सिर्फ सैन्य टकराव पर युद्ध-विराम सही फैसला
संघर्ष विराम की घोषणा के बाद पाकिस्तानी सेना जो दुसाहस दिखाया, वह पूरी दुनिया देखा। यह पहला अवसर नहीं है। इस तरह की वायदा खिलाफी और सहमति को पाकिस्तान कई बार नकार चुका है। संघर्ष विराम समझौते के कुछ ही घंटों बाद, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने संघर्ष विराम समझौते पर सवाल उठाए, क्योंकि शनिवार शाम श्रीनगर में ज़ोरदार धमाकों की आवाजें गूंज उठी थीं। अब्दुल्ला ने एक्स पर लिख दिया था, संघर्ष विराम को आखिर क्या हो गया? श्रीनगर में धमाकों की आवाज़ें सुनी गई थीं। श्रीनगर के बीच में हवाई रक्षा इकाइयों ने अचानक गोलीबारी शुरू कर दी। यहा भारत सरकार को भारत-पाक के बीच अमरीका की कूटनीति और व्यापारनीति को भी समझना होगा। अमरीका के लाख प्रयास के बाद भी रूस द्वारा यूक्रेन खिलाफ युद्ध विराम न करना भारत के लिए एक बड़ा संकेत है। यहां अमरीका की कूटनीति और व्यापार नीति को उजागर करने वाली दिसम्बर 2024 के संघर्ष सूचकांक की रपट बताती है कि पिछले पांच वर्षों में संघर्ष का स्तर लगभग दोगुना हो गया है।
जानकारों को आशंका है कि भविष्य में इज़राइल, गाज़ा, वैस्ट बैंक, लेबनान, ईरान, इराक, सीरिया, यमन, म्यांमा, मैक्सिको, बुर्किना फासो, माली, नाइजर, सूडान, यूक्रेन, कोलविया, पाकिस्तान रवांडा, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक आफ कांगो, युगांडा और बुरुंडी में हालात और खराब हो जाएंगे। अमरीका ने इनमें से कई देशों को पहले ही उकसाया है। 2022 में अमरीका ने अकेले यूक्रेन को 18.1 अरब डालर के हथियार दिए। 2023 में यह बढ़कर 80.9 अरब डालर हो गया। दुनिया भर में बिक्री 238 अरब डालर की थी, जिसमें से 81 अरब डालर के लिए अमरीकी सरकार ने सीधे बातचीत की, जो 2022 से 56 फीसदी की वृद्धि है। 2023 में अमरीका ने इज़राइल को 21.2 अरब डालर दिए, 2024 में यह राशि बढ़कर 42.76 अरब डालर हो गई।
पाकिस्तान संघर्ष विराम के लिए विवश तो हुआ, लेकिन शायद आसानी से सुधरने के लिए तैयार नहीं है। यह इससे स्पष्ट है कि उसने संघर्ष विराम को कुछ ही घंटों के अंदर तोड़ने की हिमाकत की। भारत ने उसके एयर डिफेंस सिस्टम की धज्जियां उड़ाकर जिस तरह उसके प्रमुख एयरबेस ध्वस्त किए, उसके बाद उसके सामने और अधिक तबाही एवं शर्मिंदगी झेलने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह गया था। कहना कठिन है कि क्या इससे बचने के लिए उसने संघर्ष विराम तोड़ा या फिर धोखेबाजी की अपनी आदत के चलते? जिसे संघर्ष विराम कहा जा रहा, उसे ऐसा सीमित युद्ध कहा जाना चाहिए, जिसमें भारत कोई रियायत बरतने के लिए तैयार नहीं था। यह ठीक है कि सैन्य टकराव रोकने की घोषणा अमरीकी राष्ट्रपति ने की, लेकिन इसका मूल कारण तो भारत का यह संकल्प रहा कि इस बार पाकिस्तान को छोड़ना नहीं है। भारत ने संघर्ष विराम केवल सैन्य टकराव रोकने तक सीमित रखकर बिल्कुल सही किया। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को सही रास्ते पर लाने के लिए उसके खिलाफ सिंधु जल समझौते स्थगित करने जैसे जो कठोर फैसले लिए, वे यथावत रहेंगे।
भारत के प्रति नफरत के चलते पाकिस्तानी सेना और सरकार यह समझने को तैयार नहीं कि वह अपने देश को तबाही की ओर ले जा रही है। वहां की जनता एक वर्ग अवश्य यह महसूस कर रहा था और इसीलिए वह आसिम मुनीर को कठघरे में खड़ा कर रहा। वह उन्हें एक जिहादी जनरल के रूप में देख रहा है। पाकिस्तान के सत्ताधारी नेता अपनी सेना की कठपुतली बनने के कारण साख गंवा चुके थे। इसीलिए उसका विश्व के प्रमुख देशों ने साथ नहीं दिया। इससे भी उसके हौसले पस्त हुए, लेकिन शायद धोखेबाजी की उसकी आदत इतनी जल्दी नहीं छूटेगी। भारत की ओर से पाकिस्तान को अब अंतिम चेतावनी दिया जाना ज़रूरी थी कि यदि भविष्य में कोई आतंकी हमला होता है तो यह युद्ध की घोषणा मानी जाएगी। भारत को अपनी इस नई नीति पर अमल करने की तैयारी रखनी चाहिए। संघर्ष विराम तोड़ा जाना इसका ताज़ा प्रमाण है। पाकिस्तान के भारत के हाथों बुरी तरह मात खाने के बावजूद अभी यह पता चलना शेष है कि उसे यह समझ आया कि वह जिस रास्ते पर चल रहा, वह विनाश का रास्ता है। हालाकि युद्ध के दौरान भारतीय या पाक के आम नागरिकों की जो मौते हो रही हैं, उसकी भरपाई तो कभी नहीं होगी। इसके बावजूद अगर पाक अपनी नापाक हरकते बंद नहीं करता तो भारत सरकार को कड़ा रुख अपनाना चाहिए।