अब बादल भी हो रहे ज़हरीले
कीटनाशकों के अंधाधुध इस्तेमाल के दुष्प्रभाव से दुनिया भर के लोग परेशान हैं। हमारी धरती, वायु से लेकर खानपान की चीज़ों तक कीटनाशकों की मौजदूगी के प्रमाण पहले ही मिल चुके हैं। दुनिया में विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों ने कीटनाशकों को लेकर नई चिंता पैदा की है। इन अध्ययनों के नतीजे यकीनन डराने वाले हैं। हाल में इस अध्ययन की रिपोर्ट आई है जिससे पता चलता है कि कीटनाशक अब केवल खेतों या फसलों तक सीमित नहीं रहे। यह रासायनिक ज़हर अब बादलों में भी पहुंच चुका है, यानी जो बादल कभी जीवनदायी जल के रूप में अमृत बरसाते थे, अब वही प्रदूषित बूंदों के जरिए धरती पर ज़हर बरसा रहे हैं। भारत में भी बादलों में कीटनाशकों के मौजूद होने की पुष्टि हो चुकी है।
हाल में यह भयावह सच्चाई फ्रांस के क्लेरमोंट औवर्गे विश्वविद्यालय की टीम के अध्ययन में सामने आई है। इस टीम ने 2023-24 में फ्रांस और इटली के बादलों व बारिश के नमूनों का विश्लेषण किया तो परिणाम चौंकाने वाले आए। अध्ययन में पाया गया कि बारिश के पानी में 32 तरह के कीटनाशक पाए गए जिनमें से कई कीटनाशक यूरोप में एक दशक से प्रतिबंधित हैं। अध्ययन में पाया गया है कि एक तिहाई नमूनों में कीटनाशक की मात्रा पीने योग्य पानी की सीमा से अधिक थी। अध्ययन में लगाए गए अनुमान के मुताबिक केवल फ्रांस के ऊपर मंडराते बादलों में ही 6 से 139 टन कीटनाशक मौजूद हो सकते हैं यानी यह ज़हर हवा में घुल चुका है और बारिश के साथ खेतों, झीलों, तालाबों, जंगलों, यहां तक कि पहाड़ों तक पहुंच रहा है। यह वही स्थिति है जैसी कुछ दशक पहले माइक्रो प्लास्टिक के साथ देखी गई थी। माइक्रो प्लास्टिक पहले नदियों में, फिर मछलियों में पाया गया और अब हमारे शरीर में भी यह विद्यमान है।
भारत में यह पता लगाने के लिए अध्ययन हुए हैं कि भारत के बादलों में अमृत है या ज़हर? यह चिंताजनक है कि हमारे देश पर मंडराते बादलों में भी कीटनाशक पहुंच जाने की पुष्टि हो चुकी है। कोलकाता स्थित भारतीय विज्ञान एवं शिक्षा अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ताओं के मुताबिक पश्चिमी घाट और हिमालय क्षेत्र के बादलों में लगभग 12 प्रकार की विषैली धातुओं की मौजूदगी दर्ज की गई है। इनमें कैडमियम, क्रोमियम, तांबा और जस्ता जैसी धातुएं शामिल हैं। ये खतरनाक तत्व निचले इलाकों में फैले प्रदूषण से उड़ कर बादलों में घुल जाते हैं और फिर पृथ्वी के सबसे ऊंचे व संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्रों तक पहुंच जाते हैं। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत एक स्वायत्त शोध संस्था द्वारा किए गए अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया है कि पूर्वी हिमालय के बादलों में प्रदूषण की मात्रा पश्चिमी घाट की तुलना में लगभग डेढ़ गुना अधिक है। भारत विश्व के सबसे बड़े कीटनाशक उपभोक्ता देशों में से एक है। हर साल 60 हज़ार टन से अधिक कीटनाशक देश भर के खेतों में डाले जाते हैं। इनमें से बड़ी मात्रा में रासायनिक अवशेष मिट्टी, पानी और हवा में मिल जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ एओ) के आंकड़ों के अनुसार भारत में कीटनाशकों का उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2000 में देश में जहां 44,958 टन कीटनाशकों का प्रयोग होता था, वहीं 2020 तक यह मात्रा बढ़ कर 61,702 टन हो गई है। इन बीस सालों में भारत में कीटनाशक उपभोग में करीब 37.24 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। भारत में कीटनाशकों के उपयोग की रफ्तार विशेष रूप से 2000 से 2012 के बीच सबसे अधिक रही। इसके बाद 2017 तक कीटनाशकों क उपभोग स्थिर स्तर पर बना रहा और फिर इसमें थोड़ी गिरावट देखने को मिली। 2020 के आंकड़ों के अनुसार अमरीका सबसे बड़ा कीटनाशक उपभोक्ता है, जहां लगभग 4.1 लाख टन कीटनाशक उपयोग किए गए। इसके बाद ब्राज़ील (3.8 लाख टन) और चीन (2.7 लाख टन) का स्थान है। भारत भी दुनिया के सर्वाधिक कीटनाशक इस्तेमाल करने वाले देशों में शामिल है। (युवराज)

