आतंक फैलाने का अंजाम : अपनों की मौत पर रोया मसूद अज़हर
22अप्रैल को पाकिस्तान संरक्षित आतंकवादियों ने पहलगाम में भारत की आत्मा पर चोट की। हमारे देश के 26 परिवारों के सदस्य जो कश्मीर यात्रा पर गए थे और पहलगाम में प्रकृति की सुंदरता का आनंद परिवारों समेत ले रहे थे, उन पर आतंकवादियों ने हमला किया और हरेक से उसका धर्म पूछा। हिंदू है तो मार दो, यह उनकी आवाज़ थी। इस क्रूर नरसंहार में नवविवाहिताएं भी थीं और बच्चों समेत परिवार भी। इस हत्याकांड की खबर ने पूरे देश को ही नहीं, दुनिया को हिला दिया। अमरीका तक भारत के समर्थन में आ गया। पूरा भारत एकजुट होकर खड़ा हो गया। कोई पक्ष विपक्षए राजनीतिक पार्टी या विरोधी पार्टी का प्रश्न नहीं रहा। पूरा देश मांग रहा था इसका बदला लिया जाए और प्रधानमंत्री ने कह दिया था कि ऐसा बदला लिया जाएगा जिसकी पाकिस्तान और आतंकवादी कभी कल्पना भी नहीं कर पाएंगे और वह बदला आपरेशन सिंदूर के रूप में दुनिया के सामने आया। मंगलवार की रात को एक बजकर पांच मिनट पर भारत के वायु वीर अपने लक्ष्य के लिए चल पड़े और पच्चीस मिनट में उन्होंने पाकिस्तान स्थित नौ आतंकी अड्डे उड़ा दिए। सुबह सूर्योदय के साथ ही जब पूरे देश ने यह देखा तो सब ओर गर्व और हर्ष की लहर थी।
जानकारी यह है कि जब बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय सुभान अल्ला पर आक्रमण हुआ तब वहां आतंकी मसूद अज़हर का परिवार सो रहा था और हमारे वीरों ने उन्हें सदा की नींद सुला दिया। दुनिया दंग रह गई जब आपरेशन सिंदूर में मारे गए आतंकवादियों को पाकिस्तान ने उनकी सेना ने अंतिम विदाई देते हुए उनके जनाज़े को सैन्य सम्मान दिया, सैनिक विदाई दी। अब किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं कि जितने भी आतंकी गुट हैं ये पाकिस्तान सरकार की सहमति से पाकिस्तानी सेना ने ही तैयार किए हैं। केवल भारत में अराजकता, सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए और मसूद का तो एकमात्र लक्ष्य ही भारतीय कश्मीर को भारत से अलग करना है।
कहते हैं न अपना गम है और का गम कहानी। जब मसूद के परिवार के दस लोग और चार उसके गुर्गे इस सिंदूर आपरेशन में मारे गए तो वह फूट-फूट कर रोया और उसने यह कहा कि अच्छा होता कि वह भी मर जाता। भारत सरकार से, भारत के सुरक्षा बलों से यह निवेदन है कि अज़हर को मरने नहीं देना, उसे अभ और रूलाया जाना चाहिए। यह ठीक है कि उसका भाई रउफ अज़हर इस अभियान में मारा गया। देश को शायद ही यह याद होगा कि 1999 में जो हमारा जहाज़ यात्रियों समेत अपहरण करके अफगानिस्तान तक ले जाया गया था, वह सारी रउफ की ही योजना थी। वह इस जहाज़ के बदले अपने भाई अज़हर को जो 1995 से भारत की जेल में बंद था, उसे वापस लेना चाहता था। वह कामयाब भी हो गया, भारत की सरकार के सामने जनता के सैकड़ों नागरिकों की जीवन रक्षा का प्रश्न था जो उस समय जहाज में फंसे थे।यह मसूद अज़हर जो संसद हमले से लेकर पठानकोट एयरबेस पर हमले का मुख्य सरगना था। वह पहली बार रोता देखा गया, क्योंकि चोट उसके दिल पर लगी थी। उसके परिवार के दस लोग मारे गए थे। जिस अजहर को मुंबई का कत्लेआम देखकर दर्द नहीं हुआए जिसे पहलगाम में निर्दोषों की हत्याओं पर दर्द नहीं हुआ उसे अपने आतंकी परिवार की मृत्यु पर दुख हो रहा था। देशवासियों को याद रखना होगा कि जब जहाज़ के यात्रियों के बदले अज़हर को दो अन्य आतंकवादियों सहित आतंकियों के हवाले किया गया था तो उसके बाद उसने कराची में एक बड़ी जनसभा की गई थी। ऐसा कहा जाता है कि उसमें दस हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। उसने वहां भारतीय कश्मीर को आज़ाद करवाने की कसम खाते हुए कहा कि वह कराची में इसलिए आया है कि आपको बता सके कि मुस्लिमों को तब तक चैन से नहीं बैठना चाहिए जब तक वह हिंदुस्तान को तबाह न कर दें। अज़हर का भाई जो आप्रेशन सिंदूर में मारा गया, वह भी बड़ा आतंकवादी था। अज़हर की रिहाई की मांग करते हुए इसने अपने साथियों समेत कश्मीर में विदेशी पर्यटकों को 1995 में अगवा कर लिया था। तब भी इसकी एक ही मांग थी कि अज़हर को रिहा करो और सभी विदेशी पर्यटक मार दिए गए। एक भाग्यशाली पर्यटक किसी तरह भागकर बच गया था।
अज़हर का साथी हामिद और उसका बेटा भी आतंकवाद की आग लगाने के लिए हर समय तैयार रहते हैं, परन्तु इन आतंकवादियों को पाकिस्तान में विशिष्ठ अतिथि के रूप में सुरक्षित स्थान पर रखा है और वह जानता है कि अगला निशाना वे हो सकते हैं। मसूद अज़हर को शायद एहसास तो हो गया होगा कि अपनो की मौत का दर्द क्या होता है। आतंकवाद का अंत क्या होता है, अब समझ गया होगा। अच्छा हो अज़हर ज़िंदगी भर रोता रहे। वह पाकिस्तान का पतन अपनी आंखों से देखे। बलोचों की विजय भी देखे। जो पाक के कब्ज़े में कश्मीर है, उसे भारत के साथ मिलता हुआ देखे। इसलिए अज़हर को ज़िंदा रखना चाहिए, उसे मरने नहीं देना चाहिए।