हिन्दुस्तान की कूटनीतिक परीक्षा होगी दिल्ली बैठक

‘बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी, जैसी अब है तेरी महफिल कभी ऐसी तो न थी..., जाने किन हालात में बहादुर शाह ज़फर ने इन पंक्तियों को रचा था। रूमानियत की दुनिया से बाहर, कभी-कभी कूटनीति में भी ऐसे हालात आ जाते हैं। अक्तूबर 2020 में शंघाई कोआपरेशन आर्गेनाइजेशन (एससीओ) की होने वाली शिखर बैठक ने ऐसी ही मुश्किल स्थिति भारत-पाकिस्तान की लीडरशिप के बीच पैदा कर दी है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने स्पष्ट कर दिया कि नई दिल्ली में आहूत एससीओ बैठक में पाकिस्तान को आमंत्रित करना है, लेकिन यह सुनना कईयों को नागवार गुजरा है, जो बात-बात में घरेलू राजनीति में विरोध के स्वर को दबाने के वास्ते पाकिस्तान का हवाला देते रहते हैं। उधर, पाकिस्तान की पशोपेश भी यहां से कम नहीं। एससीओ बैठक में प्रधानमंत्री इमरान खान आएंगे या विदेश मंत्री भेज दिये जाएंगे, यह तय करने में वहां भी समय लगेगा।
मगर, मखौल उधर भी बन रहा है कि कश्मीर पर कड़क रुख़ बनाये रखने वाले इमरान ख़ान कौन-सा मुंह लेकर नई दिल्ली जाएंगे?  अगर इमरान ख़ान का आना तय हुआ तो बतौर प्रधानमंत्री उनकी पहली भारत यात्रा होगी। उनके पूर्ववर्ती वज़ीरे आज़म नवाज़ शरीफ  2014 में प्रधानमंत्री मोदी के पहले शपथ समारोह में पधारे थे, तब आज जैसी बिगड़ी स्थिति नहीं थी। पठानकोट हमला नवाज़ शरीफ  की भारत यात्रा के कोई डेढ़ साल बाद हुआ था। उससे नौ दिन पहले 25 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री मोदी लाहौर, नवाज़ शरीफ  के यहां विवाह समारोह के अवसर ‘सरप्राइज़’ कर चुके थे या यूं कहें कि 2 जनवरी 2016 को पठानकोट आत्मघाती हमले से पहले दोस्ती और नूरा कुश्ती का सिलसिला साथ-साथ चल ही रहा था।
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में आठ यूरेशियाई देश चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान, भारत व पाकिस्तान शामिल हैं। शुरू में इसका नाम शंघाई फाइव था। नब्बे के दशक में 26 अप्रैल 1996 को पांच देशों चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान ने आपसी सुरक्षा व भरोसा बढ़ाने के उद्देश्य से शंघाई फाइव की बुनियाद रखी थी। बाद में उजबेकिस्तान इससे जुड़ा। इसी क्रम में 9 जून 2017 को कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में हुई शिखर बैठक में भारत और पाकिस्तान (एससीओ)के पूर्णकालिक सदस्य बनाये गये। एक जमाने में (एससीओ) के चार देश कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान कभी सोवियत संघ के हिस्से हुआ करते थे।
इनकी वजह से शांधाई कोआपरेशन आर्गेनाइजेशन में रूस का ‘अपर हैंड’ बराबर बना रहता है। रूस समेत इन चारों देशों का पाकिस्तान से कैसा संबंध रहा है, विश्लेषकों को इसे समझने की भी आवश्यकता है। ये मध्य एशिया के वो देश हैं, जिनसे पाकिस्तान के संबंध उनकी सोवियत संघ से मुक्ति के समय से बेहतर रहे हैं। उसकी दो वजहें हैं, पहली यह कि इन देशों को मान्यता देने की पहल सबसे पहले पाकिस्तान ने की थी। दूसरी यह कि  ये चारों ओआईसी (आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोआपरेशन) के सदस्य देश हैं। रूस समेत इन पांच देशों से अलग चीन, पाकिस्तान का सदाबहार दोस्त रहा है।
 साल  2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक हुई, जिसके चलते 26 फ रवरी से पाकिस्तान ने हवाई मार्ग बंद कर रखा था। जब सुषमा स्वराज विदेश मंत्री थीं। शंघाई कोआपरेशन आर्गेनाइजेशन (एससीओ) की शिखर बैठक की तैयारियों के सिलसिले में उन्हें बिश्केक जाना पड़ा। उन्होंने पाकिस्तान वाले रूट से जाने की इज़ाजत मांगी। अनुमति के उपरांत वो इसी मार्ग से वहां गईं, इसलिए यह बात ध्यान  में रखने की ज़रूरत है कि (एससीओ) एक ऐसा मंच बना है, जहां भारत-पाक के नेता अदावत के बावजूद नरम पड़ जाते हैं।  बिश्केक शिखर बैठक से पहले अपने यहां माहौल ऐसा बना हुआ था मानों मोदी और इमरान ख़ान हाथ तक नहीं मिलाएंगे। लेकिन हुआ इसके उलट दोनों शत्रु देश के नेताओं ने हाथ मिलाये, जहां आवश्यकता हुई, कतार में साथ खड़े भी दिखे।
सवाल यह है कि ऐसा सार्क के मंच पर क्यों नहीं हो पा रहा? आठ सदस्य देशों का दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन (सार्क) सिर्फ इन दो देशों की लड़ाई के चलते बार-बार बलि चढ़ता रहा है। चार साल से इसकी कोई बैठक नहीं हो रही है। साल 2016 में उरी हमला हुआ था। उसी साल इस्लामाबाद में दक्षेस बैठक 15 से 19 नवंबर को होनी थी, जो नहीं हो पायी। इस तरह 19वीं सार्क बैठक रद्द हो जाने के वर्षों बाद भी दक्षिण एशिया के किसी भी शासनाध्यक्ष ने कोशिश नहीं की कि कम से कम इस मंच को भारत-पाक की अदावत से महफूज रखा जाए। वास्तव में सार्क के सदस्य देशों को शंघाई  कोआपरेशन आर्गेनाइजेशन (एससीओ) से सबक लेना चाहिए। ऐसा नहीं है कि एससीओ में विवाद और मतभेद उभरकर सामने नहीं आते। इन सब बातों से  (एससीओ) भी अछूता नहीं है। 
गौरतलब है कि बिश्केक में पाकिस्तान-चीन की जो साइड लाइन बैठकें हुई थीं, उसमें वन बेल्ट वन रोड को और बेहतर व कमर्शियल बनाने पर भी बात हुई। पाकिस्तान में ग्वादर तक ओबीओआर का संचालन कैसे सुरक्षित रहे, यह भी चीन की चिंता का विषय था। उस बैठक में भारत,ओबीओआर को मान्यता न देकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुका था। भारत पर उस समय भी काफी दबाव था कि वह चीन के ‘वन बेल्ट वन रोड इनीशिएटिव पर मुहर लगाये व उसे आगे बढ़ाये। यह अच्छी बात है कि भारत ने इस पर पूरी सावधानी बरती है। इसे मान लेने से पाक कब्ज़े वाले कश्मीर में निर्माणाधीन चीनी अधोसंरचनाओं पर हमारी आपत्ति सिफ र हो जाती है। दिल्ली में होने वाली (एससीओ) बैठक चीन और पाकिस्तान की वजह से हमारी कूटनीतिक कुशलता की परीक्षा जैसी ही होगी। चीन बार-बार संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को लेकर जो पैंतरेबाज़ी पाकिस्तान के कारण दिखा रहा है, उसकी काली छाया से भारत ‘एससीओ’ बैठक को दूर रख पाए, यह कोई छोटी-मोटी चुनौती नहीं है, लेकिन सोने की तरह कूटनीति भी चुनौतियों के ताप में ही निखरती है। 
—इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर