प्रदेश कांग्रेस में घमासान
विगत लम्बे समय से पंजाब में कांग्रेस द्वारा की जा रही हर तरह की गतिविधियों से गायब रहने के बाद अब नवजोत सिंह सिद्धू और उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू के पार्टी में दोबारा से सक्रिय होने से राजनीतिक क्षेत्र में कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं। विगत दिवस मैडम नवजोत कौर द्वारा दिए एक बयान ने जहां प्रदेश में कांग्रेसी कतारों में एक बड़ी हलचल पैदा कर दी है, वहीं विपक्षी पार्टी के नेताओं को भी प्रदेश कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलने का मौका मिल गया है, जिससे कांग्रेस एक बार फिर बचाव की स्थिति में आ गई लगती है। नवम्बर माह में हुए तरनतारन उप-चुनाव में कांग्रेस ‘आप’ के मुकाबले में बड़े पक्ष के तौर पर उभरी थी परन्तु तब चुनाव प्रचार के समय में ही यह विवादों में घिर गई थी।
कांग्रेसी नेताओं के तरह-तरह के बयानों ने विपक्षी पार्टियों को उसके खिलाफ बयानों के तीर चलाने का मौका दे दिया था। कांग्रेसी उम्मीदवार अपनी ज़मानत भी नहीं बचा सके थे। इससे पहले राष्ट्रीय स्तर पर बिहार में हुई पार्टी की नामोशीजनक हार के साथ पार्टी के हौसले पहले से ही पस्त हो गये थे। उससे पहले हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी उस समय इसको बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा था, जबकि वहां से इसके सरकार बनाने के मौके साफ दिखाई देते थे। उस समय भी हरियाणा के कांग्रेसी नेताओं की आपस में खींचतान और एकजुट होकर न चलने के कारण वहां तीसरी बार भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिल गया था। पिछले कुछ वर्षों में पंजाब की प्रदेश इकाई सक्रिय हो रही थी और वह यह प्रभाव भी दे रही थी कि ‘आप’ सरकार की कारगुज़ारी को देखते हुए वह प्रदेश की राजनीति में दोबारा पहले नम्बर पर उभर कर आएगी।
आम आदमी पार्टी की सरकार से पहले कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की अध्यक्षता वाली सरकार थी, जो अपने अंतिम समय में बड़े विवादों में घिर गई थी। उस समय नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस का प्रधान बनाने का ऐलान कर दिया गया था और बाद में कुछ माह के लिए चरनजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बने थे। समूचे रूप में कांग्रेस सरकार की निराशाजनक कारगुजारी के कारण आम आदमी पार्टी को चुनावों के दौरान पूरा समर्थन मिला था और बड़ी संख्या में इसके विधायक जीत गये थे और आम आदमी पार्टी सरकार बनाने में कामयाब हो गई थी। जहां तक पंजाब के राजनीतिक दृश्य का संबंध है, दावे तो चाहे सभी ही पार्टियां कर रही हैं परन्तु अब तक यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं हुआ कि अगले चुनावों के लिए कौन सी पार्टी लोगों का समर्थन हासिल करने में सफल हो सकेगी? अकाली दल भीतरी उलझनों में फंसा हुआ है तथा अलग-अलग गुटों में भी बंटा हुआ है। भारतीय जनता पार्टी प्रदेश की राजनीति में प्रभाव बनाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही है, परन्तु अभी तक भी पंजाब में इसकी सीमाएं साफ दिखाई देती हैं। आम आदमी पार्टी के मुकाबले में कांग्रेस के दूसरी पार्टी के रूप में उभरने की संभावना अवश्य बन रही थी, परन्तु पार्टी के नेताओं में एकजुटता बनी नज़र नहीं आती, जिस कारण अब तक भी यह अपना मज़बूत आधार बनाने से असमर्थ होती जा रही है।
अब जबकि ज़िला परिषद् तथा पंचायत समिति चुनाव होने जा रहे हैं, उस समय भी यह पार्टी अपनी एकजुटता दिखाने से असमर्थ रही है। पिछले दिनों पार्टी में पुन: सक्रिय होने की इच्छा से जो बयान नवजोत कौर सिद्धू ने अपनी पार्टी के बारे में दिया है, उसने पंजाब की राजनीति में एक तरह से भूकम्प ला दिया है। डा. सिद्धू ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए यह कहा था कि कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने के लिए 500 करोड़ रुपये देने पड़ते हैं, जबकि उनके पास किसी को देने के लिए इतने पैसे नहीं हैं। उनके पति नतीजे तो अवश्य दे सकते हैं, परन्तु पैसे नहीं दे सकते। डा. सिद्धू ने यह भी कहा कि नवजोत सिंह सिद्धू तभी राजनीति में वापस आएंगे, यदि उन्हें किसी पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस समय कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के लिए 5 दावेदार हैं और पार्टी के भीतर खींचतान नज़र आ रही है। यह भी कि उनके साथ किसी ने पैसे की बात नहीं की, परन्तु मुख्यमंत्री वही बनता है, जो 500 करोड़ का अटैची देता है। मैडम नवजोत कौर के इस बयान ने एक बार तो कांग्रेसियों को दीवार के साथ ला खड़ा किया है। उन्होंने यहीं बस नहीं की, अपितु पार्टी अध्यक्ष राजा वड़िंग तथा वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुखजिन्दर सिंह रंधावा पर भी अनेक तरह के आरोप लगाए हैं तथा यहां तक भी कहा है कि राजस्थान के पार्टी प्रभारी होते समय स. रंधावा ने वहां चुनावों में उम्मीदवार को टिकट बेचे थे।
इस बयानबाज़ी के बाद तुरंत कार्रवाई करते हुए नवजोत कौर को पार्टी से निलम्बित करने की घोषणा कर दी गई है। इसके बाद भी उनकी पार्टी के विरुद्ध बयानबाज़ी लगातार जारी है, जिससे समूची पार्टी ही दूसरी पार्टियों के निशाने पर आ गई है। आगामी समय में इस स्थिति को पार्टी किस तरह संभालने में समर्थ होगी, अब यह देखा जाना तो बनता है। इस तरह की स्थिति में हरियाणा का उदाहरण उनकी चिन्ता में वृद्धि कर सकता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

