ऑपरेशन सिंदूर : नुकसान की स्वीकृति भारत के बुलंद हौसले का प्रतीक

सिंगापुर में शंगरी-ला डायलॉग सिक्योरिटी फोरम की साईडलाइंस पर चीफ ऑ़फ डिफैंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने न्यूज़ एजेंसीज रायटर्स व ब्लूमबर्ग को दिये गये एक साक्षातकार में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हुए संग्राम (कॉम्बैट ऑपरेशंस) पर नई रोशनी डाली, जो टकराव के दौरान भारतीय सशस्त्र बलों की मीडिया ब्रीफिंग से काफी अलग हटकर है। सबसे पहले तो जनरल चौहान ने हवा में शुरुआती नुकसान पर टिप्पणी की, लेकिन यह नहीं बताया कि कितने एयरक्राफ्ट का नुकसान हुआ। यह पहली आधिकारिक स्वीकृति है कि कॉम्बैट ऑपरेशंस में फाइटर जेट्स गिराये गये। भारत व पाकिस्तान द्वारा एक-दूसरे पर सैन्य स्ट्राइक न करने पर सहमति बनने के ठीक तीन सप्ताह बाद यह बात सामने आयी है। ज्ञात रहे कि टकराव के दौरान या उसके बाद कभी भी भारतीय वायु सेना (आईएएफ) ने कोई एयरक्राफ्ट खोने से इंकार नहीं किया था। 
बहरहाल, सीडीएस के इस बयान पर अच्छा-खासा विवाद खड़ा हो गया है। एक पक्ष का कहना है कि उन्हें इस प्रकार का बयान नहीं देना चाहिए था। दूसरे पक्ष का कहना है कि सेना को सच ही बोलना चाहिए, झूठ से काम लेने की ज़रूरत नहीं है। विवाद इस बात को लेकर भी है कि सीडीएस ने विदेशी मीडिया में ही यह बयान क्यों दिया? इसका एक कारण यह प्रतीत होता है कि शुरुआती नुकसान की खबरें विदेशी मीडिया में ही अधिक चल रही थीं, इसलिए उसे ही सही जवाब देना आवश्यक था। सीडीएस के अनुसार, टकराव के पहले दिन हवा में शुरुआती नुकसान के बाद भारत ने अपनी रणनीति बदली और तीन दिन बाद सीज़फायर की घोषणा से पहले पाकिस्तान पर निर्णायक बढ़त हासिल की। उन्होंने कहा, ‘महत्वपूर्ण यह है कि यह नुकसान क्यों हुआ और उसके बाद हमने क्या किया ...हमने अपनी रणनीति में बदलाव किया और फिर 7, 8 व 10 मई को बड़ी संख्या के साथ पाकिस्तान के बहुत अंदर तक उसके हवाई अड्डा पर हमले करके उनके सभी एयर डिफेंस को भेदते हुए सटीक वार किये।’ 
युद्ध के दौरान सच इतना कीमती होता है कि उसके संग हमेशा झूठ के बॉडीगार्ड होने चाहिएं। ऐसा दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा था। टेनिस की तरह, जिसमें आप लगातार दो सेट हारने के बाद भी मैच जीत सकते हैं, युद्ध के भी अपने उतार-चढ़ाव होते हैं और यह अच्छी नीति है कि उतार से जनता के हौसले को प्रभावित न होने दें। अमरीका को मालूम था कि वह वियतनाम युद्ध हार रहा है, लेकिन उसने कभी स्वीकार नहीं किया, जब तक कि 1971 में पेंटागन पेपर्स लीक नहीं हो गये। अफगानिस्तान में 20 लम्बे वर्षों तक अमरीका कभी भी पूरी तरह से अपनी पकड़ नहीं बना सका, लेकिन वह यह दावा करता रहा कि सब कुछ उसके काबू में है। 
इसके विपरीत भारत ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अपने नुकसानों को लेकर आश्चर्यजनक रूप से स्पष्टवादी रहा है। सीज़फायर घोषित होने के अगले दिन यानी 11 मई 2025 को एयर ऑपरेशंस के निदेशक एयर मार्शल एके भारती ने मीडिया ब्रीफिंग के दौरान एक प्रश्न का उत्तर देते हुए टकराव की स्थिति का हवाला देते हुए कहा कि वह इस बात पर टिप्पणी करना नहीं चाहेंगे कि भारत ने कोई एयरक्राफ्ट खोया या नहीं। उन्होंने कहा कि नुकसान किसी भी टकराव का हिस्सा होता है किन्तु भारतीय सेना ने अपने चुने हुए उद्देश्यों को हासिल कर लिया व उसके सभी आईएएफ चालक घर वापस आ गये हैं। एयर मार्शल भारती ने कहा कि पाकिस्तान एयरफोर्स ने अपने ‘कुछ’ एयरक्राफ्ट खोये और उसके एसेट्स व एयर बेसों को जवाबी भारतीय स्ट्राइक्स ने गहरा नुकसान पहुंचाया। दूसरी ओर भारतीय सी.डी.एस. जनरल अनिल चौहान ने रायटर्स को बताया कि 10 मई 2025 को भारतीय एयरफोर्स ने सभी प्रकार के विमान सभी हर प्रकार के असलाह के साथ उड़ाये और रावलपिंडी में नूर खान एयरबेस सहित पाकिस्तान के बहुत अंदर तक वार किया। सीडीएस ने एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह कही कि हालांकि पाकिस्तान व चीन के बहुत गहरे संबंध हैं, लेकिन ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि टकराव के दौरान बीजिंग उसकी कोई वास्तविक मदद कर रहा था। 
पाकिस्तान ने दावा किया है कि 7 मई, 2025 को, जिस रात ऑपरेशन सिंदूर लांच किया गया था, उसने पांच आईएएफ जेट्स मार गिराये थे। उस समय भारत ने न तो इस दावे की पुष्टि की थी और न ही खंडन किया था, लेकिन 10 मई, 2025 को सीज़फायर के अगले दिन, जैसा कि ऊपर बताया गया, एयर मार्शल एके भारती ने प्रेस को बताया, ‘हम टकराव की स्थिति में हैं और नुकसान टकराव का हिस्सा है।’ अब इसके तीन सप्ताह बाद सीडीएस ने रहस्य पर से तकरीबन पर्दा उठा दिया है- ‘मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि 7 मई 2025 को शुरुआती चरण में कुछ नुकसान हुआ था।’ लेकिन भारत ने छह एयरक्राफ्ट नहीं खोये, जैसा कि पाकिस्तान दावा कर रहा है।
यह स्वीकृति भारत के बुलंद हौसले को प्रदर्शित करती है। भारत को कुछ छुपाने की ज़रूरत नहीं है; क्योंकि उसने ऑपरेशन सिंदूर के सभी उद्देश्यों को हासिल कर लिया है। इसलिए सीडीएस के बयान की आलोचना करना ठीक नहीं है कि उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था। जहां तक पूर्ण खुलासे की बात है तो ऑपरेशन के पूरा होने तक उसके लिए प्रतीक्षा की जा सकती है। सीज़फायर के बाद ऑपरेशन को स्थगित किया गया है, समाप्त नहीं। इसके अतिरिक्त, जैसा कि सीडीएस ने कहा, संख्या से अधिक महत्व नुकसान के कारणों और चूक को सुधारने का, जोकि भारत ने किया। भारत की आधिकारिक प्रतिक्रिया शायद धीमी प्रतीत हो, लेकिन वह तथ्यों पर आधारित रही। विकल्प के खतरे- अपुष्ट दावे 8 मई, 2025 को ही सामने आ गये थे, जब टीवी चैनलों ने पत्रकारिता की सारी ज़िम्मेदारी ताक पर रखते हुए झूठ व फेक न्यूज़ फैलानी शुरू कर दी थी। कैमरा के सामने जो लोग थे उन्हें अपनी यह हरकत शायद देशभक्ति वाली लगी हो, लेकिन इससे सेना पर सिर्फ बोझ ही बढ़ा। इससे टीवी चैनलों पर से भी जनता का विश्वास उठ गया। सीडीएस ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ऑपरेशनल समय का 15 प्रतिशत तो फेक न्यूज़ व गलत सूचनाओं का खंडन करने में व्यतीत हुआ। गलत सूचनाओं ने दर्शकों में अतार्किक उम्मीदें जगाईं जिनका नतीजा यह हुआ कि विदेश सचिव विक्रम मिस्री ट्रोलिंग का शिकार हुए। ऑपरेशन सिंदूर ने इस तथ्य को भी स्पष्ट साबित कर दिया कि फेक न्यूज़ के बाघ पर सवारी करना हमेशा घातक होता है। अब ज़रुरत इस बात की है कि सरकार संसद का विशेष अधिवेशन बुलाये और ऑपरेशन सिंदूर से जिन उद्देश्यों की पूर्ति हुई है, उनके बारे में विस्तार से बताये और इन सवालों का भी जवाब दे कि पहलगाम में सुरक्षा चूक क्यों व कैसे हुई। उन आतंकियों का क्या हुआ जिन्होंने पहलगाम में वीभत्स संहार किया? सरकार ने इस विषय पर अभी तक कुछ नहीं कहा है। उसकी खामोशी सवाल खड़े कर रही है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

#ऑपरेशन सिंदूर : नुकसान की स्वीकृति भारत के बुलंद हौसले का प्रतीक