सड़क-दुर्घटनाओं के घायलों हेतु मुफ्त उपचार योजना

केन्द्र सरकार द्वारा देश भर में सड़क मार्गों पर होने वाली दुर्घटनाओं में घायल होने वाले लोगों के लिए घोषित की गई मुफ्त कैश-लैस यानि नकदी-रहित उपचार योजना नि:संदेह अनेक धरातलों पर लाभकारी एवं हितकर साबित हो सकती है। इस योजना के तहत देश भर के मुख्य राज मार्गों और अन्य सम्बद्ध सड़क-पथों पर होने वाली दुर्घटनाओं में हताहत होने वाले लोगों को तात्कालिक रूप से मदद मिल सकेगी। इस योजना के अन्तर्गत, सड़क-दुर्घटनाओं में घायल होने वाले लोगों को प्राथमिक तौर पर सात दिनों तक किसी भी अधि-सूचित अस्पताल में मुफ्त उपचार और देखभाल उपलब्ध होगी। इस उपचार की कीमत 1.50 लाख रुपये तक होगी। इस योजना के अन्तर्गत उपलब्ध उपचार के लिए देश के सभी राज्यों के छोटे-बड़े शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ खास अस्पतालों को चिन्हित किया गया है जो ऐसे घायलों के उपचार के लिए न केवल प्रतिबद्ध होंगे, अपितु इस कार्य हेतु उन्हें केन्द्र सरकार से मदद भी मिलेगी। केन्द्र सरकार के पथ परिवहन मंत्रालय द्वारा इस योजना हेतु बाकायदा अधिसूचना जारी कर दी गई है, और कि यह योजना इसी वर्ष 5 मई को लागू भी हो गई है। इस योजना का यह भी एक बड़ा सार्थक पक्ष है कि ऐसी सड़क दुर्घटनाओं में घायल होने वालों को यह उपचार सुविधा किसी भी राज्य में समान रूप से उपलब्ध हो सकेगी, और कि उपचार से जुड़े अस्पताल का प्रशासन इसके लिए उत्तरदायी भी माना जाएगा।
इस महती योजना की घोषणा की पृष्ठभूमि में पिछले मास 29 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई यह एक टिप्पणी भी कारगर हो सकती है कि सरकारें बड़े राज-मार्ग तो बना रही है किन्तु सुविधाओं के अभाव में सड़क-दुर्घटनाओं में घायल होने वाले लोग आज भी मर रहे हैं। अदालत ने केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को ऐसे घायलों की जान बचाने के लिए पूर्व में प्रस्तावित कैश-लैस उपचार जैसी कोई योजना घोषित एवं लागू करने में की जा रही अकारण देरी के लिए कड़ी फटकार भी लगाई थी। अदालत ने ऐसे नाजुक अवसरों पर सुविधाओं के अभाव हेतु भी केन्द्र सरकार की आलोचना की थी। अदालत ने इस हेतु केन्द्र सरकार को विगत 8 जनवरी को 13 मई तक का अल्टीमेटम भी दिया था। अदालत ने केन्द्र सरकार पर अदालती निर्देशों का पालन नहीं किये जाने और तीन वर्ष के लिए पूर्व में घोषित ऐसी ही एक उपचार योजना की सुविधाएं ज़रूरतमंदों तक पहुंचाये जाने को लेकर अदालत की अवमानना किये जाने का भी आरोप लगाया। अदालत ने किसी दुर्घटना के बाद एक घंटे के भीतर घायल को उपचार अवश्य मिल जाने को सुनिश्चित बनाने वाली गोल्डन आवर योजना भी तत्काल लागू किये जाने हेतु सरकार को निर्देश दिया।
सड़क दुर्घटनाओं के मामले में भारत सर्वाधिक नाजुक देशों में शुमार होता है। देश में विश्व की कुल दुर्घटनाओं में से 11 प्रतिशत यहीं घटित होती हैं। देश में प्रत्येक तीन मिनट बाद एक घातक सड़क दुर्घटना और इस दौरान एक मृत्यु हो जाती है। इस अनुपात से देश में एक दिन में 800 से अधिक लोग हताहत हो जाते हैं। त्रासद स्थिति यह भी है कि इनमें से अधिकतर वे होते हैं जो तुरंत उपचार न मिलने पर घायल अवस्था में मर जाते हैं।  केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार अकेले विगत वर्ष 2024 में 4,80,000 सड़क दुर्घटनएं हुईं, और इनमें 1,80,000 लोग मारे गये। लगभग 4 लाख लोग इनमें घायल भी हुए। ऐसी गम्भीर स्थिति के बावजूद सरकारों का निष्क्रिय बने रहना, और अदालती निर्देशों की भी अवहेलना होना चौंकाता है। अब अदालत ने इस मुद्दे पर गम्भीर रुख इख्तियार किया है, तो केन्द्र सरकार को भी हाथों-पैरों की पड़ गई प्रतीत होती है।
नि:संदेह सरकार अब गोल्डन आवर योजना की ओर बढ़ी है, तथा मुफ्त कैश-लैस योजना बनाने हुतु भी विवश हुई है। बेशक संयुक्त राष्ट्र संघ के आह्वान पर विश्व भर के बड़े देश सड़क मार्गों के विस्तार और सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने हेतु उन्मुख हुए हैं, किन्तु सड़क दुर्घटनाओं के घायलों के लिए सुविधाओं की उपलब्धता के मामले में अभी भी देश की केन्द्र सरकार और राज्यों की सरकारें बेहद पिछड़ी हैं। सड़क दुर्घटनाओं में घायल होने वालों के लिए अभी भी ऐसा समय दुर्दिनों जैसा हो जाता है। ऐसे घायलों की सुविधा हेतु अस्पतालों अथवा स्वयं-सेवी संस्थाओं के धरातल पर भी भारी कमी है। ऐसे में केन्द्र सरकार की मौजूदा मुफ्त कैश-लैस योजना न केवल ढाढस बंधाती है, अपितु घायलों के लिए किसी फरिश्ते के आगमन की सूचक भी बनती है। तथापि, हम आशा करते हैं कि यह योजना शीघ्र और समुचित तरीके से लागू हो। जितना शीघ्र यह योजना लागू होगी, उतना ही सड़क दुर्घटनाओं के घायलों के लिए हितकर और लाभकारी साबित होगी।

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