सफल प्रधानमंत्री थे डा. मनमोहन सिंह
डा.मनमोहन सिंह की सममुच ही प्रशंसा कर सकना, मेरी साहित्यिक सामर्थ्य के वश में नहीं है। शायद ही मेरे शब्द उनके जैसे असाधारण व्यक्ति की महानता के साथ इन्साफ कर सकें, जिनका जीवन शराफत, दयानतदारी, नम्रता तथा उदारता के एक उदाहरण की भांति है। भारत के आर्थिक सुधारों के रचयिता के रूप में जाने जाते मनमोहन सिंह का योगदान अमूल्य है, जिन्होंने देश की एशियाई आर्थिक ताकत के रूप में उभार के लिए दिशा निर्धारित की और लाखों भारतियों को घोर गरीबी से ऊपर उठाया, जो उनकी दूरअंदेशी तथा सूझबूझ का सदैव प्रमाण बना रहेगा। हमारे समय में परिवर्तनशील बदलावों के बीच भविष्य की विश्व व्यवस्था की रूप-रूखा को आकार देने में विश्व मंच पर उनके नेतृत्व की भूमिका राष्ट्र को हमेशा गर्व महसूस करवाती रहेगी। जिन लोगों ने उस महान व्यक्तित्व का ‘कमज़ोर’ कह कर उपहास किया, उन्हें सिर्फ भारत-अमरीका सिविल परमाणु समझौता करने के अवसर पर उनके दृढ़ संकल्प को याद कराने की ज़रूरत है जिस समझौते ने भारत के साथ परमाणु भेदभाव को खत्म करवाते हुए एक ज़िम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में देश की साख स्थापित की थी।
प्रधानमंत्री के रूप में उनकी शानदारी उपपब्धियों के रिकार्ड मनरेगा, शिक्षा का अधिकार (आरटीई), सूचना का अधिकार (आरटीआई) तथा किसानों की कज़र्ा माफी, आधार के साथ-साथ शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के लिए किए गए अब तक के सबसे बड़े बजट वितरण (अलाटमैंट) के संदर्भ का ज़िक्र किए बिना पूरा नहीं होगा। सहयोगियों तथा विरोधियों के गम्भीर उकसावे के सामने उनके सब्र तथा सहनशीलता ने सरकार की लम्बी आयु को सुरक्षित किया तथा देश के अभिलाशी विकास एजेंडे को लागू करने के लिए ज़रूरी राजनीतिक स्थिरता को सुनिश्चित किया। उन्होंने हमारे देश के स्वर्णिम भविष्य को देखा एवं लिखा तथा विकसित भारत के उस विचार को अपनाया, जिसका समय आ गया था।
मनमोहन सिंह को उनके कट्टर आलोचकों सहित अन्यों की ओर से भी हमेशा प्रशंसा मिली, जो विश्व की अग्रणी कतार के नेताओं के बीच उनके ऊंचे कद की पुष्टि करती है। यह सब उनकी सहज मानवता, निस्वार्थता, बेदाग व्यक्तिगत ईमानदारी तथा सब का कल्याण करने की असल चिन्ता करने की वजह से है। उनका व्यवहार सदा नम्रता तथा समस्याओं का समाधान निकालने वाला रहा है, वह राजनीति की कठोरता तथा इसके आस-पास खेली जाती सत्ता की अनेक खेलों से सदा ऊपर रहे। वह अनौपचारिक बातचीत के दौरान अक्सर सत्ता की अस्थिरता का ज़िक्र करते थे, शायद इसीलिए उन्होंने अपने उच्च पद के अधिकार को बड़ी सहजता से सम्भाला तथा निभाया।
अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान एक मुश्किल समय में जब मंत्रिमंडल के कुछ सहयोगियों ने उनका अनुचित उपहास उड़ाया तो उन्होंने कोई भी कड़ी कार्रवाई करने से इन्कार करते हुए कहा कि वह उन्हें हैडमास्टर की भांति अनुशासन में रखने की कोई इच्छा नहीं रखते। वह अपने मंत्रियों को बड़ी नर्मी से ऐसी दुर्लभ फटकार लगाते थे कि किसी को कोई तकलीफ न पहुंचे। उनकी विनम्रता को कमज़ोरी समझने वाले लोगों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि उनका जीवन तथा राजनीति उनकी रूहानियत का प्रतिबिम्ब थी और उनका लोगों का कल्याण करने में दृढ़ विश्वास था। राजनीति के खतरनाक रास्तों पर चलते हुए भी उन्होंने अपनी नैतिक स्पष्टता को कभी कम नहीं होने दिया। वह अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के दोष लगने से बहुत दुखी थे और इस कीचड़ में अपना नाम घसीटे जाने पर मानसिक रूप से पीड़ा में रहे थे।
धन्यवाद डाक्टर साहिब! सोनिया जी का भी धन्यवाद, जिन्होंने हमें एक बेमिसाल प्रधानमंत्री दिया, जिन्होंने स्वयं को अपने पद से भी ऊंचा कर लिया। अलविदा सर! विश्वास रखना कि इतिहास आपके प्रति बहुत दयालू है। ऐतिहासिक वृत्तांत के महान मार्ग पर आपका स्थान निश्चित है। आशंका करने वालों के लिए मैं अपने प्यारे ‘डाक्टर साहिब’ को प्रसिद्ध कवि मीर तकी मीर के हवाले से श्रद्धांजलि देता हूं—
‘मत सहल हमें जानो,
फिरता फलक बरसों,
तब ़खाक के पर्दे से,
इन्सान निकलता है।’
(हमें अनजाने में आम समझने की गलतकी न कर लेना, क्योंकि सालों तक आसमान भटकता रहता है तब धूल की चादर से (ऐसे) इन्सान पैदा होते हैं।)
-पूर्व केन्द्रीय कानून एवं न्याय मंत्री।



