पंजाब में चिन्ताजनक स्तर तक गिरता भू-जल

पंजाब में भूमिगत पानी का निरन्तर नीचे जाता स्तर आज गम्भीर चिंता का विषय बन गया है। नि:संदेह यह चिन्ता और घनीभूत होने लगती है जब भू-वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों की ओर से यह दावा किया जाता है कि यदि इस स्थिति से बचने हेतु तत्काल समुचित उपाय नहीं किये गए तो पंजाब के एक बड़े भू-भाग में रेगिस्तान के उपजने का ़खतरा उत्पन्न हो सकता है। प्रदेश में धरती के नीचे वाले पानी की कमी और इसका स्तर नीचा होने वाली स्थिति आज कोई नई बात नहीं है। दशकों से पंजाब में यह ़खतरा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। इस स्थिति को लेकर कृषि-विशेषज्ञों और खास तौर पर पंजाब की कृषि का हित-चिन्तन करने वाले लोगों की ओर से समय-समय चिन्ता व्यक्त की जाती रही है, किन्तु जिन लोगों के ज़िम्मे इस स्थिति में सुधार का दायित्व है, उनकी ग़फलत की निद्रा कभी नहीं टूटी। प्रदेश में भिन्न-भिन्न राजनीतिक दलों की सरकारें आती-जाती रहीं किन्तु किसी भी सरकार ने कभी पंजाब की इस धरातल पर उपजी दुर्दशा को लेकर हाअ का नारा नहीं लगाया। लिहाज़ा स्थितियों में सुधार की बात एक से दूसरी सरकार से लेकर आगे से आगे बढ़ती चली गई, और आज स्थिति गोया यह हो चली है कि पंजाब में आगामी किसी भविष्य में रेगिस्तान जैसी स्थिति उपजने का ़खतरा बढ़ गया है।
पंजाब एक कृषि-प्रधान राज्य है, और नि:संदेह पंजाब की कृषि और किसानों की वजह से ही न केवल देश अन्न के धरातल पर आत्म-निर्भर हुआ है, अपितु प्रदेश में समृद्धि की एक बड़ी लहर भी उदित हुई है। इस कारण प्रदेश के किसान ने भी समृद्धि का स्वाद चखा। तथापि पंजाब की कृषि और किसान की लापरवाही के कारण ही आज पूरा प्रदेश पानी की कमी के संकट वाले कगार पर जा खड़ा हुआ है। पंजाब की सम्पूर्ण कृषि गेहूं और धान के दो-फसली चक्र पर निर्भर होकर रह गई है। धान की फसल के लिए अतिरिक्त पानी की ज़रूरत होती है, और कि पानी की यह आपूर्ति प्रदेश का किसान भरसक रूप से भूमिगत पानी को निकाल कर ही करता है। प्रदेश की कृषि कभी वर्षा और नहरी पानी पर निर्भर हुआ करती थी, किन्तु आज धान की बुआई के लिए अधिकतर ट्यूबवैलों के माध्यम से भूमिगत पानी खींचा जाता है। तिस पर सितम की बात यह कि प्रदेश की सरकारों की ओर से राजनीतिक स्वार्थ के कारण बिजली-पानी मुफ्त देने की घोषणा के बाद, भूमिगत पानी को व्यर्थ गंवाये जाने की मात्रा और वृत्ति निरन्तर बढ़ती गई है। आज स्थिति यह है कि पंजाब में धरती के नीचे वाला पानी ़खतरनाक हद तक सीमित हो गया है। एक वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार प्रदेश के 158 में से 117 ब्लाक डार्क ज़ोन में चले गये हैं, और कि प्रत्येक वर्ष 0.49 मीटर की दर से भूमिगत पानी और नीचे चला जा रहा है। धान की अग्रिम और सीधी बुआई के मुद्दे को लेकर स्थितियों के और गम्भीर होते जाने का ़खतरा भी ध्यान खींचता है।
हम समझते हैं कि प्रदेश की इस दुर्दशा के लिए राजनीतिक स्वार्थ-परक मसलहतें ज्यादा उत्तरदायी हैं। सरकारों ने प्रदेश की कृषि को द्विपक्षीय फसली चक्र से निकालने अथवा किसानों को धान की बुआई के समय, भूमिगत पानी के कम इस्तेमाल हेतु प्रेरित करने के लिए अधिक काम कभी नहीं किया, इसमें कोई दो राय नहीं। इसके विपरीत वोटों की राजनीति के कारण सरकारें किसानों के हठ और उनकी उचित-अनुचित मांगों के समक्ष झुक जाती रही हैं। खरीफ के वर्तमान मौसम में सरकार द्वारा धान की सीधी बुआई हेतु किसानों को सहमत न कर पाना इसका एक बड़ा उदाहरण है। हम समझते हैं कि बेशक बेर बहुत बुरी तरह से बिखर गए हैं किन्तु पंजाब के व्यापक हितों के लिए सरकारें और कृषि विशेषज्ञ अभी भी बहुत कुछ अच्छा कर पाने में सक्षम हैं। किसान समुदाय को भी इस मुद्दे पर सामूहिकता के दृष्टिकोण के साथ विचार करना चाहिए। पंजाब की भूमि यदि रेगिस्तान के ़खतरे की ओर बढ़ती है, तो आग और तपिश का थोड़ा सेंक किसानों के अपने घर और खेत तक भी पहुंच सकता है। सरकारों और कृषि विशेषज्ञों को प्रदेश की कृषि को द्वि-फसली चक्र से निकालने और सिंचाई के नये स्रोत एवं साधन तलाश करने हेतु उपाय तेज़ करने होंगे। किसानों को सिंचाई कार्यों के दौरान पानी का यथा-शक्ति सीमित उपयोग करने पर भी ध्यान देना होगा और सिंचाई कार्यों के लिए ट्यूबवैलों पर निर्भरता जैसे भी हो, कम करनी होगी। तभी हम अपनी भावी संतानों के लिए पंजाब को खुशहाल और हरियावल रूप में सौंपने की गारण्टी दे सकेंगे।

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