पंजाब और पंजाबी की आन-आबरू कायम रखने वाले डा. साधु सिंह हमदर्द

हमें यह बात बहुत अजीब लगती है कि लोग जब भी किसी नगर की पहचान जानने के लिये पूछते हैं तो केवल स्थलों एवं भवनों के बारे में ही जानना चाहते हैं। कोई भी नगर की विभूतियों के बारे में क्यों नहीं जानना चाहता? इन विभूतियों के जीवन से प्रेरणा लेकर ही तो अन्य लोगों को आगे बढ़ने का हौसला मिलता है। इमारतों की वैभवता, मैदानों की विशालता, धार्मिक स्थलों की मान्यता से नगर का सम्मान, नगर की उन्नति का बखान नहीं हो सकता बल्कि नगर में पैदा होने वाले महत्वपूर्ण लोग ही उस शहर की असली पहचान होते हैं। जालन्धर ने भी कई ऐसे सुपूतों को पाला पोसा और परवान चढ़ते देखा है, जिनकी बदौलत आज जालन्धर के लोग गर्व से सीना फुला कर संसार के सामने खड़े हो सकते हैं। डॉक्टर साधु सिंह हमदर्द भी उन लोगों में से एक थे जिन्होंने मेहनत, ईमानदारी और दूरदर्शिता के बूते समाज में बहुत विशेष स्थान बनाया था। उन्होंने हमेशा से ही लगन, सेवा और निष्ठा को अपने जीवन का आदर्श बनाए रखा।
डॉक्टर साधु सिंह हमदर्द की पत्रकारिता को निकट से जानने वाले हमेशा उनकी दूरदृष्टि की प्रशंसा किया करते थे। जब देश का विभाजन होने वाला था, तब सीमा आयोग का प्रमुख अंगे्रज़ सर सीरिल रेडक्लिफ पूरी तरह मुस्लिम लीग के हाथों में खेल रहा था। उन्होंने पूर्वी पंजाब का अधिकतर भाग पाकिस्तान में शामिल कर देने की योजना बना दी थी। तब सिख राजनीतिज्ञ एवं बुद्धिजीवी मास्टर तारा सिंह, ज्ञानी करतार सिंह, स. बलदेव सिंह ने पंजाब के सिख और गैर-मस्लिम पंजाबी इलाकों को भारतीय पंजाब में ही रहने देने की पुरजोर कोशिश की थी। वे हर छोटी-छोटी बात की डा. साधु सिंह हमदर्द साहिब से चर्चा किया करते थे। सर सीरिल रेडक्लिफ उनकी बात नहीं सनु रहे थे और गुरदासपुर के काफी इलाके पाकिस्तान के प्रभुत्व वाले पंजाब में मिलान की योजना बना रहे थे, तब डॉक्टर साधु सिंह हमदर्द ने ही सिख नेताओं के प्रतिनिधि मंडल जिसमें मास्टर तारा सिंह, ज्ञानी करतार सिंह, स. बलदेव सिंह शामिल थे, को लार्ड माउंटबैटन से मिल कर एक ज्ञापन देने की बात कही थी। इस ज्ञापन में बड़े विस्तार से प्रमुख सिख इलाकों, प्राकृतिक सीमाओं जो नदियों से बन रही थीं और सिंचाई प्रणाली आदि पर भी विस्तृत ब्यौरा था। डॉक्टर साधु सिंह हमदर्द के इन प्रयासों ने हिन्दुस्तान वाले पंजाब का मौजूदा स्वरूप बनाए रखने में सिख नेताओं के मज़बूत इरादों को कायम रखा और उन्हीं की सोच के बूते गुरदासपुर जैसे कई नगर हिन्दुस्तान वाले पंजाब में रह सके।
स. साधु सिंह हमदर्द का जन्म बंगा के निकटवर्ती गांव पद्दी मट्टवाली में पहली जनवरी सन् 1916 को हुआ माना जाता है। पिता लब्भू राम सहजधारी सिख थे। गुरुद्वारा साहिब में जाकर माथा टेकने के पश्चात वह अपने कार्य पर जाते। खुशहाल कौर सिमरण में पूरी निष्ठा रखती थीं। वर्ष के प्रथम दिवस पर घर परिवार में हमदर्द साहिब का जन्म ईश्वर का शुभ प्रशाद माना गया। साधु सिंह हमदर्द अपने जीवन काल में माता-पिता द्वारा दी गई शिक्षा के अनुसार सिख मर्यादा और परम्पराओं से किंचित मात्र भी दूर न हटे। 
पत्रकारिता में कुछ नया करने का जुनून उनमें हमेशा रहा। उन्होंने केवल दो वर्षों तक ही उर्दू में निकलने वाले प्रभात अखबार में काम किया। फिर अपना उर्दू अखबार अजीत के नाम से प्रकाशित करना आरम्भ कर दिया। भाषा की बात करें तो देश में शाहमुखी से गुरुमुखी भाषा की ओर समय ने कदम बढ़ा दिये थे। पंजाबी बोली से पंजाबी भाषा का सही स्वरूप समाज के सामने आने लगा था। पंजाबी भाषा में अजीत पत्रिका पहली नवम्बर सन् 1955 में आरम्भ हुई। पंजाबी भाषा में निकलने वाले समाचार-पत्र अजीत ने देखते ही देखते देश-विदेश में लोकप्रियता अर्जित कर ली। 17 जनवरी सन् 1959 में पंजाबी अखबार अजीत पत्रिका से अपने नए नाम ‘अजीत’ होकर जन जन के हाथों तक पहुँचने लगा। हमदर्द साहब उर्दू, पंजाबी के अतिरिक्त अंग्रेज़ी में ‘वीकली अजीत’ भी प्रकाशित करने लगे। तस्वीर नामक एक बहु आयाम वाली पत्रिका भी पाठकों को दी।
डॉक्टर साधु सिंह हमदर्द ने कभी भी प्राप्त सम्मानों से अपनी कलम के रुख पर असर नहीं होने दिया। पंजाब सरकार द्वारा शिरोमणि पत्रकार का सम्मान, पंजाबी भाषा विभाग ने सन् 1963 को शिरोमणि साहित्यकार का सम्मान इत्यादि कई सरकारी तथा गैर-सरकारी सम्मान हमदर्द जी की ़गज़ल लिखने की कला को प्राप्त हुए थे। हमदर्द जी ने कई विदेशी मुल्कों की यात्रा भी की और जो भी देखा अथवा समझा, वह जानकारी हेतु अपने पाठकों के सामने रखते रहे। रूस की यात्रा पर तो एक पुस्तक भी लिखी, जिसे खूब सराहना प्राप्त हुई। 
हमदर्द साहिब का काव्य प्रेम हमेशा कायम रहा। वह कहा करते थे कि संसार भर के जितने भी महान विचार इस धरती पर उतरे हैं, सभी कविता के रूप में ही उतरे हैं। कविता में ही तो ईश्वर की सही बात संसार तक पहुंची है। उनकी ़गज़लों पर आधारित कई पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। वह कहा करते थे, पत्रकारिता में खबरों को प्रकाशित कर देने से सम्पादक का दायित्व समाप्त नहीं हो जाता, उसे समाज को दिशा भी देनी होती है, एक विचार भी देना होता है। अपने शब्दों में विश्वसनीयता और जागरूकता भी बनाए रखनी होती है। आज देश में 90 हज़ार से अधिक समाचार पत्र भिन्न-भिन्न भाषाओं में प्रकाशित हो रहे हैं लेकिन अजीत और अजीत समाचार अपनी स्पष्ट और जनवादी सोच के कारण देश में एक अलग ही पहचान बनाए हैं।
डा. साधु सिंह हमदर्द का देहावसान 29 जुलाई 1984 को हुआ। उनके बेटे डॉक्टर बरजिन्दर सिंह हमदर्द भी आज पत्रकारिता के जगत में उसी विश्वसनीयता और जागरूकता को बनाए हुए हैं। बड़ी सफलता से अजीत और अजीत समाचार का संचालन कर रहे हैं। आज डॉ. साधु सिंह हमदर्द हमारे बीच में नहीं हैं परन्तु उनके द्वारा पत्रकारिता के मैदान में छोड़े गए पगचिन्ह चिरकाल तक आने वाली पीढ़ियों के लिए पथ-प्रदीप बने रहेंगे।

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