अपने लक्ष्य की ओर तेज़ी से बढ़ रहा भारत 

नाभिकीय ऊर्जा मिशन 

विकसित भारत को साकार करने के लिए बड़े पैमाने पर नाभिकीय ऊर्जा का तेज़ी से इस्तेमाल ज़रूरी हो गया है। स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच के अलावा नाभिकीय ऊर्जा लंबे समय तक चलने वाली ऊर्जा और जलवायु  सुरक्षा का भी वायदा करती है। परमाणु ऊर्जा विभाग की लगातार कोशिशों की वजह से भारत एक आत्मनिर्भर व ज़िम्मेदार देश के तौर पर उभरा है, जिसके पास आधुनिक नाभिकीय प्रौद्योगिकी है। देश अब नाभिकीय ऊर्जा मिशन के साल 2047 तक 100 गीगा वाट बिजली बनाने की क्षमता तक पहुंचने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रौद्योगिकी के मामले में तैयार है। स्वच्छ ऊर्जा हासिल करने और जलवायु खतरे से निपटने के अलावा नाभिकीय ऊर्जा मिशन में अर्थव्यवस्था को काफी प्रोत्साहन देने की क्षमता है। इससे सभी सभी स्तर पर नौकरियां पैदा होंगी। 
आगे क्या चुनौतियां हैं? उनमें से सबसे ज़रूरी है समय को लक्ष्य के हिसाब से बड़े पैमाने पर तेज़ी से परिनियोजन करना। सिर्फ दो दशकों में 90 गीगा वाट से ज़्यादा या लगभग 200 रिएक्टर जोड़े जाने हैं। स्पष्ट है कि एनपीसीआईएल (न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन आफ इंडिया), एनटीपीसी (नैशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन) और भाविनी (भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम लिमटेड) के अलावा कई एजेंसियों की ज़रूरत है, जो फ्लीट मोड में रिएक्टर प्लांट के मानक डिज़ाइन वाली परियोजना शुरू करें। 
पीएचडब्ल्यूआर (दबाव वाला भारी पानी रिएक्टर) प्रौद्योगिकी स्पष्ट रूप से एक सिद्ध और किफायर्ती स्वदेशी प्रौद्योगिकी है जो तेज़ी से आगे बढ़ने के लिए तैयार है। इसलिए एनपीसीआईएल को अपने प्रोग्राम को कार्यान्वित करते समय पीएचडब्ल्यूआर प्रौद्योगिकी में दूसरे प्राधिकरणों को रचनात्मक रूप से अपने से जोड़ते हुए उनका मार्गदर्शन करना चाहिए। 
निवेश का भी एक ज़रूरी मुद्दा है, जो अकेले नाभिकीय ऊर्जा उपयोगिता क्षेत्र के लिए 20 लाख करोड़ के ऑर्डर का होगा। इसके अलावा ईंधन चक्र अवसंरचना के लिए निवेश  होगा। इसलिए निजी क्षेत्र से वित्तपोषण बहुत ज़रूरी है जबकि नाभिकीय क्षेत्र का आर्थिक पक्ष अच्छा है, दूसरी स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी के बराबर नीति सहयोग अनिवार्य होगा।
निर्धारित क्षमता के लिए नाभिकीय ईंधन हासिल करना अगली बड़ी चुनौती है जबकि वैश्विक यूरेनियम स्रोत बहुत हैं, नाभिकीय ऊर्जा विस्तार के कारण यूरेनियम की बढ़ती मांग और यूरेनियम आपूर्ति पर रुकावटों से अंतरिम आपूर्ति में कमी और मूल्य में वृद्धि होगी। नाभिकीय बाज़ार से जुड़ी जटिल भू-राजनीति को देखते हुए यह एक बड़ी ईंधन आपूर्ति सुरक्षा चुनौती बन सकती है। इसलिए अपने बड़े थोरियम भंडारों के साथ भारत को जल्द से जल्द  ऊर्जा सुरक्षित बनना चाहिए। इसके लिए हमारे थोरियम आधारित नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम और उससे जुड़ी प्रौद्योगिकी के विकास में तेज़ी लाने की ज़रूरत है। थोरियम का इस्तेमाल और यूरेनियम से बहुत ज़्यादा ऊर्जा प्राप्त करना आज के समय की मुख्य ज़रूरत बन जाएगी।
इसमें नाभिकीय ऊर्जा का पुनर्प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण करना ज़रूरी होगा। इस तरह संवृत नाभिकीय ईंधन चक्र में हमारी योग्यता एक सुरक्षित और अनवरत ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने और भरोसेमंद दीर्घकालिक नाभिकीय अपशिष्ट प्रबंधन में काम आएगी। हालांकि यह एक संवेदनशील व नाभिकीय प्रौद्योगिकी है और इसका प्रबंधन और नियंत्रण सरकार के पास ही रहना चाहिए। 
मुझे लगता है कि दुनिया भर में नाभिकीय ऊर्जा को ज़्यादा बढ़ावा देने के कारण नाभिकीय पुनर्चक्रण पर ज़्यादा ज़ोर देने की ज़रूरत होगी। इस तरह ‘फ्रंट एंड’ की तुलना में ‘बैक एंड’ ईंधन चक्र, उतना ही बड़ा या उससे भी बड़ा उद्योग बन जाएगा। थोरियम, जो प्रसार प्रतिरोध उपलब्ध कराता है इस मामले में और भी ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है।
हमें यह मानना होगा कि हमारे पीएचडब्ल्यूआर सिस्टम सबसे ज़्यादा लचीले हैं और कई तरह के ईंधन च्रक को सरल बनाने के लिए सबसे सही हैं, खासकर थोरियम की ओर हमारे संक्रमण की योजना के मामले में। अब जब हम आयातित यूरेनियम का इस्तेमाल करके बड़ी पीएचडब्ल्यूआर क्षमता तैयार कर सकते हैं तो पीएचडब्ल्यूआज़र् ऐसा करने और थोरियम के इस्तेमाल की दिशा में हमारी तरक्की को तेज़ करने का एक आसान विकल्प देता है। इस मकसद के लिए ज़रूरी विकास का काम परमाणु ऊर्जा विभाग में अनुसंधान एवं विकास पर मुख्यत: केंद्रित होना चाहिए, भले ही सरकारी और निजी क्षेत्र में नाभिकीय स्थापनाएं स्तरीय और सही सिद्ध डिज़ाइन का इस्तेमाल करके तेज़ी से क्षमता बढ़ा रही हों। हम आशा कर सकते हैं कि पारित हुआ नाभिकीय विधेयक सभी हितधारकों की चिंताओं को दूर करेगा, जिसमें ऊपर बताए गए कुछ हितधारक भी शामिल हैं और नाभिकीय ऊर्जा मिशन को उम्मीद के मुताबिक लक्ष्य हासिल करने में मदद करेगा।

-पूर्व सचिव, परमाणु ऊर्जा विभाग एवं पूर्व अध्यक्ष, परमाणु ऊर्जा आयोग।

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