बिहार चुनाव: बुजुर्गों की विदाई तय, युवाओं के सिर सजेगा ‘ताज’

देश और दुनिया में प्राचीन ज्ञान एवं शिक्षा के केंद्र नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय के लिए चर्चित बिहार में ‘बुजुर्गों’ की राजनीति के दिन अब पूरे होते दिख रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य के चलते उनकी राजनीतिक सक्रियता अब न के बराबर है। वहीं समाजवादी आंदोलन से निकले दूसरे बड़े चेहरे रामविलास पासवान के पुत्र और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की एंट्री भी अब बिहार के दंगल में हो गई है। इसी प्रकार वर्तमान मुख्यमंत्री नितीश कुमार के भी बुजुर्ग तथा बीमार होने की बात कही जा रही है जिसके चलते भी अब उनके राजनीतिक वारिस की तलाश की जा रही है। ऐसे में बिहार की राजनीति से बुजुर्गों की विदाई तय है। साथ ही यह भी माना जा रहा है कि इस साल के आखिर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में राजनीति में युवाओं के रूप में नए चेहरों की ‘भागीदारी’ महत्वपूर्ण रहेगी तथा बतौर मुख्यमंत्री किसी नए चेहरे के सिर पर सत्ता का ‘ताज’ सज सकता है।
बिहार की सियासत की बात करें तो वर्तमान में बिहार में सक्रिय विभिन्न राजनीतिक दलों में इन दिनों पार्टी की कमान युवा चेहरों के हाथ है। चारा घोटाले में लालू यादव के सजायाफ्ता होने तथा उम्रदराज होने के बाद उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने पार्टी की बागडोर संभाल रखी है। लालू यादव अब पार्टी में महज मार्गदर्शक की भूमिका में हैं। आज से करीब दस वर्ष पूर्व 2015 में ही राजनीति में तेजस्वी यादव की एंट्री हो गई थी। बीते बिहार विधानसभा के चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव राजनीति की लाइमलाइट में आए थे। तब उन्होंने कांग्रेस सहित अन्य गैर भाजपाई दलों के साथ बिहार में ‘महागठबंधन’ बनाकर चुनाव लड़ा और खासी कामयाबी हासिल की। तब चुनावी राजनीति में पहली बार ही बेहतर प्रबंधन करते हुए तेजस्वी की अगुवाई में आरजेडी को 75 सीटें मिली थी। अब एक बार फिर बिहार विधानसभा चुनाव के लिए तेजस्वी की कमान में राष्ट्रीय जनता दल पूरी तरह तैयार है और उनके आक्रामक तेवर पार्टी कार्यकर्ताओं में एक नया जोश भर रहे हैं।
इस साल की शुरुआत में ही जनता दल यूनाइटेड के नेताओं ने वर्तमान मुख्यमंत्री नितीश कुमार के चेहरे पर ही एक बार फिर से चुनाव लड़ने की बात छेड़कर गठबंधन की राजनीति को गर्मा दिया है। जनता दल यूनाइटेड का एक धड़ा नितीश कुमार के पुत्र को राजनीति में लाने की बात कह रहा है। पेशे से इंजीनियर नितीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार सक्रिय राजनीति से अभी तक दूर ही रहते आए हैं। कई बार निशांत खुद भी इस बात का एलान कर चुके हैं कि वो कभी भी अपने पिता की तरह राजनीति में नहीं आएंगे। लेकिन राजनीति संभावनाओं का खेल है और बिहार की राजनीति के जानकार इस बात को मानते हैं कि देर सवेर सही निशांत कुमार का सक्रिय राजनीति में प्रवेश होकर ही रहेगा। ऐसे में भाजपा एवं जनता दल यूनाइटेड सहित समूचा एनडीए निशांत कुमार को भावी युवा मुख्यमंत्री के तौर पर प्रस्तुत कर सकता है। उधर बिहार की राजनीति में समाजवादी आंदोलन से निकले एक-दूसरे कद्दावर नेता रामविलास पासवान साल 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान ही अपने पुत्र चिराग पासवान को सियासत में उतार चुके थे। इस दौरान पार्टी के सारे फैसले चिराग ही लेते रहे।
बिहार में महागठबंधन में शामिल कांग्रेस अपने स्वतंत्र अस्तित्व के बजाय महागठबंधन के जरिए ही कांग्रेस अपनी उपस्थिति दर्ज कर रही है। वर्ष 2019 में सीपीआई से कांग्रेस में गए कन्हैया कुमार इन दोनों बिहार में कांग्रेस के पोस्टर बॉय हैं। कन्हैया मूल रूप से बिहार के बेगूसराय के रहने वाले हैं तथा जेएनयू छात्र संघ के वे अध्यक्ष भी रह चुके हैं। नयी सोच के साथ बिहार को आगे बढ़ाने में कन्हैया की भूमिका हो सकती है। कांग्रेस ने बिहार में जो सांगठनिक बदलाव किए हैं, वह कन्हैया कुमार के अनुकूल है तथा इस लगता है कि कांग्रेस बिहार में अपने पारंपरिक वोट बैंक की ओर लौट रही है और स्वर्णों को एक बार फिर तरजीह देने की कांग्रेस ने योजना बनाई है। कन्हैया कुमार भी स्वर्ण भूमिहार हैं। और कन्हैया कुमार की दमपरी कांग्रेस अब बिहार के चुनावी महाभारत में जीत का परचम लहराना चाहती है। बिहार विधानसभा चुनाव की कवायद में चुनावी रणनीतिकार से पॉलिटिशियन बने प्रशांत किशोर उर्फ पीके बिहार में वैकल्पिक राजनीति की जमीन तैयार करने में जुटे हैं।
राजनीति में बुजुर्गों की विदाई तथा युवा पीढ़ी को अधिक मौके देने वाली इस कवायद में सबसे पहले भाजपा ने इस बदलाव की शुरुआत की थी। भाजपा ने 75 साल के पॉलिटिशियन को रिटायर करने की इस कवायद में लालकृष्ण आडवाणी एवं मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को ‘मार्गदर्शक मंडल’ में भेज दिया गया। हाल के दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा एक लाख युवाओं को राजनीति में लाने के आह्वान किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यही ‘राजनीतिक आह्वान’ का आगा? बिहार विधानसभा चुनाव से ही अमल में आ सकता है।

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