शशि थरूर का पक्ष-विपक्ष
लोकतंत्र में एक बात सुंदर और गर्व करने लायक होती है कि कोई व्यक्ति अगर संवेदनशील, समझदार और दूर तक सोचने की प्रतिभा रखता हो। उसे उचित सम्मान मिले तथा राष्ट्र-हित के लिए योग्य अवसर भी दिया जाए। चाहे वह पक्ष का हो या विपक्ष का। शशि थरूर की चर्चा इन अर्थों में बाजिब और उल्लेखनीय है। पहलगाम हमले के बाद पक्ष और विपक्ष की राजनीति में इस समय शशि थरूर का नाम बार-बार आ रहा है। केन्द्र सरकार ने विश्व की राजधानियों में भेजने के लिए जब सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का चयन किया तो एक नाम शशि थरूर का भी था। चर्चा का केन्द्र इसलिए भी बना कि उनकी पार्टी ने उनके नाम की सिफारिश तक नहीं की थी। इस कदम को इस खंड में भी देखा जा सकता है कि 2006 में जब मनमोहन सिंह ने श्रीनगर में एक ऐसे प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था, कश्मीर पर राऊंड टेबल वार्ता होनी थी। दूसरी पार्टियों के अध्यक्षों से कोई सुझाव नहीं मांगे गए थे। दरअसल सरकार ने तीन और ऐसे कांग्रेस सांसदों को प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर लिया जो कांग्रेस पार्टी की तरफ से नामित नहीं किए गए थे। इनमें सलमान खुर्शीद, मनीष तिवारी और अमर सिंह हैं। सरकार ने केवल आनंद शर्मा को ही चुना। शेष तीन नाम खारिज कर दिए गए।
शशि थरूर ने पार्टी लेवल से उठ कर निमंत्रण अविलम्ब स्वीकार कर लिया। इतना ही नहीं इसे अपने लिए सम्मानजनक समझा। कहा- ‘जब देश हित में मेरी सेवाओं की दरकार हो तो मैं पीछे नहीं हटूंगा।’ थरूर वैश्विक मीडिया के सामने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ बेहतर ढंग से रख सकते थे और उन्होंने ऐसा ही किया। शशि थरूर केरल से चार बार सांसद रह चुके हैं। एक समय उनके संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बनने की आशा थी। उनकी वाक्पटुता, अपनी बात को अच्छे ढंग से रखने की क्षमता से भाजपा और कांग्रेस दोनों प्रभावित रहे हैं। कुछ लोग तो यह कहने में संकोच नहीं करते कि पहलगाम के बाद भारत के पक्ष को वह जिस तरह रख पाए, भाजपा के प्रवक्ता भी उस प्रभावशाली ढंग से नहीं कर पाए।
एक और बात अजीब लग सकती है लेकिन कांग्रेस को शायद ही स्वीकार्य लगे। क्या थरूर कांग्रेस हाईकमान की पहली पसंद नहीं रहे। गांधी परिवार घोषित रूप से कह सकता है कि उन्होंने थरूर का करियर आगे बढ़ाने में कई बार मदद की है, लेकिन जब कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव होना था, थरूर पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने खड़े हो गए थे। बेशक वह पराजित हुए, परन्तु अपना प्रभाव दिखा गए। पार्टी से परे भी उनके प्रशंसकों में इज़ाफा हुआ। कुछ दिन पहले उन्होंने यह कह कर पार्टी के प्रति अपनी भावना का इज़हार किया कि पार्टी ने उनका सही उपयोग नहीं किया और उनके पास दूसरे विकल्प भी हैं। सोशल मीडिया में वह लोगों को प्रिय लगते हैं। उनके फालोअर्स बड़ी संख्या में मौजूद हैं। जिसमें युवा वर्ग भी है जो उन्हें सम्मान की नज़रों से देखता है। उनके समर्थक केरल में ही नहीं हैं, अपितु दक्षिण भारत में भी देखे जा सकते हैं। उनके जनाधार में कांग्रेस हाईकमान की कोई मदद नहीं है। कांग्रेस के कुछ नेता भी हैरान हो सकते हैं कि शशि थरूर की आखिर राजनीति क्या है? कुछ लोग समझते हैं कि उनका भाजपा के प्रति झुकाव है।
थरूर भविष्य में क्या करने वाले हैं? यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। लेकिन केन्द्र सरकार जिस तरह उनका सदुपयोग कर रही है, वह आशा सूचक है। इससे उनकी लोकप्रियता बढ़ी है और भविष्य ठीक नज़र आता है। गांधी परिवार की अवहेलना उनका नुक्सान नहीं कर पाएगी, क्योंकि काम और समझदारी का रिगार्ड तो होता ही है।