यूनिवर्सिटी का मामला हल किया जाए
विगत लम्बी अवधि से पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ चर्चा का विषय बनी हुई है। इसके कई कारण रहे हैं। पहला, अक्तूबर 2024 में यूनिवर्सिटी प्रशासन ने सीनेट के चुनाव करवाने से हाथ पीछे खींच लिए। फिर विद्यार्थियों और यूनिवर्सिटी के प्रशासन के बीच नए दाखिल होने वाले विद्यार्थियों से जबरन हल्फनामा लेने को लेकर टकराव पैदा हुआ। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने विद्यार्थियों को यह कहा था कि वे यह हल्फनामा दें कि वे किसी भी मामले पर यूनिवर्सिटी में कोई भी रोष प्रदर्शन नहीं करेंगे और सैमीनार आदि करवाने के लिए भी यूनिवर्सिटी से आगामी रूप से स्वीकृति लेंगे। यूनिवर्सिटी की स्वीकृति के बिना वे कोई भी गतिविधि नहीं करेंगे। विद्यार्थी संगठनों द्वारा इसका तीव्र विरोध किया गया। इस दौरान पंजाबी सूबा की स्थापना वाले दिन एक नवम्बर को यह समाचार आया कि केन्द्र के शिक्षा विभाग द्वारा अधिसूचना जारी करके यूनिवर्सिटी के सीनेट और सिंडीकेट का पुनर्गठन कर दिया गया है। इस पुनर्गठन में सीनेट के सदस्यों की संख्या 90 से कम करके 30 कर दी गई और जो 15 सीनेट सदस्य यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएटों में चुने जाते थे, वह व्यवस्था समाप्त कर दी गई है। यूनिवर्सिटी की सिंडीकेट के सभी 15 सदस्य भी सीनेट में से चुनने के स्थान पर उप-कुलपति को ही नियुक्ति करने के अधिकार दे दिए गए। इससे विद्यार्थियों और यूनिवर्सिटी के प्रशासन के बीच मतभेद और भी तीव्र हो गए और विद्यार्थियों ने यूनिवर्सिटी में स्थायी रूप से धरना लगा दिया। इसके बाद केन्द्र द्वारा इस संबंध में दो और अधिसूचनाएं जारी की गईं। एक में सीनेट के पुनर्गठन के आदेश को वापस लेने की बात कही गई और दूसरे में पहले जारी किए गए आदेशों को बाद में लागू करने की बात कही गई। इससे यह मामला और भी जटिल हो गया।
यूनिवर्सिटी में पैदा हुई ऐसी स्थितियों के बाद केन्द्र के शिक्षा मंत्रालय को शायद अपनी ़गलती का एहसास हुआ। पहले तो विद्यार्थियों से जबरन हल़्फनामा लेने के आदेशों को वापिस लिया गया और बाद में सीनेट और सिंडीकेट के पुनर्गठन की नई व्यवस्था को भी वापिस ले लिया गया। नि:संदेह केन्द्र सरकार द्वारा उपरोक्त कदम उठा कर टकराव को कम करने का यत्न किया गया और इन्हें सही दिशा में लिए गए फैसले कहा जा सकता है, परन्तु यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियों का धरना अभी भी जारी है। वे चाहते हैं कि यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा स्पष्ट रूप से पहले वाली व्यवस्था के अनुसार सीनेट और सिंडीकेट के चुनाव के लिए तिथियों की घोषणा की जाए और यूनिवर्सिटी में चल रहे आन्दोलन के दौरान विद्यार्थियों पर जो मामले यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा दर्ज करवाए गए हैं, वे वापिस लिए जाएं। नि:संदेह विद्यार्थियों की ये मांगें गलत नहीं हैं। केन्द्र सरकार को ये मांगें मान कर यूनिवर्सिटी में चल रहे विद्यार्थी धरने को खत्म करवाने के लिए आगे और पहलकदमी करनी चाहिए।
इसके साथ ही केन्द्र सरकार को यह भी समझना चाहिए कि पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से पंजाब के लोग भावुक रूप से जुड़े हुए हैं। 1882 में लाहौर में इसकी स्थापना से लेकर 1947 में देश के विभाजन के बाद इसकी चंडीगढ़ में पुन: स्थापना तक, प्रत्येक चरण पर पंजाबियों ने इस प्रक्रिया में बड़ा योगदान डाला है। एक तरह से यह यूनिवर्सिटी पंजाब की पहचान के साथ जुड़ी हुई है। इसका अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि ‘पंजाब यूनिवर्सिटी पंजाब बचाओ मोर्चे’ की ओर से जब 10 नवम्बर को पंजाब के लोगों को यूनिवर्सिटी प्रशासन की नीतियों के विरुद्ध रोष प्रकट करने के लिए चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में आने का आह्वान किया गया तो चंडीगढ़ केन्द्र शासित क्षेत्र की पुलिस, पंजाब पुलिस और हरियाणा पुलिस द्वारा लगाए गए अवरोधों के बावजूद भारी संख्या में प्रत्येक वर्ग के लोग यूनिवर्सिटी पहुंचे और उन्होंने आन्दोलनकारी विद्यार्थियों के साथ अपनी एकजुटता को ज़ाहिर किया। यूनिवर्सिटी प्रशासन और पुलिस बलों की भड़काऊ गतिविधियों के बावजूद यूनिवर्सिटी में यह रोष रैली काफी सीमा तक शांतिपूर्ण रही। कोई भी असुखद घटना नहीं घटित हुई।
अब यूनिवर्सिटी में चल रहे विद्यार्थी धरने के संदर्भ में करने वाली बात यह है कि केन्द्र सरकार, विशेष रूप से यूनिवर्सिटी की उप-कुलपति श्रीमती रेणू विज को पहलकदमी करते हुए विद्यार्थियों के धरने को खत्म करवाना चाहिए। यह अच्छी बात है कि उप-कुलपति ने विद्यार्थियों के साथ इस संबंध में पहले दौर की बातचीत की है। दोनों पक्षों ने अपना-अपना पक्ष रखा है। हमारा विचार है कि शीघ्र ही विद्यार्थियों और यूनिवर्सिटी प्रशासन के मध्य इस मुद्दे को लेकर आगामी दौर की बातचीत होनी चाहिए और शेष मामलों को सद्भावना-पूर्वक निपटा लिया जाना चाहिए, ताकि यूनिवर्सिटी में अकादमिक माहौल फिर से बहाल हो सके और विद्यार्थी भी अपनी पढ़ाई की ओर पूरा-पूरा ध्यान दे सकें।

