नोबल पुरस्कार की सार्थकता

भारतीय मूल के अमरीकी नागरिक अर्थ-शास्त्री अभिजीत बैनर्जी को अपनी फ्रांसीसी मूल की धर्म-पत्नी एस्थर डुफलो एवं एक अन्य अमरीकी अर्थ-शास्त्री माइकल क्रेमर के साथ अर्थ-शास्त्र के क्षेत्र में इस वर्ष का नोबल पुरस्कार प्राप्त होने की घोषणा ने भारत में एक विशेष प्रकार की प्रसन्नता की लहर पैदा की है। चाहे अभिजीत बैनर्जी अमरीका में रह रहे हैं परन्तु उनका जन्म एवं शिक्षा भारत की है तथा यहीं उन्होंने काफी समय भी व्यतीत किया है। अब तक भी वह अपने इस देश के साथ किसी न किसी रूप में जुड़े रहे हैं। बैनर्जी भारत के हालात के बारे में अक्सर अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करते रहते हैं। 
अब भी उन्होंने देश की आर्थिक स्थिति को चिंताजनक बताते हुए कहा है कि निकट भविष्य में इसमें सुधार के कोई चिन्ह दिखाई नहीं देते। उन्होंने कोलकाता में भी पढ़ाई की। दिल्ली के जवाहर नेहरू विश्वविद्यालय से उन्होंने अर्थ-शास्त्र में एम.ए. की थी। ़गरीबी को दूर करने के लिए श्री बैनर्जी की ओर से प्रस्तुत व्यवहारिक दृष्टिकोण को दृष्टिगत रखते हुए उन्हें यह सम्मान मिला है। आज यदि दुनिया के लिए कोई बड़ी समस्या कही जा सकती है, तो वह है ़गरीबी का प्रसार। भारत जैसे बड़े देश में एक सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2005 से लेकर 2016 के दौरान 27 करोड़ लोगों को अत्यधिक ़गरीबी भरे जीवन से निकाला गया है, परन्तु एक अरब 30 करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश में अभी भी 22 प्रतिशत से अधिक लोग बेहद ़गरीबी की अवस्था में गुज़र रहे हैं। अभिजीत बैनर्जी ने अपना अधिकतर समय आवास, शिक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों को हल करने के लिए पेश किये गये सुझावों पर लगाया। दो दशक पूर्व एक भारतीय मूल के ही अमरीकी नागरिक अमर्त्य सेन को भी ़गरीबी एवं वंचितों के संबंध में पेश किये गये अपने विचारों के कारण ही नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अभिजीत बैनर्जी की पुस्तक ‘पुअर इक्नामिक्स’ की दुनिया भर में बड़ी चर्चा हुई है। श्री बैनर्जी लिखते हैं कि जिस आदमी के पास समुचित भोजन नहीं, वह टैलीविज़न क्यों खरीदेगा तथा ़गरीबी वाले क्षेत्रों में स्कूल पहुंचने के बाद भी बच्चों के लिए पढ़ाई कठिन क्यों है? क्या बहुत ज्यादा बच्चे होना आपको ़गरीब बना देता है? यदि हम अंतर्राष्ट्रीय  ़गरीबी के विरुद्ध लड़ना चाहते हैं, तो इन प्रश्नों का जवाब ढूंढना आवश्यक है। भारत में भी उनके लिखित विचारों को आधार बना कर शिक्षा के क्षेत्र में किये गये परीक्षण कामयाब रहे हैं। भारतीयों को भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में नोबल पुरस्कार मिल चुके हैं। रबिन्द्र नाथ टैगोर को साहित्य के क्षेत्र में यह पुरस्कार 1913 में दिया गया था। चेन्नई में उत्पन्न सी.वी. रमन को 1930 में भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में हासिल उपलब्धियों के लिए यह पुरस्कार दिया गया था। श्री नायपाल को साहित्य के लिए, कैलाश सत्यार्थी को समाज सेवा के लिए शांति पुरस्कार एवं एल्बानिया मूल की मदर टेरेसा, जिन्होंने अपना सारा जीवन भारत में और खास कर कोलकाता में बिताया तथा यहीं उनकी मृत्यु भी हुई, को भी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 
नि:सन्देह पिछले समय में इन महान व्यक्तित्वों ने देश के सम्मान में वृद्धि की है। चाहे अभिजीत बैनर्जी को अन्तर्राष्ट्रीय ़गरीबी की दिशा एवं दशा के संबंध में व्यक्त किये गये अपने विचारों के कारण यह पुरस्कार दिया गया है, परन्तु जहां भारत को ऐसे व्यक्तित्व के विचारों से दिशा ग्रहण करने की आवश्यकता होगी, वहीं भारतीय इस उपलब्धि पर गर्व भी अनुभव कर सकते हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द