दो महाशक्तियों के संबंधों का उतार-चढ़ाव
एक पूरा साल गुजर गया, अमरीका और चीन के बीच टैरिफ को लेकर जबरदस्त खींचतान बनी रही। हालांकि भारत के साथ भी ट्रम्प ने टैरिफ बम को एकदम ओझल नहीं कर दिया। चीन के साथ खींचतान काफी लंबी चली। चीन ने इस बीच अमरीका द्वारा लगाए गये काफी कठोर टैरिफ का डट कर सामना किया। एक समय यह टैरिफ एक सौ चालीस प्रतिशत तक पहुंच गया था। सितम्बर में अमरीका ने दबाव और अधिक बढ़ाने की कोशिश में उन चीनी कम्पनियों की सूची का विस्तार कर दिया, जिनके लिए अमरीका में लाइसैंस लेना ज़रूरी था। चीन इसके सामने करारा जवाब देने को तैयार नज़र आया। यह एक्शन था- रेयर अर्थ्स को बने वैश्विक इस्तेमाल पर प्रतिबंध। जिसमें कि कारों के पुर्जे, इलेक्ट्रानिक्स मोबाइल और ऐसे अन्य उत्पाद शामिल हैं। तीस अक्तूबर को बुसान व्यापार समझौते के ज़रिये दोनों पक्षों को एक कदम पीछे हटाने पर विवश होना पड़ा। यदि हम पिछले कुछ समय पर गौर करें तो अमरीका-चीन संबंध बिल्कुल एक अलग स्तर को छूने लगे हैं। यह दोनों की ज़रूरतों और मांग का आधार हैं, जिसे अब प्रतिस्पर्धा और सहभागिता का एक नया मुकाम बताया जा रहा है। जिसे साधारण शब्दों में लेन-देन की मज़बूरी कहा जा सकता है।
ट्रम्प जिस टैरिफ के उतार-चढ़ाव का खेल खेलते रहे हैं, चीन ने उसका दृढ़ता से जवाब दिया है और असाधारण कामयाबी बटोरी है। उसने ट्रम्प के प्रलोभ न का एकदम से उत्तेजित होकर नहीं, अपितु साथ लेकिन मज़बूत रहकर एक ऐसी ट्रेड डील को अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश की, जिसमें उसे कामयाबी भी मिली, जो उसके देश के हितों को नुकसान न पहुंचाये।
परिणामस्वरूप इसी महीने जारी नई अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में चीन को आर्थिक प्रतिस्पर्धी लगभग समकक्ष शक्ति और ऐसा देश बताया गया है, जिसे अमरीका और उसके सहयोगियों के तकनीकी व आर्थिक इको-सिस्टम से बाहर रखने की रणनीति को ज़रूरी माना गया। चीन और अमरीका के रवैये के बीच बुनियादी फर्क यह रहा कि बीज़िंग ट्रम्प के पहले कार्यकाल से ही इस टकराव की तैयारी में था। हालांकि चीन की अपनी ज़रूरतें भी उसके सामने थीं। चीन अब भी उन्नत सेमीकंडक्टर्स, एयरोस्पेस उपकरण तथा तकनीक उच्चस्तरीय मशीनरी व प्रिसीजन इस्टू्रमेंटस तथा कुछ जैव-चिकित्सकीय और फार्मा उत्पादों के लिए रणनीतिक रूप से पश्चिम पर निर्भर है।
इलेक्ट्रानिक सामान तथा उसके घटक इलैक्ट्रिक वाहन और बैटरियों, दवाओं के कच्चे रसायन और सबसे महत्वपूर्ण रेयर अर्थ्स और मेग्नेट। एक बात बड़ी साफ है कि चीन ने अपने पत्ते बड़ी होशियारी से चले हैं। दरअसल पिछले दो दशकों से ईयू और अमरीका की उन वस्तुओं पर निर्भरता काफी ज्यादा हुई हैं, जिन्हें वे मुख्य रूप से चीन से मंगाते हैं, जबकि चीन ने अमरीका और ईयू के उत्पादों पर अपनी निर्भरता घटा दी है। आंकड़े बताते हैं कि 2022 में अमरीका पांच हजार से कुछ अधिक उत्पाद श्रेणियों में से लगभग साढे पांच सौ में चीन से आयात पर कुछ अधिक निर्भर था जो कि 2000 की तुलना में लगभग चार गुणा अधिक है, जबकि इस अवधि में चीन ने उन उत्पादों की संख्या लगभग आधी कर दी। जिसके लिए वह चीन पर निर्भर था।
अत: ट्रम्प और शी. जिनपिंग के बीच चार बैठकें होने की संभावना है जिससे चीज़ें और भी साधारण हो जाएंगी। तीसरी दुनिया के मुल्कों को फिलहाल नज़र बनाये रखनी है।



