सीता हरण की योजना तथा क्रियान्वयन

शूर्पणखा को जो आश्वासन दिया था रावण ने, अब उसे पूरा करना था। सीता हरण के लिए वह सीधे समुद्र की ओर गया। अपने मामा मारीच से मिला। जब रावण ने सारी बात सुनाकर इस काम में मामा से सहायता मांगी तथा सुनहरे हिरण बनने को कहा तो वह भयभीत हो गया। उसने कहा - ‘राम ने विश्वमित्र के साथ आकर अपने बाण से मुझे समुद्र के पार ऐसा फेंका कि अब तक वहीं पड़ा हूं। मेरी मां राक्षसी ताड़का को भी तो राम ने ही मारा था।’ जब रावण ने मारीच को आनाकानी करते देखा तो कह दिया - ‘मेरी आज्ञा को नहीं मानने पर मैं ही तुम्हारा वध कर दूंगा।’ ....और मारीच तैयार हो गया। रावण पुष्पक विमान में बैठकर आकाश मार्ग से दण्डक वन पहुंचा। पंचवटी में अपने रथ को दूर रखा। मारीच अपनी माया से सुनहरी हिरण बना। राम की कुटिया के पास से धीरे-धीरे निकला। सीता ने उसे पकड़ उसकी छाल की मांग कर दी। राम को जाना पड़ा। लक्ष्मण कुटिया में रहा। कुछ दूरी पर जब राम ने मृग को बाण मारा तो वह अपने असली रूप में आ गया। घायल मारीच ने राम की आवाज में लक्ष्मण को पुकारा। वहीं अपने प्राण भी दे दिये। मरते-मरते श्री राम से मोक्ष मांगा। उन्होंने भी कृपा कर ’आशीर्वाद’ दे दिया। उधर सीता के विवश करने पर लक्ष्मण को कुटिया से राम के पीछे जाना पड़ा। रावण ने स्वयं तो लक्ष्मण रेखा पार नहीं की किंतु साधुवेश में सीता से ही बाहर आकर भिक्षा मांगी। जैसे ही जानकी बाहर आईं, रावण ने उन्हें पकड़ कर विमान में बिठाया और चल पड़ा लंका को आकाश मार्ग से। रास्ते में जटायू के पर काट उसे अधमरा करके फेंक दिया रावण ने। सीता के रोने, सहायता के लिए पुकारने का रावण पर कोई असर न हुआ। सीता ने मार्ग में अपने आभूषण भी फेंके थे ताकि पता चल सके कि उन्हें किस मार्ग से पापी रावण ले जा रहा है। बाद में राम-लक्ष्मण जब विलाप करते उसी ओर चले तो घायल जटायू ने उन्हें जो जानकारी दी, वह बड़ी काम आई।

-सुदर्शन भाटिया