कनाडा के साथ सुधरते संबंध

आखिर मार्क कार्नी की ओर से श्री नरेन्द्र मोदी को कनाडा में हो रही ‘ग्रुप-7’ की बैठक के लिए निमंत्रण मिल गया है। ‘ग्रुप-7’ विश्व के 7 अमीर देशों की संस्था है, जिसमें अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, कनाडा और जापान शामिल हैं। चाहे भारत इस संस्था का सदस्य नहीं है परन्तु एक लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला बड़ा देश होने के कारण इसे विशेष अतिथि के रूप में विगत लम्बी अवधि से इस संगठन की बैठकों में आमंत्रित किया जाता रहा है। अब तक लगातार होती रही इन बैठकों में भारत 12 बार शामिल हो चुका है। श्री मोदी ने इसमें लगातार 6वीं बार भाग लेना है। यह सम्मेलन 15 जून से 17 जून तक कनानस्किस (अलबर्टा) कनाडा में हो रहा है। 
विगत कुछ वर्षों में भारत और कनाडा के संबंध बेहद तनावपूर्ण बने रहे थे। जस्टिन ट्रूडो लगभग 10 वर्ष तक कनाडा के प्रधानमंत्री रहे। भारत सरकार को हमेशा यह शिकायत रही थी कि उनके समय में भारत से कनाडा गए या पहले ही वहां बसे हुए पंजाबी मूल के सिख समुदाय से संबंधित कुछ लोग देश-विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं। चाहे बड़ी संख्या में वहां बसा सिख समुदाय उनके विचारों का समर्थन नहीं करता, परन्तु अलग-अलग संगठनों द्वारा ये लोग खालिस्तान के पक्ष में और भारत के विरुद्ध बयानबाज़ी और प्रदर्शन आदि करते रहते हैं। भारत का यह भी आरोप था कि वहां बैठ कर ऐसे लोग यहां भी हिंसा को प्रोत्साहित करते हैं। भारत सरकार को हमेशा यह शिकवा रहा है कि जस्टिन ट्रूडो की सरकार उन्हें हर तरह से समर्थन देती है और उनकी सहायता करती है। इस संबंध में केन्द्र सरकार की ओर से कनाडा सरकार के समक्ष लगातार पत्रों और उच्चायोग द्वारा भी शिकायतें दर्ज करवाई जाती रही हैं परन्तु जस्टिन ट्रूडो ने इन शिकायतों के संबंध में कभी भी गम्भीरता से कोई कार्रवाई नहीं की थी। उस समय इसके बावजूद भी दोनों देशों के हर तरह के संबंध तो बने रहे और भारी संख्या में युवक और विद्यार्थी भी कनाडा में जाकर पढ़ाई करते रहे या बसते रहे, परन्तु दोनों देशों में भारी कटुता वर्ष 2023 में उस समय पैदा हुई, जब एक खालिस्तान पक्षीय नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या कनाडा के प्रांत ब्रिटिश कोलम्बिया में एक गुरुद्वारा के सामने गोलियां मारकर कर दी गई।
जस्टिन ट्रूडो ने इसके लिए भारत को आरोपी ठहराया और लगातार यह बयानबाज़ी की कि यह हत्या योजनाबद्ध ढंग से की गई है, जिसमें भारतीय अधिकारी और एजेंट भी शामिल हैं। चाहे इस संबंध में कनाडा सरकार कोई पुख्ता प्रमाण तो पेश नहीं कर सकी, परन्तु इसके बाद दोनों देशों के राजनयिक और व्यापारिक संबंध बिगड़ते गये। कनाडा ने भारतीय युवाओं और विद्यार्थियों के वहां आने के संबंध में कई तरह की पाबंदियां भी लगा दी थीं। जस्टिन ट्रूडो अपनी नीतियों के कारण अपनी ही लिबरल पार्टी में विवादास्पद शख्सियत बन गए, जिस कारण आम चुनावों से पहले ही उन्हें अपने पद से त्याग-पत्र देना पड़ा और मार्क कार्नी प्रधानमंत्री बन गए। उसके बाद देश में हुए आम चुनावों में मार्क कार्नी के नेतृत्व में लिबरल पार्टी पुन: जीत गई।
दूसरी तरफ अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पद ग्रहण करते ही कनाडा के विरुद्ध कुछ ऐसी नीतियां धारण कीं, जिस कारण दोनों देशों के संबंध बिगड़ गए, परन्तु जस्टिन ट्रूडो के बाद मार्क कार्नी ने देश की बागडोर बड़ी ही सूझवान और परिपक्व ढंग से सम्भाली है। उन्होंने टैरिफ और अन्य द्विपक्षीय मामलों संबंधी अमरीका के साथ प्रत्यक्ष रूप से टकराव लेने के स्थान पर बातचीत जारी रखी हुई है। यूरोपीयन यूनियन के देशों के साथ भी अच्छा सम्पर्क बनाए रखा है और इसके साथ-साथ उन्होंने कनाडा की भारत संबंधी नीतियों में भी बड़े बदलाव करने शुरू कर दिए हैं, ताकि भारत के साथ भी पुन: अच्छे संबंध बनाए जा सकें। इसी क्रम में कनाडा में हो रही ‘ग्रुप-7’ की बैठक के लिए भारत को आमंत्रित किया गया है। चाहे भारत के लिए यह बात नमोशीजनक ज़रूर है कि कनाडा की ओर से यह निमंत्रण उसे समय पर नहीं दिया गया, अपितु कुछ देर से दिया गया है परन्तु इसके बावजूद भारत सरकार को पहले की परम्परा के अनुसार इसमें भाग लेने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। इस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी की भागीदारी जहां कनाडा के साथ बिगड़े संबंधों को पुन: बहाल करने में सहायक होगी, वहीं विश्व के शिखर के देशों के राष्ट्र-प्रमुखों के साथ प्रधानमंत्री को अन्तर्राष्ट्रीय मामलों संबंधी चर्चा करने का भी अवसर मिलेगा। इससे लोकतांत्रिक देशों में इसका प्रभाव और भी बढ़ने की सम्भावना है, जिसकी भारत को आज बड़ी ज़रूरत है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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