क्या है जलियांवाला बाग नरसंहार की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ?

इंग्लैंड और उसके सहयोगी देशों की प्रथम महायुद्ध में जीत से भारत और खासतौर पर पंजाब में ब्रिटिश अधिकारियों के अत्याचार और बढ़ गए। अंग्रेज़ अधिकारियों द्वारा भारतीयों के लोकतांत्रिक अधिकारों, आर्थिक ज़रूरतों, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और सभ्याचारक अधिकारों के प्रति दमनकारी नीति अपनाई गई। आम जनता के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाले अखबारों, लेखकों और नेताओं के प्रति कुचलने वाली नीति के तहत उनको कड़ी सज़ाएं दी गईं और झूठे केसों में फंसा कर मुकद्दमे चलाये गये। 19 मार्च, 1915 ई. को इस शृंखला के तहत ‘डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट’ पास किया गया। 1918 ई. में पड़े अकाल ने पंजाबी जन-जीवन की स्थिति और भी गम्भीर कर दी। लायलपुर, पठानकोट और करनाल आदि शहरों में अनाज प्राप्ति के लिए दंगे हुए। शहरी जनसंख्या पर ब्रिटिश सरकार द्वारा एक और नया विशेष आयकर लगाने से वस्तुओं की कीमतों में सौ से दो सौ प्रतिशत वृद्धि हुई। पंजाब में ऐसे हालात के दौरान माहौल अराजकता, अस्थिरता और उदासी वाला बना हुआ था, जिसको प्रथम महायुद्ध के दौरान लगाई गई पाबंदियों ने और अधिक गम्भीर कर दिया। पंजाब के लैफ्टीनेंट गवर्नर माइकल अडवायर द्वारा राष्ट्रीय नेताओं के पंजाब आने पर कड़ी पाबंदी लगाई गई। लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग के लिए आवाज़ उठाने वाले अखबारों न्यू इंडिया, अमृत बाज़ार पत्रिका और इंडीपेंडेंट पर दमनकारी नीति के तहत पाबंदियां लगाई गईं। महात्मा गांधी द्वारा ब्रिटिश शासन के रॉलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन की शुरूआत की गई। पंजाब में इस एक्ट को गड़बड़ वाला और न वकील, न दलील और न अपील वाला एक्ट घोषित किया गया। 30 मार्च, 1919 को दिल्ली, अमृतसर, फाज़िल्का, मुल्तान, अंबाला, लुधियाना, लाहौर तथा कसूर आदि शहरों में धरने दिए गए। 1 अप्रैल को अमृतसर तथा लाहौर में शांतमयी रूप में सफल हड़ताल की गई। 7 अप्रैल को महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन का ऐलान किया गया। 9 अप्रैल को हिन्दू समाज के महत्वपूर्ण पर्व रामनवमी के अवसर पर अमृतसर में हिन्दू, सिख और मुस्लिम संयुक्त रूप में भाईचारक सांझ के तौर पर त्यौहार मना रहे थे। इसी दिन महात्मा गांधी को पलवल में गिरफ्तार में गिरफ्तार किया गया। रामनवमी के अवसर पर ‘हिन्दू- मुसलमान की जय’ और ‘महात्मा गांधी जी की जय’ के नारे लगाए गए। 10 अप्रैल को अमृतसर में शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे लोगों पर ब्रिटिश पुलिस द्वारा चलाई गई गोलियों से 12 लोग मारे गए और 25 गम्भीर घायल हुए। डा. सैफुदीन किचलू और डा. सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरुद्ध किए गए रोष-प्रदर्शन के दौरान 5 यूरोपियन नागरिकों की मौत हो गई और मिस शेरवुड गम्भीर घायल हो गई। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर माइल्ज इरविंग द्वारा 11 अप्रैल के दिन लोगों को यह जानकारी दी गई कि अमृतसर शहर सेना के अधीन है। 1920 में कलकत्ता से प्रकाशित ‘डिसआर्डर इन्क्वायरी कमेटी रिपोर्ट’ के भाग प्रथम के पृष्ठ नं. 24 के अनुसार डिप्टी कमिश्नर का यह मानना था कि 1857 के बाद ब्रिटिश सरकार के लिए यह पहला संकटमयी समय था। उसी दिन ब्रिगेडियर जनरल आर.सी.एच. डायर सी.वी. जालन्धर कमिश्नर, अमृतसर पहुंच गए। 12 अप्रैल, 1919 को सुबह 10 बजे जनरल डायर द्वारा 125 ब्रिटिश और 310 भारतीय सैनिकों के साथ अमृतसर शहर में मार्च किया गया। सायं चार बजे हिन्दू सभा हाई स्कूल में सैफुद्दीन किचलू और डा. सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरुद्ध धरनाकारियों की बैठक हुई। इस बैठक में राजा राम की पुस्तक ‘जलियांवाला बाग नरसंहार’ के अनुसार हंसराज द्वारा भाषण देते हुए कहा गया कि उनके पास इस समय कोई नेता नहीं, इसलिए हर आदमी स्वयं एक नेता है। बैठक का स्थल बदल कर जलियांवाला बाग में रखने का ऐलान भी किया गया था। 12 अप्रैल को एडवायर द्वारा तीन बातों का ऐलान शहर में करवाया गया। पहली अमृतसर शहर या इसके आसपास कोई जुलूस नहीं निकाला जायेगा, दूसरी एक स्थान पर चार से अधिक लोगों का इकट्ठ सरकारी कानून का उल्लंघन होगा, तीसरी ऐसे इकट्ठ को ज़रूरत पड़ने पर जबरदस्ती भगा दिया जायेगा। 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन ब्रिटिश सरकार के जुल्मों के विरुद्ध पाबंदियों की परवाह किए बिना अमृतसर में लोग बड़ी संख्या में एकत्रित होने लगे। बैसाखी का त्यौहार होने के कारण श्री हरिमंदिर साहिब में माथा टेकने आई संगत भी बहुत थी, दूसरी तरफ बाग में सरकार द्वारा 25-25 सैनिकों के दस्ते आम लोगों के आसपास तैनात करके बिना चेतावनी दिए गोलियां चलानी शुरू की गईं। डायर द्वारा निर्दोष जनता को सीधा गोलियों से भूनने का आदेश दिया गया। इस अवसर पर सैनिकों द्वारा 1650 राउंड चलाए गए। पहली सरकारी रिपोर्टों के अनुसार 379 लोग मारे गए और एक हज़ार घायल हुए। होम पोलिटिकल कमिश्नर कार्यालय की रिपोर्ट सितम्बर 1920 के अनुसार 1,000 लोग मारे गए थे और 1200 घायल हुए थे। अमृतसर के ब्रिटिश सिविल सर्जन डा. सिमथ की रिपोर्ट के अनुसार 1800 मौतें हुईं थीं। जलियांवाला बाग का नरसंहार भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम का एक मील पत्थर साबित हुआ। इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 1857 ई. से ही शुरू हो चुकी थी। ब्रिटिश सम्राज्यवादी, दमनकारी नीतियों को बढ़ावा देने वाले एक्ट अंग्रेज़ों द्वारा लगभग हर 20 वर्ष बाद लगातार पास किए जाते रहे। पंजाबियों द्वारा इन एक्टों के विरुद्ध आर्थिक लूट, सामाजिक अन्याय, राजनीतिक अस्थिरता, धार्मिक असहनशीलता, सांस्कृतिक और सांस्कृतिक अन्याय के विरुद्ध बुलंद आवाज़ उठानी जारी रखी गई। यह आवाज़ धार्मिक तौर पर हिन्दू-मुस्लिम-सिख एकजुटता के साथ और भी बुलंद हुई। अंग्रेज़ों द्वारा फूट डालो और राज करो की नीति के तहत मानवाधिकारों की आवाज़ को कुचलने, आर्थिक लूट-खसोट, इसाई मत के प्रचार हेतु अपनाई गई आर्थिक साम्राज्यवाद की नीति और पंजाबियों के आज़ादी पसंद और हौसले वाले स्वभाव को कुचलने के लिए गैर-मानवतावादी नीति के अधीन कार्यवाही की गई थी, जिसका बदला शहीद ऊधम सिंह द्वारा निरन्तर 21 वर्ष के गम्भीर, सोच समझ कर किए गए संगठित संघर्ष के बाद 13 मार्च, 1940 ई. में दोषियों को लंदन के कैकस्टन हाल में मौत के घाट उतार कर लिया गया था। 

प्रमुख इतिहास विभाग, पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला।
मो. 98142-71786