निधि वन जहां श्री कृष्ण आज भी रास रचाते हैं

वृन्दावन का निधि वन एक ऐसा स्थान है, जहां रात के समय में कान्हा की बांसुरी की मधुर धुन सुनी जा सकती है। वह भी गोपियों के घुंघरुओं की छन-छन व चूड़ियों की खनखनाहट के साथ। निधि वन के टेढ़े खम्बे वाले प्राचीन मंदिर जिसे सेवा कुंज के नाम से जाना जाता है, के बारे में धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण वहां प्रतिदिन रात्रि में  राधा व गोपियों के साथ आते हैं और रास रचाकर तथा अपनी मौजूदगी का एहसास अपने भक्तों को कराकर लौट जाते हैं। यह सच है कि आज तक भगवान श्री कृष्ण, राधा और गोपियों की रासलीला के साक्षात् दर्शन कोई भी भक्त नहीं कर पाया, क्योंकि कोई भी भक्त नहीं चाहता कि भगवान की रास लीला में कोई विघ्न पड़े। इसी कारण दिन के समय तो निधि वन में पूरी चहल-पहल रहती है। लोगों का जमावड़ा लगा रहता है। पक्षियों की चहचहाहट, मवेशियों का विचरण, बंदरों का ऊधम सभी कुछ देखने को मिलता है परंतु जैसे ही शाम ढलती है, निधि वन देखते ही देखते सूना हो जाता है। लेकिन शाम होने से पूर्व सेवा कुंज के सेवक मंदिर को सजाना-संवारना नहीं भूलते। बाकायदा भगवान श्री कृष्ण के लिए उनके कमरे को सुसज्जित बनाया जाता है। उनके पलंग पर सुंदर रेशमी चादर बिछाई जाती है। कमरे में खुशबू बिखेर कर कमरे को खुला छोड़ दिया जाता है। रात बीतने पर भगवान के कक्ष में इस बात के सारे साक्ष्य मौजूद मिलते हैं कि रात में भगवान द्वारा रासलीला रचाई गई। तभी तो भगवान श्री कृष्ण की इस पवित्र स्थली की धूल को माथे पर लगाकर सेवक और भक्त दोनों धन्य हो जाते हैं। वृंदावन हो या मथुरा या फिर भक्तों के दिलों में बना भगवान का कोई अन्य मंदिर हर जगह भगवान श्री कृष्ण अपनी लीला का एहसास भक्तों को कराते हैं। भक्त भी  भगवान को विभिन्न नामों और विभिन्न रूपों में पूजते हैं। शास्त्रों में भी भगवान श्री कृष्ण को विभिन्न नामों व अवतारों के रूप में जाना जाता है। उन्हें भगवान विष्णु के सम्पूर्ण अवतार रूप में कृष्णवर्णी होने के कारण कृष्ण नाम प्राप्त हुआ, जबकि उनके द्वारा ‘श्री’ का वरण किया गया, इसीलिए उन्हें श्री कृष्ण के नाम से पहचान मिली। इसी तरह बचपन में गाय चराने के कारण उन्हें गोपाल कहा जाता है तो मुरली बजाने के कारण मुरलीधर भी उनका नाम है। उनका घर का नाम कन्हैया है तो श्यामवर्णी होने की वजह से उन्हें श्याम सुंदर नाम दिया गया। चूंकि भगवान श्री कृष्ण एक योजना के तहत कालयवन का अंत करने के लिए स्वयं भागते हुए उसे रणभूमि से दूर ले गए थे, इस कारण उन्हें रणछोड़ नाम से भी पुकारा जाता है। वहीं माखन चुराने के कारण माखन चोर, वासुदेव का पुत्र होने के नाते उन्हें श्री कृष्ण वासुदेव भी कहा जाता है। इसी तरह श्री गोबिन्द नाम उनका गोवर्धन धारण करने से पड़ा तो महालक्ष्मी स्वामी होने के कारण उन्हें श्रीनाथ कहा गया। जगत् के स्वामी के रूप में वह जगन्नाथ कहलाते हैं तो बाल सुंदर होने के कारण उन्हें केशव नाम भी मिला। मधु नामक राक्षस को मारने के कारण वो मधु सूदन कहलाये तो कंस मामा का वध करने के कारण उन्हें कंसार नाम मिला।