शतरंज की बिसात पर भारत के डी. गुकेश ने रचा इतिहास

बात 2017 की है। डी. गुकेश उस समय मात्र 11 साल के थे और अपना बचपन कुर्बान करके टॉप-फ्लाइट शतरंज की बारीकियां सीख रहे थे। अर्जुन की तरह उन्हें सिर्फ मछली की आंख दिखायी दे रही थी यानी अपना लक्ष्य- ‘मैं सबसे कम आयु में शतरंज का विश्व चैंपियन बनना चाहता हूं।’ गुकेश अपनी मंज़िल से अब केवल एक कदम दूर हैं। टोरंटो में 4 से 22 अप्रैल, 2024 तक खेली गई कैंडिडेट्स शतरंज प्रतियोगिता में गुकेश ने निडर व गहरी तैयारी के साथ कभी-कभी आउट-ऑफ-सिलेबस (पाठ्यक्रम से बाहर) शतरंज का प्रदर्शन किया और इस तरह वह विश्व खिताब के लिए सबसे कम उम्र के चैलेंजर बन गये। अब वह क्लासिकल खिताब के लिए विश्व चैंपियन डिंग लिरेन को चुनौती देंगे, जो कि चीन के हैं। अगर वह अपना सपना साकार कर लेते हैं, जिसकी प्रबल सम्भावनाएं हैं, तो वह क्लासिकल शतरंज में विश्वनाथन आनंद के बाद भारत के दूसरे विश्व चैंपियन होंगे। 
यह पहला अवसर है जब विश्व खिताब के लिए दो एशियाई खिलाड़ी आपस में मुकाबला करेंगे। दिलचस्प यह भी है कि महिला वर्ग में भी खिताबी भिडंत एशिया की ही दो खिलाड़ियों में होगी। गुकेश का यह ऐतिहासिक सफर काफी हद तक महाभारत के योद्धा अर्जुन की ही तरह रहा। मैग्नस कार्लसन के विश्व चैंपियन रहते हुए गुकेश उन्हें हराने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी हैं। गुकेश ने सबसे कम आयु में टॉप 2750 इलो रेटिंग पॉइंट्स अर्जित किये। 17-वर्षीय गुकेश इस समय भारत के टॉप रैंक्ड खिलाड़ी हैं और इस तरह उन्होंने विश्वनाथन आनंद की 37-वर्ष की बादशाहत को समाप्त किया। बॉबी फिशर व कार्लसन के बाद गुकेश कैंडिडेट्स के लिए क्वालीफाई करने वाले सबसे कम आयु के खिलाड़ी हैं। लेकिन वर्ष 2023 में यह हुआ कि गुकेश से एक साल बड़े 18 वर्षीय प्रज्ञानंद ने कैंडिडेट्स के लिए सीधे क्वालीफाई कर लिया, क्योंकि वह वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंचे थे। गुकेश क्वालीफाई करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। इससे गुकेश को धक्का लगा। 
शायद इसलिए आगे के महीनों में गुकेश पर क्वालीफाई करने का दबाव निरंतर बढ़ता गया, जिससे उनके आत्मविश्वास व फॉर्म दोनों प्रभावित हुए। उनकी स्थिति कुरुक्षेत्र में अर्जुन की सी हो गई थी। वह आगे लड़ना नहीं चाहते थे। ग्रैंड स्विस में 114 खिलाड़ियों के मैदान में 81वें स्थान पर रहने के बाद गुकेश ने कैंडिडेट्स स्पॉट का पीछा करना छोड़ दिया था। वह प्रतियोगिताओं से ब्रेक लेकर ट्रेनिंग में डूबना चाहते थे। उन्होंने अपना दैनिक कार्यक्रम बदला। वह सुबह उठकर टेनिस क्लास लेने लगे। जो किशोर दिन में दस घंटे सोना पसंद करता था वह कम सोने लगा। उनके ईएनटी विशेषज्ञ पिता रजनीकांत के लिए यह देखना दुखदायी था। अक्तूबर व नवम्बर (2023) इतने बुरे महीने गुज़रे कि ऐसा लगा जैसे गुकेश खुद को सज़ा दे रहे हों। हालात इतने खराब थे कि रजनीकांत सोचने लगे कि गुकेश के लिए शतरंज छोड़ना ही बेहतर होगा। अब बात कैंडिडेट्स के लिए क्वालीफाई करने या न करने की नहीं थी, बस यह प्रतीक्षा थी कि यह साल गुज़र जाये ताकि दर्द को कुछ राहत मिले। 
इसके बावजूद गुकेश वर्ल्ड रैपिड एंड ब्लिट्ज चैंपियनशिप्स के फीडे सर्किट में अपनी लीड बरकरार रखने में सफल रहे फलस्वरूप 2024 की टोरंटो कैंडिडेट्स प्रतियोगिता के लिए क्वालीफाई कर गये। फिर कैंडिडेट्स प्रतियोगिता के सातवें चक्र में गुकेश फ्रांस के अलीरेज़ा फिरोजा से हार गये और लगने लगा कि उनकी गाड़ी पटरी से उतर गई है। इसके अगले दिन रेस्ट डे था। गुकेश उदास थे। तभी चेन्नै से उनकी माइक्रोबायोलॉजिस्ट मां पदमा का फोन आया। पदमा ने उदास गुकेश को वैसे ही समझाया जैसे श्रीकृष्ण ने निराश अर्जुन को समझाया था। पदमा ने कहा, ‘यह अंतिम गेम नहीं है। अभी सात चक्र शेष हैं। तुमने प्रतियोगिता के शुरू में गलतियां की हैं, आगे के अधिक महत्वपूर्ण मैचों में वह गलतियां नहीं होने कीं। चिंता मत करो। विश्वास के साथ आगे बढ़ते रहो।’ मां का फोन काम कर गया। गुकेश ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। गुकेश ने टॉप-ग्रेड शतरंज ज़बरदस्त मानसिक व शारीरिक क्षमता के साथ खेली, जिसमें परिपक्वता व जुझारूपन का भी मिश्रण था। 64-खानों की बिसात पर गुकेश ने दिमागी फायरपॉवर की रचना की और इस प्रक्रिया में वह कुछ ऐसा हासिल कर बैठे जो अविश्वसनीय है। वह मात्र 17-बरस के हैं। इलीट राउंड-रोबिन प्रतियोगिताएं खेलने का अनुभव भी उन्हें कम है। लेकिन उनके पास अपनी शैली, भूख, हिसाब लगाने की क्षमता और रणनीति है। यही गुण उन्हें विशिष्ट बनाते हैं। 
इसके बावजूद शतरंज के पंडित भी प्रतियोगिता से पहले यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे कि गुकेश विजयी हो सकते हैं। कार्लसन ने तो अपने पैसे फबिअनो कारुअना व हिकारू नकामुरा पर लगाये थे और गुकेश का ज़िक्र तक नहीं किया था। वर्ल्ड चैंपियनशिप कैंडिडेट्स साइकिल का दूसरा विजेता तलाशने में भारत को तीन दशक से अधिक का समय लगा है; पहले विजेता आनंद थे 1991 में। कैंडिडेट्स से चैलेंजर बनने में आनंद को चार साल का समय लगा था। गुकेश ने कार्लसन (2013) की तरह अपने पहले प्रयास में ही यह श्रेय हासिल कर लिया है और वह भी चार माह के भीतर। लेकिन गुकेश की जीत में आनंद की भी भूमिका है। आनंद ने गुकेश को अपनी वेस्टब्रिज आनंद चेस अकादमी (डब्लूएसीए) में एकदम सही समय पर शामिल किया और आनंद के पूर्व सैकेंड पोलैंड के जीएम ग्रज़ेगोज़र् गजेव्सकी (आयु 38 वर्ष) उनके साथ यात्रा करते हैं। 
एक शतरंज खिलाड़ी के तौर पर यह स्वाभाविक था कि गुकेश के लिए विश्वनाथन आनंद या मैग्नस कार्लसन प्रेरणास्रोत होते, लेकिन परम्पराओं को तोड़ने वाला यह किशोर एलेक्स होंनोल्ड से प्रभावित है, जो अमरीका में रहने वाले फ्री सोलो क्लाइम्बर हैं। ‘फ्री सोलो’ का अर्थ है रॉक फेस पर बिना किसी सुरक्षा सहारे (रस्सी आदि) के चढ़ना। एक गलत कदम भी आपके लिए घातक हो सकता है। लेकिन यह बात एक शतरंज खिलाड़ी को कैसे प्रेरित करती है? गुकेश समझाते हैं, ‘निरंतर सतर्कता! शतरंज में एक गलत चाल से आपकी जान तो नहीं जाने की, लेकिन आप बाज़ी अवश्य हार जायेंगे।’ गुकेश का नजरिया है कि ‘एक गलती और आप गये’, जिसने उन्हें 12 वर्ष, 7 माह व 17 दिन की आयु में भारत का यंगेस्ट जीएम बना दिया है और वह विश्व रिकॉर्ड धारक यूक्रेन के सर्गे कार्जाकिन से मात्र 17 दिन पीछे रह गये, जो 2002 में जीएम बने थे। गुकेश संयोग से शतरंज के क्षेत्र में पहुंचे। उनके पेरेंट्स घर पर कभी-कभी शतरंज खेलते थे, जिन्हें खेलता देख गुकेश की दिलचस्पी शतरंज में बढ़ी। वेल्लामल विद्यालय सीबीएसई के गेम्स टीचर वी भास्कर ने सातवीं कक्षा के गुकेश में प्रतिभा देखी और स्कूल के शतरंज क्लब में शामिल कर लिया और उनके पेरेंट्स इस मामले में गंभीर हो गये। उनसे सिर्फ शतरंज पर फोकस करने के लिए कहा, अर्जुन की तरह। अब देखना यह है कि वह महायुद्ध (विश्व चैंपियनशिप) में चीन के डिंग लिरेन के विरुद्ध अर्जुन की तरह विजयी होते हैं या...।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर