दक्षिण एशिया का समकालीन कला महोत्सव कोची-मजीरिस बिनाले
भारतीय कला जगत में हर दो सालों में दिसंबर के महीने में एक नाम सबसे ज्यादा चर्चा में रहता है, वह है है- कोची मजीरिस बिनाले। केरल के ऐतिहासिक बंदरगाह शहर कोची और प्राचीन व्यापारिक नगर मजीरिस की सांस्कृतिक स्मृति से प्रेरित यह आयोजन न केवल भारत बल्कि पूरे दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा समकालीन कला महोत्सव माना जाता है। साल 2012 में अपनी पहली पारी से शुरू होकर आज यह एक वैश्विक कला अभिव्यक्ति का केंद्र बन चुका है। यह हर दो साल बाद, कला, इतिहास, राजनीति, लोक-संस्कृति और भविष्य की रचनात्मक संभावनाओं पर विचार विमर्श एक बड़ा मंच तैयार करता है। इस साल यह बिनाले 12 दिसंबर 2025 से शुरू होकर 31 मार्च 2026 तक चलेगा। कुल 110 दिन की अवधि वाला यह कला बिनाले इसलिए भी जाना जाता है कि इसके प्रमुख आयोजन स्थल की भौगोलिक संरचना कुछ इस तरह है कि जब यह शुरू होता है, तो पूरा कोची शहर एक विशाल ओपन म्यूजियम में बदल जाता है।
स्थापना और पृष्ठभूमि
कोची मजीरिस बिनाले की स्थापना के.बी. जैसन और रियाज कोमू जो कि दोनों प्रमुख भारतीय कलाकार हैं, ने मिलकर साल 2010 में की थी और इसका पहला संस्करण 2012 में आयोजित हुआ। इस बिनाले के साथ मजीरिस नाम को जोड़ना महज भौगोलिक संदर्भ नहीं था बल्कि उन ऐतिहासिक, सांस्कृतिक आदान-प्रदान को सम्मान देना था, इसकी मिसाल प्राचीन मजीरिस बंदरगाह से मिलती है। जहां सदियों पहले रोमन, अरब, यहूदी और अन्य सभ्यताओं के व्यापारी आते थे। इसके इसी ऐतिहासिक संदर्भ को बिनाले ने समकालीन वैश्विक संवाद से जोड़ा और इसकी अनूठी पहचान बनी।
क्या होता है इस बिनाले में
दूसरी कला प्रदर्शनियों से अलग कोची बिनाले किसी एक रूप या माध्यम तक सीमित नहीं है। इसमें शामिल होते हैं पेंटिंग्स, इंस्टॉलेशन आर्ट, परफोर्मेंस आर्ट, डिजिटल और वीडियो आर्ट, साइट-स्पेसिफिक आर्ट वर्क, फोटोग्राफी, ध्वनि, कला, फैब्रिक, मूर्तिकला और इंट्रैक्टिव कला परियोजनाएं। फोर्ट कोच्चि, मट्टनचेरी, एर्नाकुलम के पुराने गोदामों, गैलरियों, औपनिवेशिक इमारतों और समुद्रतटीय स्थानों को अस्थाई कला-स्थलों में बदल दिया जाता है। इसकी यही विशेषता इसे दुनिया के सबसे अनूठे ओपन सिटी कला आयोजनों में तब्दील कर देती है। जहां शहर स्वयं एक विशाल कैनवास बन जाता है।
कोची बिनाले की सबसे प्रमुख बात
कोची बिनाले की सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि इसके पास अपनी एक लोकतांत्रिक कला दृष्टि है। जबकि दुनिया के कई बड़े बिनाले अत्यधिक औपचारिक और केवल अभिजात्य वर्गों तक सीमित हैं। दूसरी तरफ कोची बिनाले ने शुरुआत से ही इसके केंद्र में आम जनता को रखा है। स्कूलों, कॉलेजों, आर्ट स्टूडियो, मार्केट और पब्लिक स्पेस में कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिसका प्रवेश शुल्क बहुत ही कम रखा जाता है ताकि आम लोग आराम से इस कला आयोजन के हिस्सेदार बन सकें। यह आयोजन कला को एलीट चर्चा से निकालकर सार्वजनिक संवाद के दायरे में लाता है। यही इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।
भारतीय कला का वैश्विक प्रवेशद्वार
कोची बिनाले भारतीय कला जगत में इसलिए बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि इस बिनाले ने भारतीय कला को विश्व मानचित्र पर स्थापित किया है। अफ्रीका, यूरोप, एशिया और लैटिन अमरीका के प्रतिष्ठित कलाकार इसमें भाग लेने के लिए हर वर्ष आते हैं। इसलिए भारतीय कलाकारों को भी अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्किंग, अनुभव और नये विचारों से जुड़ने का मौका मिलता है। इस बिनाले में युवा कलाकार, विद्यार्थी और क्यूरेटरों को विशेष रूप से शामिल किया जाता है। इसमें स्टूडेंट बिनाले और बिनाले कॉलेज जैसी पहलें भी शामिल हैं, जो कलात्मक प्रशिक्षण और नेतृत्व निर्माण के नये अवसर देती हैं। केरल की लोक संस्कृति, समुद्री व्यापार के इतिहास, औपनिवेशिक स्मृति और मलाबार की सांस्कृतिक विविधता, कला के माध्यम से पुनर्गठित होती है। कई प्रोजेक्ट स्थानीय समुदायों को सीधे कला निर्माण में शामिल करते हैं जैसे- मछुआरों, कारीगरों, बुनकरों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के साथ यह बिनाले सहयोग करता है और उन्हें सीधे कला निर्माण से जोड़ता है।
पर्यटन और कला समाज
बिनाले के चलते कोची में तीन महीनों तक देश-विदेश के लाखों पर्यटक आते हैं। इससे होटल, होम स्टे, भोजनालय, टैक्सी, किताबें और हस्तशिल्प उद्योग पर सकारात्मक असर पड़ता है। बिनाले ने फोर्ट कोच्चि जैसी ऐतिहासिक इलाकों को पुनर्जीवित करने में भी इस बिनाले ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। यह बिनाले केवल सौंदर्य का उत्सव नहीं है। यह सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों पर भी महत्वपूर्ण संवाद करता है।
इस तरह ये कला आयोजन कला को केवल दृश्य वस्तु न मानकर रूप, विचार, प्रक्रिया और चेतना का माध्यम मानता है। 2025-26 के संस्करण से विशेष उम्मीदें हैं। यह संस्करण नई वैश्विक चुनौतियां जैसे पर्यावरणीय असंतुलन, एआई और रचनात्मकता का भविष्य, समुद्री जीवन का संकट और स्थानीय समुदायों की बदलती भूमिका जैसे विषयों पर केंद्रित रहने की संभावना है। दुनियाभर से आने वाले कलाकार भारत की सांस्कृतिक जटिलताओं और विविधताओं को एक तकनीकी और रचनात्मक रूपों के साथ प्रस्तुत करेंगे। कुल मिलाकर कोची-मजीरिस बिनाले समकालीन भारतीय कला के लिए केवल एक आयोजनभर नहीं है बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन है। यह दर्शाता है कि कला केवल दीर्घाओं में नहीं बल्कि हमारे शहरों, रेस्त्राओं, इतिहास और सामूहिक स्मृति में भी जीवित है। इसने भारत को कला में नई ऊर्जा, नवाचार और वैश्विक संवाद दिया है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर





