खुदा का सहारा 

सूफी संत शेख फरीद को एक दिन जंगल में घूमते समय प्यास लगी। शेख फरीद एक कुएं पर पहुंच बाल्टी व रस्सी की खोज करने लगे। शेख फरीद को न बाल्टी मिली , न रस्सी । उसी समय हिरनों का एक झुंड भागता हुआ कुएं के पास आया। उनके पास आते ही कुएं का जल एकदम बाहर बहने लगा। हिरनों ने जल पिया और तृप्त होकर वापस चले गये। शेख फरीद कुएं की ओर बढ़े , लेकिन कुएं का जल फिर नीचे चला गया। शेख फरीद आश्चर्यचकित होकर बोले - ‘खुदा , तूने जानवरों को पानी पिला दिया , लेकिन तेरा यह गुलाम प्यासा ही रह गया।’ उसी समय उन्हें एक आवाज सुनायी दी - ‘फरीद , तुमने प्यास बुझाने के लिए रस्सी तथा बल्टी की खोज की । हिरनों ने मेरा सहारा लिया। इसलिए मैंने उनको पानी पिला दिया , लेकिन तू प्यासा ही रह गया।’यह सुनकर शेख फरीद को अपनी गलती का बोध हुआ।   

—पुष्पेश कुमार पुष्प