किसानों की यूरिया की ज़रूरत को पूरा किया जाए

अक्तूबर में, विशेषकर हल्की ज़मीनों में बोए गए गेहूं को यह पहला पानी देने का समय है। किसानों को इसके लिए यूरिया की ज़रूरत है। उन्हें डर है कि डीएपी की तरह उन्हें यह खाद मिलने में भी परेशान न होना पड़े। चाहे कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक डॉ. जसवंत सिंह ने कहा है कि किसानों के लिए यूरिया की कोई कमी नहीं है और न ही भविष्य में होने दी जाएगी। पंजाब में लगभग 35 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बोए गए गेहूं को 15.5 लाख टन यूरिया की आवश्यकता है। केंद्र ने पंजाब को आश्वासन दिया है कि पंजाब के किसानों को इतनी (आवश्यक) मात्रा में ही यूरिया उपलब्ध कराया जाएगा। दूसरी ओर कुछ डीलरों का कहना है कि उनके पास किसानों को देने के लिए यूरिया नहीं है। राज्य में 60 प्रतिशत यूरिया सहकारी समितियों के माध्यम से तथा 40 प्रतिशत निजी डीलरों के ज़रिये उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराया जाता है। पंजाब एग्रो इनपुट्स डीलर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष धर्म बंसल का कहना कि यूरिया की वितरण प्रणाली में कुछ सुधार लाने की ज़रूरत है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना द्वारा गेहूं की फसल में 110 किलो प्रति एकड़ यूरिया डालने की सिफारिश की गई है, परन्तु किसान 180 किलो प्रति एकड़ तक भी यह खाद डाल रहे हैं। यूरिया पर भारी सब्सिडी होने के कारण यह खाद अन्य खादों की तुलना में सस्ती है और नतीजा भी बढ़िया देती है। इसलिए किसान इस खाद को प्राथमिकता देते हैं। नीम-लिप्त यूरिया का 45 किलो का थैला किसानों को 266 रुपये में उपलब्ध है। विगत 10 वर्षों में यूरिया की यह कीमत बदली नहीं गई जबकि अन्य सभी खादों की कीमतें बढ़ी हैं। भारत के लगभग सभी राज्यों की तुलना में प्रति एकड़ अधिक यूरिया पंजाब में डाला जा रहा है, विशेषकर गेहूं, धान आदि फसलों में। फसल घनत्व में वृद्धि के कारण यूरिया का उपयोग भी बढ़ा है। चाहे यूरिया के अत्यधिक उपयोग के कारण फसलें बीमारियों और हानिकारक कीड़े-मकौड़ों का शिकार हुई हैं, जिस कारण कीटनाशकों का इस्तेमाल बढ़ गया है। यूरिया की खपत को कम करने की ज़रूरत है। इससे भूमि की उर्वरता बढ़ेगी और सब्ज़ खाद से भूमि और उपज को बहुत लाभ पहुंचेगा। आज जब पंजाब की भूमि में जैविक शक्ति कम हो रही है, उसके दृष्टिगत यूरिया की खपत को कम करना और सब्ज़ खाद जैसी तकनीक को अपनाना आवश्यक है। सब्ज़ क्रांति के लिए पंजाब पावर आपूर्ति निगम को गेहूं की कटाई के बाद धान की बुवाई तक ट्यूबवेलों के लिए अतिरिक्त बिजली दिए जाने की ज़रूरत है। इसके साथ नहरबंदी की उचित योजना बनाई जाए।
इसमें कोई संदेह नहीं कि यूरिया की कीमत पर नियंत्रण होने और भारी सब्सिडी दिए जाने के कारण प्रत्येक वर्ष इसकी खपत बढ़ रही है। देश में इसकी कमी है। वर्ष 2024-25 के दौरान देशभर में 38.8 मिलियन टन यूरिया की बिक्री और खपत हुई थी जबकि 2013-14 में 30.6 मिलियन टन यूरिया का इस्तेमाल हुआ था। इस वर्ष इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। गेहूं रबी की मुख्य फसल है जिसे प्रत्येक छोटा-बड़ा किसान बोता है और हर किसान को यूरिया की ज़रूरत होती है, क्योंकि यूरिया में 46 प्रतिशत नाइट्रोजन होती है। फिर प्रत्येक वर्ष कुछ न कुछ क्षेत्र कृषि के अधीन और आ रहा है। सिंचाई का क्षेत्र भी बढ़ रहा है और किसान ऐसी किस्में और फसलें ज़्यादा लगाने लगे हैं, जिनमें नाइट्रोजन ज़्यादा उपयोग होता है। इसलिए यूरिया की खपत में लगातार वृद्धि होना आवश्यक है। आपूर्ति के पक्ष से देश में इफ्को, एनएफएल, कृबको, चम्बल, आरसीएफ  तथा अन्य निर्माताओं द्वारा स्थापित इकाइयों के माध्यम से लगभग 30-31 मिलियन टन यूरिया उपलब्ध किया जाता है, जो मांग से कम है। हालांकि 2019-20 में इन इकाइयों के माध्यम से 24.5 मिलियन टन यूरिया उपलब्ध किया जाता था, जो 2023-24 में बढ़ कर 31.4 मिलियन टन हो गया, परन्तु यह ज़रूरत से बहुत कम था।
कृषि के अलावा यूरिया का उपयोग अन्य कार्यों जैसे प्लाईवुड, पशु पालन, पशुओं का चारा बनाने और दूध में मिलावट के लिए भी किया जाता है। इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार ने इसे नीम-लिप्त कर दिया और इसकी खपत को कम करने के लिए एक थैले में 50 किलो की बजाय 45 किलो भरा जाने लगा। लेकिन इन सभी प्रयासों के बावजूद यूरिया की खपत कम नहीं हुई। इसकी खपत कम करने हेतु इसके वितरण के लिए प्वॉइंट ऑफ  सेल (पीओएस), आधार कार्ड और एक किसान के लिए थैलों की संख्या निर्धारित करने जैसे कदम भी उठाए गए, जो विफल रहे। बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों में यूरिया की तस्करी किए जाने की रिपोर्टें आ रही हैं। क्या कोई ऐसी कार्रवाई की गई है, जिससे इसकी दूसरे देशों को की जाती तस्करी रोकी जा सके?
इस समय किसान यूरिया लेने के लिए विभिन्न स्थानों के चक्कर लगा रहे हैं और परेशान हो रहे हैं, क्योंकि पहली सिंचाई का समय करीब है। पंजाब कृषि एवं किसान कल्याण विभाग को चाहिए कि वह उचित कार्रवाई करके प्रत्येक किसान को उसके खेत के पास ही यूरिया की उपलब्धता सुनिश्चित बनाए।

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