6 अप्रैल नवरात्र पर विशेष : नवरात्र में पूरी होती हैं इच्छित सभी मनोकामनाएं 

भारतीय संस्कृति में साधना और आराधना के लिए हर वर्ष चार बार नवरात्र मनाए जाने का विधान है। इनमें चैत्र शुक्ल के वासंतिक नवरात्र, आश्विन शुक्ल के शारदीय नवरात्र और आषाढ़ एवं माघ शुक्ल के गुप्त नवरात्र शामिल हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार नवरात्र में आदि शक्ति माता भगवती की पूजा एवं मंत्र जाप आदि अनुष्ठान करने से धन-धान्य, सौभाग्य और संतान सुख की प्राप्ति होती है। अथर्ववेद में कहा गया है कि पृथ्वी के साथ समस्त देवी-देवताओं की अधिष्ठात्री भगवती दुर्गा हैं, इसलिए नवरात्र में विधि-विधान के साथ देवी की आराधना करने से सभी देवी-देवताओं की पूजा का फल मिलता है। नवरात्र में देवी भगवती के नौ स्वरूपों की क्र म से पूजा-आराधना की जाती है। ये नौ स्वरूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। नवरात्र में देवी के स्वरूपों की आराधना से जीवन में पवित्रता की भावना बलवती होती है। नवरात्र में कन्या और लांगुरों का पूजन करके और उन्हें भोजन कराकर भेंट आदि देने से देवी भगवती की कृपा से सुख-समृद्धि, आरोग्य, ऐश्वर्य, विजय और मनोरथ सिद्धि, संतान सुख, शांति आदि की प्राप्ति होती है। मातृशक्ति नवदुर्गा के देवीकवच में जो नौ रूप बताए गए हैं, शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री ये सब सौम्य स्वरूप हैं। सौम्य स्वरूप वाली नवदुर्गा सकारात्मकता की संदेश वाहक हैं। शैलपुत्री के रूप में विनम्रता, ब्रह्मचारिणी के रूप में एकाग्रता, चंद्रघंटा रूप में शीतलता, कूष्मांडा रूप में मंद-मंद मुस्कान की मृदुता, स्कंदमाता रूप में वत्सलता, कात्यायनी रूप में निर्मलता, कालरात्रि रूप में कर्मशीलता, महागौरी में उज्ज्वला, सिद्धिदात्री रूप में भक्त के मनोरथ की सफलता का प्रतीक है। नवरात्र के प्रथम दिन घट स्थापना कर मां शैलपुत्री की आराधना लाल पुष्प, लाल वस्त्र, नारियल, शुद्ध घी आदि अर्पित करें। दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी देवी की आराधना करते हुए उनको श्वेत पुष्प एवं वस्त्र, नारियल, शक्कर आदि अर्पित करते हैं। तीसरे दिन देवी के चंद्रघंटा स्वरूप का पूजन किया जाता है। चौथे दिन माता कूष्मांडा की आराधना करते हुए उनको पेठा और मालपुआ का भोग लगाया जाता है। पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा अर्चना की जाती है जिसमें उन्हें कदली फल का भोग लगाते हैं। छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा करते हुए शहद अर्पित किया जाता है। सातवें दिन माता कालरात्रि की आराधना गुड़ से करते हैं। आठवें दिन माता गौरी की आराधना में नारियल का भोग लगाकर बांटा जाता है। नवें दिन सिद्धिदात्री का पूजन करके व्रत का पारायण किया जाता है।  नवग्रहों में कन्या और लांगुरों का पूजन और भोजन करा भेंट देने से देवी भगवती की कृपा से सुख-समृद्धि, आरोग्यमता, ऐश्वर्य और मनोरथ सिद्धि प्राप्त होती है। नवरात्र के पावन दिनों में देवी भगवती की आराधना और साधना में प्रयुक्त होने वाली प्रत्येक पूजा सामग्री का प्रतीकात्मक महत्त्व होता है। हर एक सामग्री के पीछे कोई न कोई उद्देश्य या संदेश भी जुड़ा हुआ है। धर्म शास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश में सभी ग्रह, नक्षत्रों एवं तीर्थों का वास होता है इसलिए नवरात्र पूजा में घट स्थापना का सर्वाधिक महत्व है। कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, नदियां, सागर, सरोवर और 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओं का पूजन हो जाता है। नवरात्र में जौ समृद्धि, शांति, उन्नति और खुशहाली का प्रतीक होते हैं। ऐसी मान्यता है कि जौ उगाने की गुणवत्ता से भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। माना जाता है कि अगर जौ तेजी से बढ़ते हैं तो घर में सुख-समृद्धि आती है । नवरात्र के समय घर में शुद्ध देसी घी का अखंडदीप जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। दीपक साधना में सहायक तृतीय नेत्र और हृदय ज्योति का प्रतीक है। इससे हमें जीवन के ऊर्ध्वगामी होने और अंधकार को मिटा डालने की प्रेरणा मिलती है। नवरात्र पूजा में कलश के ऊपर नारियल पर लाल कपड़ा और मौली लपेटकर रखने का विधान है। माना जाता है कि इससे सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। मां दुर्गा के समक्ष नारियल को फोड़ने का तात्पर्य अहंकार को तोड़ना होता है। प्राचीन काल से ही पूजा-अनुष्ठान में मुख्य द्वार पर आम या अशोक के पत्तों की बंदनवार लगाई जाती है, जिससे घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करतीं। मान्यता है कि देवी पूजा के प्रथम दिन देवी के साथ तामसिक शक्तियां भी होती हैं। देवी तो घर में प्रवेश करती हैं, पर बंदनवार लगी होने से तामसिक शक्तियां घर के बाहर ही रहती हैं। पौराणिक मान्यता है कि गुड़हल के पुष्प अर्पित करने से देवी प्रसन्न होकर भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करती हैं। सुर्ख लाल रंग का यह पुष्प अति कोमल होने के साथ ही असीम शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है, इसलिए लाल गुड़हल देवी मां को अत्यंत प्रिय है। नवरात्र के बारे में शास्त्रीय विधान है कि तन-मन की शुद्धि, संपूर्ण मनोयोग और विश्वास के साथ यदि देवी मां की आराधना की जाए तो सभी मनोरथ शीघ्र पूरे होते हैं।

— नरेन्द्र देवांगन