पंजाब में कम हो रही है सिख भाईचारे की आबादी 

िखरद-मंदों से क्या पूछूं कि मेरी इब्तिदा क्या है,
कि मैं इस फिक्र में रहता हूं मेरी इंतहा क्या है।
शायर-ए-मशरिक डा. अलामा इकबाल का यह शे’अर कि बुद्धिजीवियों को क्या पूछूं कि मेरी शुरुआत क्या है, मुझे तो यह चिन्ता खाए जा रही है कि मेरा अंत क्या होगा? बिल्कुल इसी तरह बदलते हालात में प्रत्येक सूझ-बूझ वाला सिख को इस चिन्ता में डाल रहे हैं कि सिख कौम का भविष्य क्या होगा। कोई माने या न माने, परन्तु जो मुझे समझ आया है, उसका सच यही है कि मास्टर तारा सिंह तथा अन्य सिख रहबरों ने पंजाबी सूबा की मांग सिख बहुसंख्या वाला सूबा लेने के लिए ही उठाई थी। यह पहली बार था कि पंजाब का आर्य समाजी तथा जनसंघ नेतृत्व पंजाबी के अन्ध-वरोध में सिख नेताओं की यह चाल नहीं समझ सका तथा उनकी चाल में फंस कर उनकी मज़र्ी का सिख बहुसंख्या वाला पंजाब बनवाने में अप्रत्यक्ष रूप में सहायक सिद्ध हुआ। उनकी ओर से पंजाबी हिन्दुओं को अपनी मातृ भाषा हिन्दी लिखवाने की प्रचार मुहिम का भी नतीजा था कि हिन्दू बहुसंख्यक कई क्षेत्र हरियाणा तथा हिमाचल में चले गए। हालांकि उस समय के सरसंघ चालक (आर.एस.एस. प्रमुख) एम.एस. गोलवलकर ने पंजाब आकर कहा था कि पंजाबी, हर पंजाबी (हिन्दुओं सहित) की मातृ भाषा है। सरसंघ चालक 1961 की जनगणना से बिल्कुल पहले 1960 में जालन्धर आए थे। उल्लेखनीय है कि 1961 की जनगणना ही पंजाब के पुनर्गठन का आधार बनी थी, परन्तु आर्य समाज तथा जनसंघ के पंजाब नेतृत्व ने सरसंघ चालक की नेक सलाह पर क्रियान्वयन नहीं किया था।    
उल्लेखनीय है कि 1966 में पंजाबी सूबे बनने के बाद 1971 की पहली जनगणना में पंजाब में 60.58 प्रतिशत सिख, 37.13 प्रतिशत हिन्दू तथा मुस्लिम सिर्फ .87 प्रतिशत और ईसाई 1.2 प्रतिशत के लगभग थे। 
2001 की जनगणना में मामूली अंतर से सिख 59.9 प्रतिशत, हिन्दू 36.94 प्रतिशत हो गए, परन्तु 2011 की जनगणना में सिखों की संख्या दो प्रतिशत से भी अधिक कम हो गई। वह 57.69 प्रतिशत तथा हिन्दू लगभग दो प्रतिशत की वृद्धि से 38.49 प्रतिशत पर पहुंच गए। मुसलमान भी 1971 से अढ़ाई गुना बढ़ कर 1.93 प्रतिशत हो गए। 2011 के बाद 2021 की जनगणना अभी तक नहीं हुई और 2027 तक होती भी दिखाई नहीं दे रही, परन्तु जो आंकड़े धार्मिक आधार पर पंजाब की आबादी बारे अन्य विश्वसनीय स्रोतों से मिल रहे हैं, वे सिखों के लिए खतरे की किसी बड़ी घंटी से कम नहीं हैं। भारत सरकार के यूनाइटिड डिस्ट्रिकट इन्फार्मेशन सिस्टम फार एजूकेशन प्लस (यू.डी.आई.एस.ई.+) की 2024 की रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार सिख जल्द ही पंजाब में भी अल्पसंख्यक हो जाएंगे और विश्व में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं होगा, जहां सिख बहुसंख्या में होंगे। 
इस रिपोर्ट के अनुसार प्री-प्राइमरी से दूसरी कक्षा तक के 3 से 8 वर्ष के बच्चों में सिख बच्चों की संख्या अब सिर्फ 49 प्रतिशत रह गई है, जो 2011 में 57.69 प्रतिशत थी—अर्थात यह 8.68 प्रतिशत कम हुई है। दूसरी ओर पंजाब में इसी आयु के पढ़ते बच्चों में हिन्दू बच्चों की संख्या 38.48 से बढ़ कर अब 45.7 प्रतिशत पर पहुंच गई है। स्थिति बिल्कुल साफ है कि 2011 में सिख बच्चे हिन्दू बच्चों से लगभग 19 प्रतिशत अधिक थे, परन्तु अब सिर्फ सवा तीन प्रतिशत ही अधिक हैं। वैसे क्रियात्मक रूप में 2025 में तो सिख बच्चों की संख्या एक अल्पसंख्यक जैसी ही हो चुकी होगी। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पंजाब में इसी आयु के मुसलमान बच्चे जो 2011 में 1.93 प्रतिशत थे, अब बढ़ कर 3.4 प्रतिशत हो गए हैं। हालांकि पंजाब में ईसाई धर्म अपनाने का बहुत शोर है, परन्तु आश्चर्यजनक रूप में ईसाई बच्चों की संख्या में कई खास वृद्धि नहीं हुई। 
याद रखें, लोकतंत्र में सारी निर्भरता सिरों की संख्या या वोट की गिनती में होती है, परन्तु यह भी हैरानी की बात है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की 2019-21 की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब के सिखों की प्रजनन दर सिर्फ 1.6 है अर्थात एक महिला या एक दंपति अपने जीवन नें औसत 1.6 बच्चे पैदा कर रहा है, क्योंकि पंजाबी तथा सिख इस समय एक या बड़ी हद तक दो बच्चे होने को ही प्राथमिकता दे रहे हैं जबकि वास्तविकता यह है कि यदि आबादी की मौजूदा संख्या ही बहाल रखनी हो तो 2.1 बच्चा प्रति दंपति की दर होनी चाहिए। चाहे हम सिखों की संख्या कम होने का कारणों में प्रवास को बहुत दोष दे रहे हैं, परन्तु वास्तविकता यह है कि इस समय अकेले सिख ही पश्चिम की ओर प्रवास नहीं कर रहे, अपितु हिन्दू  बच्चे भी समान रूप में जा रहे हैं। वास्तव में पंजाब की स्थिति अलग है। यहां पूर्वी राज्यों के प्रवासी भारी संख्या में आ रहे हैं और उनकी प्रजनन दर भी हम से कहीं अधिक है। यह एक बड़ा कारण है कि सिख लगातार कम होते जा रहे हैं। फिर हमारे सामने है कि परिवार नियोजन को तीव्रता से अपनाने वाले राज्य चाहे वह पंजाब है या दक्षिण राज्य हैं, को एक और बड़ा नुकसान हो रहा है। वह नुकसान यह है कि अब जब आबादी के आधार पर लोकसभा के सदस्यों की संख्या बढ़ाई जानी है तो यह संख्या उत्तर भारत के उन राज्यों को इस बात का ईनाम सिद्ध होगी, कि उन्होंने परिवार नियोजन की राष्ट्रीय नीति को नहीं माना। यदि लोकसभा सदस्यों की संख्या इसी आधार पर बढ़ गई तो गिनती के उत्तर भारतीय हिन्दी भाषी क्षेत्र भी भारत पर शासन करने में सामर्थ्य हो जाएंगे और जो पार्टी हिन्दी क्षेत्र में प्रभावी होगी, वह स्थायी रूप में शासन करेगी। अत: यदि हम चाहते हैं कि हमारी भारतीय लोकतंत्र में पोज़ीशन बहाल रहे तो हमें निश्चित रूप में 1 या 2 बच्चे की नीति छोड़ कर 2 या 3 बच्चों की नीति अपनानी होगी। उल्लेखनीय है कि श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह, जब वह जत्थेदार थे, ने दिवाली तथा बंदी छोड़ दिवस के अवसर पर अपने संदेश में कौम को इस स्थिति से सचेत भी किया था। अत: जो सिख परिवार ठीक-ठाक रोज़ी-रोटी कमा रहे हैं, वे 2 तथा जो घर अच्छी आर्थिक स्थिति में हैं, उन्हें 3 बच्चों की नीति की ओर जाना चाहिए। हमारे रहनुमाओं को स्थिति से सचेत होना ही पड़ेगा। अलामा इकबाल का ही शे’अर वतन की जगह कौम शब्द इस्तेमाल करके सिख कौम को समर्पित किए बिना नहीं रह सकता :
तू ़िफक्र-ए-कौम कर नादां मुसीबत आने वाली है,
तेरी बर्बादियों के मशविरे हैं आसमानों में। 
मुख्यमंत्री का निवेश दौरा
इतना सच बोल के होटों का तबस्सुम ना बुझे,
रौशनी खत्म ना कर आगे अंधेरा होगा।
(निदा ़फाज़ली)
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने 10 दिवसीय निवेश दौरा करके एक नया रिकार्ड बना दिया है। यह पंजाब के किसी मुख्यमंत्री का सबसे लम्बा निवेश दौरा है। वह जापान में टोक्यो एवं ओसाका तथा दक्षिण कोरिया में सियोल गए। शानदार स्वागत हुआ, रोड शो हुए। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस बार भगवंत मान तथा उनके उद्योग मंत्री संजीव अरोड़ा ने निवेश के लिए सबसे बढ़िया देश चुने हैं जहां पैसा ही पैसा तथा उद्योग ही उद्योग हैं। अमरीका जैसे देश में भी जापान का निवेश सबसे अधिक है। जापान का अमरीका में 1.06 ट्रिलियन डॉलर का निवेश है। मुख्यमंत्री ने जापान बैंक फार इंटरनैशनल कोआप्रेशन एजेंसी, हांडा, याम्हा, फ्जीत्सु, टोपन तथा ऐची जैसी कम्पनियों तथा दक्षिण कोरिया में डाइव्यू तथा नौगशिप जैसी कम्पनियों से बातचीत की है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि टोपन द्वारा 300 करोड़ तथा ऐची स्टील द्वारा 500 करोड़ रुपये के निवेश की सम्भावना है, परन्तु साफ है कि अभी किसी कम्पनी से कोई समझौता लिखित रूप में नहीं हुआ। हम समझते हैं कि यह शुरुआत है। यदि इसके लिए प्रयास जारी रखे जाएं और ईमानदारी से नीतियां बनाई जाएं तो जापान से बड़ा निवेश लाना सम्भव है, परन्तु यह वक्त ही बताएगा कि क्रियात्मक रूप में क्या होता है।
सिद्धू दंपति का राजनीतिक भविष्य 
ना-समझ कतरा-ए-नाचीज़ की वुकत को समझ,
तू समुंदर है बनाया है समुंदर किस ने?
(़खुमार खांडवी)
पंजाब कांग्रेस में डा. नवजोत कौर सिद्धू के 500 करोड़ के अटैची के बयान ने भूकम्प ला दिया है। हमारी समझ के अनुसार चाहे इसने फिलहाल कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया है, परन्तु इस स्थिति ने कांग्रेस हाईकमान को एक अवसर भी दिया है कि पंजाब कांग्रेस के विफल नेतृत्व को एक तरफ करके नया तथा जोश भरपूर नेतृत्व आगे लाए। इस स्थिति ने पंजाब के बड़े 6-7 नेताओं को कटघरे में खड़ा कर दिया है। जानकार सूत्रों के अनुसार राहुल तथा प्रियंका गांधी इसके लिए सिद्धू दंपति से नाराज़ हैं और मिलने का समय भी नहीं दे रहे। उन्होंने मामले की जांच के लिए एक समिति भी बनाई है, परन्तु यदि राहुल गांधी सचमुच न्याय करना चाहते हैं तो यह समिति पंजाब कांग्रेस के प्रभारी के अधीन नहीं, अपितु उनसे बड़े नेताओं की बनानी चाहिए थी, जिनकी पंजाब के किसी भी नेता से अधिक निकटता न हो। ़खैर, इस समय जहां आरोपों की नोक पर आए पंजाब कांग्रेस के नेताओं का भविष्य डावांडोल हो रहा है, वहीं सिद्धू दंपति का राजनीतिक भविष्य भी खतरे में पड़ गया है। इस समय उनके पास 5 रास्ते हैं। पहला हाईकमान से समझौता, जो इस बार काफी कठिन प्रतीत हो रहा है, परन्तु राजनीति में असंभव कुछ भी नहीं। दूसरा, भाजपा में वापसी, जिसके लिए भाजपा नेता संकेत भी देते दिखाई देते हैं। तीसरा, ‘आप’ में जाना, परन्तु वहां जाकर सिद्धू करेंगे क्या। वहां न तो सिद्धू की चलनी है और न ही भगवंत मान उनके लिए कुर्सी खाली करेंगे। चौथा, सिद्धू कोई नई पार्टी बनाएं। वैसे सिद्धू के लिए यही सबसे बढ़िया रास्ता है। लोग अभी भी विकल्प की तलाश में हैं, परन्तु क्या सिद्धू नई पार्टी बनाने में समर्थ हैं तो इसमें उनका  पार्ट टाईम नेता होना तथा उनकी अपने दोस्तों से तर्क-ए-ताअलुक की आदत यहां तक कि फोन तक न उठाना आदि इस बात के राह की सबसे बड़ी बाधा हो सकती है और आखिरी रास्ता यह कि वह राजनीति को अलविदा कह कर स्थायी तौर पर शो बिज़नेस में व्यस्त रहने के लिए तैयार हो जाएं।

-मो. 92168-60000

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