अस्थिरता की ओर बढ़ता बांग्लादेश

भारत का पड़ोसी बांग्लादेश एक बार फिर अस्थिर होता दिखाई दे रहा है। यह देश वर्ष 1971 में अस्तित्व में आया था, और इससे पहले यह पाकिस्तान का ही हिस्सा था और इसका नाम पूर्वी पाकिस्तान था। उस समय श़ेख मुजीबर रहमान के नेतृत्व में अवामी लीग पार्टी ने अलग देश बनाने के लिए कड़ी लड़ाई लड़ी थी, जबकि कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी पार्टी आज़ादी की लड़ाई के विरुद्ध थी और इसे पाकिस्तान का हिस्सा ही रखना चाहती थी।
भारत ने इस आज़ादी की लड़ाई में बांग्लादेशियों का साथ दिया था। उसके कुछ वर्ष बाद बेहद लोकप्रिय नेता शेख मुजीबर-उर-रहमान की सैनिकों ने मिलकर परिवार सहित गोलियां मार कर हत्या कर दी थी। उस समय श़ेख हसीना और उसकी बहन देश से बाहर होने के कारण बच गई थीं। अवामी लीग के साथ बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी जिसकी अध्यक्ष खालिदा ज़िया हैं, ने भी यहां बड़ा आधार बना लिया था। उनके शासन के समय भारत के साथ इसके संबंध सुखद नहीं रहे थे, परन्तु इस पूरे समय में बांग्लादेश अनेक आर्थिक और कट्टरपंथियों की चुनौतियों से भी जूझता रहा परन्तु अवामी लीग पार्टी का प्रभाव इस पूरे समय में बना रहा। पिछले 16 वर्ष से शेख हसीना ने बड़ी सख्ती से यहां प्रशासन चलाया। उसने कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी पर पाबंदी लगाए रखी। श़ेख हसीना के भारत के साथ हमेशा अच्छे संबंध बने रहे। उनके शासन में बांग्लादेश आर्थिक रूप से भी मज़बूत हुआ परन्तु 10 महीने पहले वहां ऐसा विद्रोह हुआ कि युवाओं और विद्यार्थियों के साथ जमात-ए-इस्लामी और बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टियां भी मिल गईं। विद्यार्थियों का आन्दोलन हिंसक हो गया और इसे श़ेख हसीना की सरकार द्वारा सख्ती से दबाने के यत्न किए गए। इस संघर्ष में ज्यादातर लोगों की मौत हो गई। अंतत: पिछले वर्ष 5 अगस्त को शेख हसीना को देश छोड़ कर भारत में शरण लेनी पड़ी। नोबल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का सलाहकार नियुक्त किया गया परन्तु अब तक वह भी वहां अपनी मज़बूत पकड़ नहीं बना सके। इस समय सेना और बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी शीघ्र चुनाव करवाना चाहते हैं, जबकि अन्य पार्टियां और अंतरिम सरकार इन चुनावों को आगे डालना चाहती हैं। इसी दौरान ही जमात-ए-इस्लामी पार्टी को पुन: मान्यता दे दी गई है और अज़हरुल इस्लाम जैसे उन व्यक्तियों को दोष मुक्त करार दे दिया गया है, जिन्होंने उस समय पाकिस्तान के साथ मिलकर बांग्लादेश की आज़ादी में रुकावट डालने का यत्न किया था। 
इस समय में भी युनूस के नेतृत्व में यह देश पाकिस्तान के अधिक नज़दीक हो गया है और उसकी भांति ही इसने भारी ऋण लेने के लिए चीन की ओर हाथ फैला दिए हैं। अब बांग्लादेश में श़ेख हसीना के समय स्थापित किए गए अन्तर्राष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल ने उसे पिछले वर्ष की हिंसक घटनाओं में हुई मौतों के लिए दोषी करार देकर भारत से उसे सौंपने की मांग की है, जिससे भारत को एक और बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। इसमें सन्देह नहीं कि जिस मार्ग पर बांग्लादेश चल रहा है, वह उसे और भी अस्थिर करने वाला सिद्ध होगा, परन्तु उसका अनिश्चित भविष्य भारत के लिए भी ़खतरे की घंटी ज़रूर बनेगा, जिसके संबंध में भारत को प्रत्येक पक्ष से सतर्क रहने की ज़रूरत होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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