैकफुट पर भाजपा
90 विधानसभा सीटों वाले हरियाणा में आगामी 5 अक्तूबर को विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। विगत में हुये किसान आंदोलनों में अपनी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाला हरियाणा किसान आंदोलनों के बाद पहली बार विधानसभा चुनावों से रूबरू होने जा रहा है। चूंकि हरियाणा विगत दस वर्षों से भाजपा शासित राज्य रहा है, इसलिये यहां की भाजपा सरकार पर ही यह सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी थी कि किसान आंदोलन के दौरान राज्य सरकार किसी भी तरह से दिल्ली जाने के लिए पंजाब से आने वाले किसानों को हरियाणा में प्रवेश करने से रोके और साथ ही हरियाणा-दिल्ली सीमा पर इन्हें दिल्ली में प्रवेश करने से भी रोके। ज़ाहिर है हरियाणा की तत्कालीन खट्टर सरकार ने केंद्र की उम्मीदों पर खरा उतारते हुये ऐसा ही किया। खट्टर सरकार को राज्य की पंजाब व दिल्ली की सीमाओं पर भारी पुलिस तैनाती करनी पड़ी। किसानों पर लाठी चार्ज, आंसू गैस, वाटर केनन का इस्तेमाल किया। यहां तक कि गोलियां भी चलानी पड़ीं। इसी गोलीबारी में कई लोग घायल हुये और एक युवा किसान की मौत भी हो गयी, परन्तु किसानों के साथ की गयी इस ज़ोर-आज़माइश के कारण भाजपा की राज्य व केंद्र सरकार को किसानों के भारी विरोध का सामना भी करना पड़ा।
किसानों की नाराज़गी पिछले दिनों हुये लोकसभा 2024 के चुनाव में ही स्पष्ट हो गयी थी, क्योंकि जिस हरियाणा में 2019 में भाजपा को राज्य की सभी दस लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी वहीं इस बार 2024 के चुनाव में उसे 5 सीटें ही मिल सकीं जबकि कांग्रेस भाजपा से 5 सीटें झटकने में कामयाब रही। हालांकि हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव से पूर्व मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री पद से हटा कर केंद्र में भी इसी मकसद से ले जाया गया है ताकि शायद किसानों का गुस्सा कुछ कम हो सके। गौरतलब है कि खट्टर के मुख्यमंत्री रहते उनकी सरकार ने कई बार न केवल किसान आन्दोलन को दबाने कार्रवाई की थी, बल्कि स्वयं खट्टर ने ही अपने समर्थकों को किसानों के विरुद्ध हिंसा करने के लिये भी कथित तौर पर भड़काया था। आज भी हरियाणा सरकार ने शम्भू बॉर्डर पर किसानों को रोकने के लिये अवरोधक लगा रखे हैं जिसकी वजह से राजस्थान, कश्मीर व पंजाब की तरफ से दिल्ली, हरियाणा व उत्तर प्रदेश की ओर जाने वालों को भारी परेशानी व जाम का सामना करना पड़ रहा है।
पिछले दस वर्षों की सत्ता विरोधी लहर होने के साथ ही इस बार चुनावों में भाजपा के महिला सुरक्षा के दावे और उसकी हकीकत भी एक बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है। खास तौर पर ऐसे वक्त पर जब देश का विश्व में नाम रौशन करने वाली पहलवान विनेश फोगट और बजरंग पुनिया जैसे ओलम्पियंस कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। विनेश फोगाट को राज्य की जुलाना विधानसभा सीट से पार्टी प्रत्याशी घोषित किया गया है जबकि बजरंग पुनिया को किसान कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर उन्हें संगठन में और भी बड़ी ड़िम्मेदारी सौंपी गयी है। जहां किसान नेता भाजपा सांसद व कुश्ती महासंघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृज भूषण सिंह के खिलाफ उसके नारी शोषण के विरुद्ध किये जा रहे आंदोलन में इन ओलम्पियन्स के साथ खड़े थे, वहीं ये ओलम्पियन्स भी किसान आंदोलन का समर्थन करते देखे गये थे।
राज्य में भाजपा पर कांग्रेस की ज़बरदस्त बढ़त के दो और भी कारण हैं। एक तो यह कि राहुल गांधी द्वारा कन्याकुमारी से कश्मीर तक तय की गयी भारत जोज़ो यात्रा हरियाणा से होकर गुज़री थी। इस यात्रा ने न केवल राज्य के मतदाताओं पर अपना प्रभाव छोड़ा था, बल्कि राज्य के कांग्रेस जनों में भी जोश व उत्साह का संचार किया था, जिसका नतीजा लोकसभा चुनाव में 5 सीटें जीतने के रूप में सामने भी आया। अब जहां कांग्रेस 5 लोकसभा सदस्यों की जीत के साथ बुलंद हौसले से चुनाव मैदान में है, वहीं भाजपा जीतने में समर्थ उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के चक्कर में न केवल कई दलबदलुओं को प्रत्याशी बना रही है बल्कि परिवारवाद के विरुद्ध लंबे चौढ़े भाषण देने के बावजूद खुद भी कई ‘परिवारवादी नेताओं’ पर दांव लगा रही है, क्योंकि भाजपा को अपने दल में योग्य व जिताऊ नेताओं की कमी महसूस हो रही है। इसी उधेड़बुन में भाजपा ने पिछले दिनों राज्य में 67 पार्टी प्रत्याशियों की जो पहली सूची जारी की, उसमें रणजीत चौटाला जैसे मंत्री सहित 9 वर्तमान विधायकों के टिकट काट दिये गये। परिणाम स्वरूप भाजपा में पद व दल से नेताओं के इस्तीफे की झड़ी लग गयी। इस भगदड़ में कोई भाजपाई किसी दूसरे दल में टिकट के लिये ताकझांक कर रहा है तो कोई निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने के मूड में है।
वैसे भी भाजपा ने जिस समय चुनाव आयोग से पहले घोषित की गयी 1 अक्तूबर की चुनाव तिथि को टालने की मांग की थी उसी समय राज्य के लोगों को यह सन्देश चला गया था कि भाजपा चुनाव से घबरा रही है। अब 5 अक्तूबर की नई चुनाव तिथि निर्धारित होने पर भी लोगों का यही कहना है कि तिथि बदलने से लोगों की धारणा व उनका मन नहीं बदलने वाला।
राज्य में भाजपा के विपरीत हवा का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि स्वयं मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी जो पिछली विधानसभा में नारायणगढ़ क्षेत्र से विधायक चुने गए थे, उन्होंने विधानसभा चुनाव की तिथि घोषित होते ही अपने विधानसभा क्षेत्र नारायणगढ़ में रोड शो आयोजित किया था। इस रोड शो का ज़बरदस्त प्रचार किया गया। फोन पर भी मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की आवाज़ में आम लोगों को निमंत्रण भेजा गया, परन्तु इस रोड शो में अपेक्षा से कहीं कम लोग शामिल हुये। उसके बाद ही सैनी को करनाल से चुनाव लड़ाये जाने की चर्चा चली, परन्तु जब पहली सूची सामने आयी तो पता चला कि मुख्यमंत्री सैनी को पार्टी लाडवा से चुनाव लड़ा रही है। गोया, मुख्यमंत्री तक को अपने लिये सुरक्षित सीट तलाश करने में मुश्किल हो रही है।
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