चुनाव सुधारों को लेकर व्यापक परिप्रेक्ष्य की आवश्यकता

पिछले दिनों संसद के शुरू हुए शीतकालीन सत्र में दोनों सदनों लोकसभा एवं राज्यसभा में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर हंगामा हुआ। अब सत्ता पक्ष एवं विपक्ष में चुनाव सुधारों पर चर्चा के लिए सहमत हो गए हैं। विशेष गहन पुनरीक्षण एक प्रशासनिक विषय है, जिसे  निर्वाचन आयोग ने निर्धारित किया है। चुनाव प्रक्यि में किए जाने वाले बदलावों को ‘चुनाव सुधार’ कहते हैं। लोकतंत्र में चुनाव सुधार की दिशा में पहल यह रही है कि दागी विधायकों को अयोग्य ठहराया जाता है। 
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 के अनुसार कानूनन अपराधी ठहराए गए राजनीतिज्ञ चुनाव लड़ नहीं सकते, लेकिन जिन पर मुकद्दमा चल रहा है, वह कितना भी गंभीर हों, उनके चुनाव लड़ने पर कोई रोक नहीं है। 2002 में न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में चुनाव सुधार के लिए समिति गठित की गई थी  जिसका प्रतिवेदन था कि आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों या अदालत में मुकद्दमे का सामना कर रहे उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने व प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी। उच्चतम न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश श्रीमान दीपक मिश्रा ने इस विषय पर निर्णय दिया था कि न्यायालय संसद की भूमिका में नहीं हो सकती। संसद इस मामले में अनुच्छेद 102(1) के अनुसार कानून बना सकती हैं। राजनीति के अपराधीकरण के विरुद्ध चुनाव आयोग पिछले दो दशकों से संघर्ष कर रहा है और आयोग लगातार इस दिशा में सफलता हासिल कर रहा है। मतदाता सूचियों को मतदाता सम्पर्क के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है और गोपनीयता को लेकर चिंताएं पैदा हो गई हैं।
चुनाव आयोग का सुधार एवं मतदाता सहभागिता बढ़ाने के लिए एम-3 इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के संशोधित  संस्करण के रूप में रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन तैयार की गई है जिससे शिक्षा, रोज़गार या अन्य  कारणों से देश (राज्य) में रहने वाले व्यक्ति चुनाव में सहभागिता कर सकें। लोकतांत्रिक व्यवस्था में पारदर्शी, समानता, स्वतंत्रता और न्याय की भावना को मज़बूती से लागू करना तभी संभव है जब शासन में सुशासन के तत्व परिलक्षित होते हैं। लोकतंत्र को विचार या विचारों के पुंज के रूप में लागू करना होता है। अपने निजी हितों के लिए वर्तमान  विधियों को कमज़ोर करने और व्यवस्था को अपने अनुसार ढालने की बजाय सभी राजनीतिक दलों को अपने निजी हितों का परित्याग करके राष्ट्रीय एकता की भावना से सोच करके  बढ़ना होगा? इन्हीं प्रयासों से मज़बूत लोकतंत्र का निर्माण हो सकता है। निर्वाचन आयोग के अनुसार  तेजी से शहरीकरण, रोज़गार के लिए शहरों में पलायन, युवा नागरिकों (जिनकी आयु 18 वर्ष हो चुकी है) का मतदान के योग्य होना एवं अवैध विदेशी नागरिकों के नाम मतदाता सूची में सम्मिलित होना, ऐसे बहुत से कारण है, जिसके चलते मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण आवश्यक है। इस प्रक्रिया के दौरान निर्वाचन आयोग यह  सुनिश्चित करता है कि किसी गैर-नागरिक का नाम मतदाता सूची में सम्मिलित न हो सके। लोकतंत्र के मौलिक आदर्श ‘एक व्यक्ति-एक मत’ की सार्थकता को विशेष सदन पुनरीक्षण पूरा कर सकता है।
चुनाव सुधारों में अपराधीकरण को रोका जाना चाहिए।  राजनीतिक दलों को विभिन्न समितियों के संस्तुतियों के आधार पर  अद्यतन करना किया जाना चाहिए। मतदाता जागरूकता को देशव्यापी स्तर पर प्रचारित करना भी अहम कार्य माना जाए। चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी, निष्पक्ष एवं दबाव विहीन बनाने के लिए प्रयास करने आवश्यक हैं। (अदिति)

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