भारतीय प्रतिनिधिमंडलों की उपलब्धि
विगत कई दशक से पाकिस्तान की ओर से एक विशेष नीति के तहत भारत को चोटिल करने का सिलसिला जारी है। चाहे दोनों देशों में कुछ परोक्ष युद्ध भी हो चुके हैं, परन्तु आतंकवादी संगठनों द्वारा की जा रही यह लड़ाई भारत के लिए हमेशा चुनौती बनी रही है। चाहे यह अप्रत्यक्ष लड़ाई पाकिस्तान की ओर से कश्मीर के मामले को लेकर की जा रही है परन्तु इसका दायरा पूरे देश में फैला हुआ है, जिसने भारत को लगातार बड़ी से बड़ी चुनौतियां दी हैं और देश की प्रभुसत्ता को भारी आघात पहुंचाया है।
भारत की ओर से समय-समय पर इन कार्रवाइयों संबंधी कड़ी प्रतिक्रियाएं भी प्रकट की जाती रही हैं परन्तु इसके बावजूद पाकिस्तान अपने इन छुपे हुए मनसूबों से पीछे नहीं हटा। इसी लम्बी कड़ी के सिलसिले में ही पहलगाम पर हमला होता है, जिसमें लगभग दो दर्जन भारतीयों की हत्या कर दी जाती है। इसके बाद ही भारत सरकार की ओर से पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर हमले किए गए, जिससे उनका भारी नुक्सान हुआ, परन्तु इसके साथ ही सरकार द्वारा हर मोर्चे पर उससे मुकाबला करने के लिए और विश्व भर में उसकी ओर से किए जाते हिंसक काले कृत्यों को उजागर करने के लिए, विगत दिवस 33 देशों में 7 प्रतिनिधिमंडलों को भेजा गया था। इनमें 50 से ज्यादा शख्सियतें शामिल थीं। इन प्रतिनिधिमंडलों में सरकार के प्रतिनिधियों सहित विपक्षी पार्टियों के नेताओं को भी शामिल किया गया था। विशेष बात यह रही कि इनमें तीन प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व विपक्ष के सदस्यों की ओर से किया गया, जिनमें डी.एम.के. की नेता कनिमोझी और नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी की सुप्रिया सुले भी शामिल थीं। शशि थरूर जो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे, को भी एक प्रतिनिधिमंडल का प्रमुख बनाया गया था। इन्होंने भिन्न-भिन्न देशों में वहां के राजनीतिक प्रतिनिधियों के साथ भेंट की और विस्तारपूर्वक आतंकवाद के मुद्दे संबंधी भारत के दृष्टिकोण से उन्हें अवगत करवाया। यह भी कि यह समस्या सिर्फ भारत की ही नहीं है, अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी एक बड़ी और भयावह चुनौती बन गई है। यह भी कि भारत विश्व भर के ज्यादातर देशों के साथ मिल कर इन संगठनों के विरुद्ध अपनी लड़ाई जारी रखेगा। इन प्रतिनिधिमंडलों को अच्छा समर्थन मिला। भारत ने पाकिस्तान के आतंकवादियों संबंधी विदेशी प्रतिनिधियों को जानकारी देने के साथ स्पष्ट किया कि आगामी समय में भारत अपनी ओर केन्द्रित इस रक्तिम हिंसा के प्रति चुप नहीं बैठेगा।
इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप पाकिस्तान ने भी कुछ देशों में अपना एक प्रतिनिधिमंडल भेजा था, परन्तु उसे अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय ने कोई ज्यादा समर्थन नहीं दिया। इससे यह बात ज़रूर महसूस होने लगी है कि अपनी आंतरिक समस्याओं में घिरा पाकिस्तान विश्व के ज्यादातर देशों में अपनी छवि गंवा चुका है। कई मुस्लिम देश इसका दम भरते थे परन्तु आज तुर्की और अज़रबैजान के अतिरिक्त कोई भी मुस्लिम देश इसके साथ खड़ा दिखाई नहीं देता और न ही वर्षों से अपनाई गई उसकी नकारात्मक नीतियों का कोई भी समर्थन करता है। हम इस कवायद को भारत की एक ऐसी बड़ी उपलब्धि मानते हैं जो पाकिस्तान के लिए एक सबक सिद्ध हो सकती है, परन्तु आज जिस तरह के मकड़ जाल में पाकिस्तान फंसा दिखाई देता है, उससे मौजूदा समय में यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह इसमें से शीघ्र बाहर निकल सकेगा। अब तक अपने सिर चढ़ा अरबों-खरबों के कज़र् का बोझ वह आगामी समय में किस प्रकार चुका सकेगा, यह भी देखने वाली बड़ी बात होगी। समूचे हालात इस देश के अनिश्चित होते जा रहे भविष्य की ओर इशारा करते हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द