फाल्गु नदी के तट पर स्थित पवित्र स्थान बौध गया

हिन्दुओं के लिए जो महत्त्व काशी और प्रयाग का है, मुस्लिम संप्रदाय के लिए जो स्थान मक्का का तथा ईसाइयों के लिए जितना पूज्य वेथलेहम है, वही स्थान बौद्ध जगत में बौध गया या बुद्ध गया का है। बौद्धों का यह परम पवित्र स्थान बिहार राज्य में गया के निकट फाल्गु नदी के तट पर स्थित है। 
यहां का बुद्ध विहार बौद्धों तथा हिन्दुओं के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसी स्थान पर कपिलवस्तु के राजकुमार शाक्य मुनि सिद्धार्थ गौतम को पीपल वृक्ष के नीचे परम ज्ञान की दिव्य ज्योति प्राप्त हुई थी। यह पीपल वृक्ष धार्मिक क्षेत्र में बोध-दु्रम के नाम से सुप्रसिद्ध हो गया है। इसी के पास विशाल मन्दिर स्थित है जिसे महाबोधि मन्दिर कहा जाता है।
गया रेलवे जंक्शन है। वहां से बोध गया पहुंचने के लिए एक पक्की सड़क दक्षिण की ओर जाती है। करीब बारह किलोमीटर के इस रास्ते के लिए बस, टैक्सी आदि सवारियों की सुविधा उपलब्ध है। बोध गया जाते हुए 4-5 किलोमीटर दूर से ही महाबोधि मन्दिर का उत्तुंग शिखर दिखाई पड़ता है। हरे-भरे वृक्षों के बीच मन्दिर का यह भव्य शिखर अडिग होकर सारे संसार को करूणा और शान्ति का पावन संदेश देता हुआ प्रतीत होता है।
इस मन्दिर की बौद्ध स्थापत्य कला की शैली भी अनुपम है। चौकोर आधार से ऊपर उठता हुआ यह शंक्वाकार मन्दिर पिरामिड की भांति खड़ा है। इसके चाराें कोनों पर मुख्य मन्दिर के अनुरूप चार छोटे मन्दिर प्रतीक हैं। मुख्य मन्दिर आधार में शिखर की ओर शंकु की तरह कोणात्मक रूप ग्रहण कर लेता है। इसकी बाहरी भित्ति पर ताख में बनी तथागत की अनेक आकृतियां हैं। महाबोधि मन्दिर के शिखर का भी विशेष महत्त्व है जो कला सौष्ठव तथा तत्कालीन शिल्प विधा का प्रतीक है। शिखर पर चक्राकार गुंबद है तथा साथ में बौद्ध धर्म की ध्वजा लहलहाती रहती है।
मन्दिर का प्रवेश द्वार पूरब की ओर है। वहां महाबोधि का तोरण द्वार भी अत्यंत कलापूर्ण है। इस पर सिंह, हिरण तथा अन्य पशु-पक्षियों के चित्र खुदे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रवेश द्वार मन्दिर के निर्माण के बहुत बाद का बना हुआ है। यहीं पर घण्टे लटकाए गए हैं जिनमें बर्मा (म्यांमार) में निर्मित कांस्य के घण्टे का वजन पांच क्विंटल से कम नहीं है। बजाए जाने पर इसकी ध्वनि देर तक गूंजती रहती है।
मुख्य मन्दिर के केन्द्र में पश्चिम की दीवार से सटी पत्थर की एक ऊंची वेदी है जिस पर भगवान गौतम बुद्ध की विशाल प्रतिमा विराजमान है। भूमि स्पर्श मुद्रा में निर्मित इस शांत और गंभीर प्रतिमा पर सोने का पानी फेर कर स्वर्णिम आभा उत्पन्न की गई है। यह ठीक वही स्थान है, जहां मूलरूप में सिद्धार्थ गौतम ज्ञान प्राप्ति के लिए पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या में लीन हुए थे।
मन्दिर की मुख्य वेदी पर अनेक दीप जगमगाते रहते हैं और सुगन्धमय पदार्थों के संयोग से वातावरण सुगन्धित बना रहता है। तथागत की इस सौम्य प्रतिमा के दर्शन मात्र से अपार शांति मिलती है और मन में पवित्र भावों का उदय होने लगता है। महाबोधि मन्दिर की इमारत दो मंजिला है। दूसरी मंजिल पर मध्य भाग में सिद्धार्थ गौतम की माता मायादेवी की मूर्ति है। इस विशाल मन्दिर के दर्शन के लिए न केवल बौद्ध धर्मावलम्बियों की बल्कि अन्य संप्रदाय के लोगों की भी भीड़ लगी रहती है।
मन्दिर के पश्चिम भाग में दीवार से सटा हुआ महापवित्र बोधि द्रुम है। पीपल का यह वृक्ष संसार के धार्मिक वृक्षों में सम्भवत: सबसे पुराना है। इसने मान-सम्मान के साथ अपमान की भी यातना झेली है। महाप्रतापी सम्राट अशोक आरंभ में हिंसक के रूप में चण्डअशोक कहे जाते थे। उस समय उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा नहीं ली थी। अत: एक दिन क्रोधित हो बोधि वृक्ष को कटवा दिया था। पुन: वहां पर नई पौध उग आई। तब अशोक महान बौद्ध धर्म में दीक्षित हो चुके थे। वे उसे चाहने लगे और उनकी सेवा से पौधा पल्लवित हुआ। बौद्ध धर्म का प्रचार तथा शांति और करूणा का संदेश पहुंचाने के लिए सम्राट अशोक ने अपने बेटे महेन्द्र तथा बेटी संघमित्र को श्रीलंका भेजा था। साथ में पावन प्रतीक के रूप में इसी वृक्ष की डाली भेजी थी। उसे ही श्रीलंका में अनुराधापुर में प्रतिरोपित किया गया था जो आज तक वहां वृक्ष के रूप में विद्यमान है। बोध गया स्थित इस बोधि-द्रुम को बाद में आक्रमणकारियों तथा वर्षा और तूफान से भी काफी नुक्सान पहुंचा किन्तु फिर भी यह चमत्कारी वृक्ष जीवित रहा और सात्विक प्रतीक के रूप में आज भी विद्यमान है। बोधिवृक्ष के नीचे मन्दिर की दीवार से सटा सुप्रसिद्ध बज्रासन है। कसौटी पत्थर से निर्मित इस आसन की पूजा दीप जलाकर तथा डमरू वाद्य बजाकर की जाती है। ऐसा विश्वास है कि अमिताभ बुद्ध ने यहीं बैठकर घोर तपस्या की थी और उन्हें दीर्घ साधना के बाद ज्ञान की ज्योति का आभास मिला था। ग्राम-बाला सुजाता ने मधुर पायस प्रस्तुत कर गौतम बुद्ध के जीवन की रक्षा की थी। महाबोधि मन्दिर के पास में उत्तर की ओर अनिमेषलोचन तीर्थ नामक एक स्तूप है। करीब पचपन फीट ऊंचे इस स्तूप में बुद्ध की छोटी सी मूर्ति स्थित है। यह वही स्थान है, जहां ज्ञान प्राप्ति के समय गौतम बुद्ध खड़े होकर सात दिनों तक अपलक उस पीपल वृक्ष को चिन्तामगन निहारते रहे। इसे चक्र मन कहा जाता है। ऐसा विश्वास है कि अपने मानसिक द्वन्द्व को सुलझाने की प्रक्रि या में गौतम बुद्ध एक सप्ताह तक यहीं घूमते रहे थे।
बोध-गया अपने विशाल और प्रमुख महाबोधि मन्दिर से विश्व-विख्यात तो है ही साथ में बने अनेक स्तूप, चैत्य, संघाराम आदि के कारण पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र बन गया है। जापान, बर्मा (म्यांमार) थाईलैंड, चीन, तिब्बत, श्रीलंका इंडोनेशिया आदि देशों ने भी बोध गया की श्री वृद्धि के लिए योगदान किया है। जापान ने मन्दिर से थोड़ी दूर पर पार्क में अमिताभ बुद्ध की ध्यान मुद्रा में विशाल प्रतिमा स्थापित की है जो दर्शनीय है। (उर्वशी)